बढ़ती जा रही है सहयोगी दलों से दूरी
फिलहाल तो आलम यह है कि तेजस्वी यादव विधानमंडल के मॉनसून सत्र से भी ऐसे गायब हैं, जैसे वह विपक्ष के नेता नहीं, बस कोई अदना सा विधायक हों। इससे आरजेडी को कुछ फायदा होता तो दिखाई नहीं दे रहा, उलटे उसकी धार मंद ही पड़ती जा रही है। विधानसभा में विपक्ष के बीच दीवारों का खिंचा दिखना भी कम रोचक नहीं है। लोकसभा चुनाव के पहले तक एक ही थाली में खाने का दिखावा करने वाले आरजेडी और कांग्रेस ( Bihar Congress ) के बीच की दरारें चुनाव बाद परिणामों के सामने आने के साथ ही और भी चौड़ी होती दिखाई देने लगीं।
सदन में भी सहज नहीं हैं पार्टी विधायक
अब आलम यह है कि कांग्रेस-राजद किसी मसले पर एक दिखती ही नहीं। यहां तक कि तेजस्वी के नेतृत्व में लोकसभा चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस भी अब तेजस्वी की मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवारी पर तेवर दिखा रही है। इतना ही नहीं, आरजेडी तो किसी खास मुद्दे पर बहस में भी फिसड्डी और पिछड़ी दिखती है। सदन में विभागीय अनुदान मांगों पर बहस में आरजेडी और लुंज पुंज नज़र आती है। किसी विधायक का बहस में बिना किसी तैयारी के उतर आना और हास्यास्पद है। पार्टी की इससे भारी किरकिरी भी हो रही है। तेजस्वी के नदारद रहने से दूसरे नेता भी मन नहीं लगाते।विपक्ष की गंभीरता के अभाव में सदन में लोकतांत्रिक मर्यादाएं भी छिन्न भिन्न जान पड़ती हैं।