script‘कोमल थे तब से जुड़े, अब अनंत यात्रा पर ‘भाऊ | Dhunewale Dada | Patrika News

‘कोमल थे तब से जुड़े, अब अनंत यात्रा पर ‘भाऊ

locationखंडवाPublished: Feb 08, 2019 03:34:17 pm

मौन सेवक और पटेल सेवा समिति के प्रमुख कोमल भाऊ आखरे नहीं रहे

Dhunewale Dada

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खंडवा. अवधूत संत धूनीवाले दादाजी के धाम के मौन सेवक और पटेल सेवा समिति के प्रमुख कोमल भाऊ आखरे नहीं रहे। जब वे ‘कोमलÓ यानी बालक थे, तब दरबार से जुड़े थे और सेवारत रहते उन्होंने भाऊ की उपाधि हासिल कर अनंत यात्रा को चुना। दरबार के सामने पटेल सेवा समिति नाम से जीवन पर्यंत सेवारत कोमलभाऊ आखरे का गुरुवार शाम निधन हो गया। वे बीते कुछ दिनों से अस्वस्थ थे, उनका नागपुर के निजी अस्पाताल में इलाज चल रहा था। दो दिन पूर्व ही उन्हें वेंटीलेटर से उतारकर खंडवा लाया गया था, वे यहां निजी अस्पताल में उपचाररत थे। शाम करीब 6 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके निधन की खबर मिलते ही अनुयायियों को बड़ा सदमा लगा।
शुक्रवार सुबह 11 बजे अंतिम यात्रा दादाजी दरबार से शुरू होकर गोशाला चौराहा, शनि मंदिर, जलेबी चौक, कहारवाड़ी, बॉम्बे बाजार, घंटाघर, नगर निगम, पड़ावा, अंजनी टॉकिज मार्ग से गोशाला होते हुए आबना नदी तट पर दादाजी घाट पहुंची और दाहसंस्कार किया गया।

सात दशक सेवा में गुजारे
पटेल सेवा समिति के प्रमुख कोमल भाऊ की उम्र करीब 85 वर्ष थी। खंडवा में सौंसर छिंदवाड़ा, पांर्ढुंना सहित महाराष्ट्र के हजारों दादाजी भक्त उनसे जुड़े थे। उन्होंने करीब सात दशक तक दादाजी की सेवा में जीवन गुजारा। उनसे जुड़े अनुयायी बताते हैं कि एक बार जब वे समाधि सेवा से लौटकर टपरी में सो रहे थे तभी उन्हें सांप ने डस लिया। लोग घबराए, मुश्किल से रात गुजारी। सुबह छोटे दादाजी के चरणों में लाए, धूनी की भस्म खिलायी चरणामृत पिलाया।

1952 में की थी समिति की स्थापना
कोमल भाऊ के सानिध्य में ही 1952 में पटेल सेवा समिति की स्थापना की गई। वे कहते थे कि दादाजी की सेवा के फूल हों या सुबह कड़कड़ाती ठंड में चंदन घिसने की सेवा हो, दादाजी के काम समय पर होना चाहिए। दादाजी की समाधि पर गुलाब के फूलों की सेवा के लिए उन्होंने पूरा बगीचा ही लगा लिया। दादाजी भक्तों की सेवा के लिए भंडारे, ठहरने के लिए 50 कमरों की धर्मशाला बनवाई। युवाओं को दादाजी से जोड़ा।

मां से बोले थे- मोड़ा यहीं छोड़ जा
भाऊ साहब बताते थे कि बचपन मे छोटे दादाजी के आगे पीछे घूमते थे, तो एक बार दादाजी हमारी मां से बोले कि ये मोड़ा (बालक) यहीं छोड़ जा। दो टिक्कड़ दूंगा, ये घूमता रहेगा यहीं पर। भगवान की दिव्य वाणी थी, जो साकार हुई। भाऊ के ये शब्द थे कि न संसार बसाया, न संसार रास आया। दादा नाम की जो धुन लगी तो उम्र के 85 साल बीत गए और पता ही नहीं चला। अनुयायियों के लिए असंख्य व अमिट यादें छोड़ गए।
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