फैलाई जा रही भ्रांति
महाधिवक्ता कौरव ने ‘पत्रिका’ को दिए एक्सक्लूसिव इंटरव्यू के दौरान कहा कि एट्रोसिटी एक्ट में संशोधन के लिए केंद्र सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश के विषय में भ्रांति फैलाई जा रही है कि यह एक्ट वर्ग विशेष के खिलाफ है। इसके चलते राज्य में कानून एवं व्यवस्था को खतरा उतपन्न होने की आशंका बलवती हो गई है। ऐसी परिस्थितियों को देखते हुए प्रशासनिक आदेश के जरिए अध्यादेश की व्याख्या की जा सकती है।
कानून-व्यवस्था राज्य के अधीन
महाधिवक्ता ने कहा कि कानून एवं व्यवस्था संविधान के तहत राज्य सूची का विषय है। इस विषय पर राज्य सरकार अपना प्रशासनिक आदेश जारी कर वस्तुस्थिति स्पष्ट कर सकती है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार का अध्यादेश केवल एक पृष्ठ का है। इसमें कहा गया है कि एट्रोसिटी एक्ट के तहत रिपोर्ट पर एफआईआर के लिए पुलिस की प्रारंभिक जांच (पीई) आवश्यक नहीं होगी। कतिपय लोग इसकी गलत व्याख्या कर दुष्प्रचारित कर रहे हैं कि यह स्पाक्स के हितों के खिलाफ है। जबकि संशोधन अध्यादेश में ऐसी कोई बात शामिल नहीं है। सीआरपीसी के प्रावधानों और सुप्रीम कोर्ट के ललिता कुमारी के मामले में दिए गए दिशानिर्देशों के तहत भी ऐसी ही व्यवस्था है।
गम्भीर मामलों के लिए व्यवस्था
केंद्र सरकार के अध्यादेश की मंशा की गलत व्याख्या की जा रही है, कौरव ने कहा। उन्होंने बताया कि संशोधन की मंशा है कि एट्रोसिटी एक्ट के तहत की गई जिन शिकायतों पर पुलिस अधिकारी को प्रतीत होता है कि प्राम्भिक जांच की जरूरत नही और मामला गम्भीर प्रकृति का है, वह अपने विवेक से निर्णय लेकर एफआईआर दर्ज कर सकता है। इसका आशय यह नहीं कि प्राम्भिक जांच की व्यवस्था ही समाप्त कर दी गई। सम्बंधित पुलिस अधिकारी को यदि लगता है कि एट्रोसिटी एक्ट के तहत की गई शिकायत फर्जी है, तो वह पहले प्राम्भिक जांच भी संस्थित कर सकता है। यह उसके विवेकाधीन है। उन्होंने कहा कि इसी उहापोह को खत्म करने के लिए गृह विभाग को प्रशासनिक आदेश जारी कर स्थिति स्पस्ट करने के निर्देश दिए गए हैं।