अखंड मंडलाकारं व्याप्तं येन चराचरम, तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरुवे नम: …
देवासPublished: Jul 16, 2019 10:40:26 am
गुरु-शिष्य परंपरा की आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र है नारायण कुटी संन्यास आश्रमवर्षों से जारी है शक्तिपात परंपरा, गुरु पूर्णिमा पर होता है भव्य आयोजन
देवास. आज गुरु पूॢणमा है। सद्गुरु की महिमा का शब्दों में वर्णन करना सूर्य को दीया दिखाने के समान है। जन्म से लेकर जरावस्था तक व्यक्ति के जीवन में गुरु का महत्व रहता है। आमतौर पर गुरु का शाब्दिक अर्थ यही कहा जाता है तो जो अंधकार से मुक्त कर प्रकाश में परिवर्तित करे वह गुरु है। अज्ञान से निकालकर ज्ञान की ओर ले जाए। बाद में अर्थ बदलते गए और गुरु को शिक्षा, दीक्षा, ज्ञान, कला, धर्म आदि से जोड़ा गया। सूचना क्रांति और डिजिटलाइजेशन के बाद इंटरनेट खुद एक गुरु बनकर बैठा है जहां से लोग नित नई चीजें खोजते-सीखते रहते हैं लेकिन आज भी धर्म-आध्यात्म और संगीत जैसी कुछ विद्याएं हैं जो पूर्णत: गुरु मुखी है। गुरु गम्य है। बिना गुरु के सान्निध्य और मार्गदर्शन के इन क्षेत्रों में सीखना-आगे बढऩा अत्यंत दुष्कर है।
गुरु-शिष्य की पवित्र परंपरा में देवास का नाम सदैव सम्मान से लिया जाता है। चाहे संगीत का क्षेत्र हो या धर्म-आध्यात्म का, देवास में ऐसे गुरु हुए हैं जिन्होंने अपनी छाप छोड़ी और ज्ञान से शिष्यों को सामथ्र्यवान बनाया। आध्यात्मिक ऊर्जा के ऐसे ही एक केंद्र का नाम है नारायण कुटी संन्यास आश्रम जहां वर्षों से गुरु-शिष्य परंपरा जारी है। वर्तमान में आश्रम की व्यवस्था स्वामी सुरेशानंद तीर्थ जी सम्हाल रहे हैं जो स्वामी शिवोम तीर्थ जी महाराज के सुशिष्य हैं। शक्तिपात परंपरा को आगे बढ़ाने में इस आश्रम का अमूल्य योगदान है और बरसों से यह परंपरा जारी है। स्वामी सुरेशानंद तीर्थ जी महाराज बताते हैं कि स्वामी विष्णु तीर्थ जी महाराज ने १९५१ में इस आश्रम की स्थापना की थी। अपने गुरु की आज्ञा से वे ऋषिकेश से देवास आए और आज्ञापालन के रूप में आश्रम की स्थापना कर शक्तिपात परंपरा का विस्तार किया। हालांकि स्वामी विष्णुतीर्थ जी महाराज ने अपने जीवनकाल में ऋषिकेश और देवास के आश्रम की स्थापना ही की। १९५९ में स्वामी शिवोम तीर्थ जी महाराज आए और १९६५ में उनकी संन्यास दीक्षा हुई। उन्होंने आश्रमों का विस्तार किया और आज अमेरिका में भी आश्रम संचालित हैं। उनके ब्रह्मलीन होने के बाद स्वामी गोपाल तीर्थ महाराज ने व्यवस्था देखी और वर्तमान में स्वामी सुरेशानंद तीर्थ जी महाराज इस आश्रम की व्यवस्था सम्हाल रहे हैं और शिष्यों का मार्गदर्शन कर रहे हैं। गुरु पूर्णिमा पर आश्रम में भव्य आयोजन होता है। इस बार चंद्रग्रहण होने के कारण दोपहर २ बजे तक आयोजन पूर्ण हो जाएंगे। सुबह १० बजे गुरु पूजन होगा और इसके बाद आगे के कार्यक्रम होंगे। देवास के अलावा दूसरे शहरों के भी लोग यहां आते हैं।
शीलनाथ धूनी पर उमड़ती है भीड़
शीलनाथ धूनी भी आध्यात्मिक चेतना का केंद्र हैं। बताया जा ता है कि जब शीलनाथ जी महाराज देवास आए थे तो वे अलग-अलग जगहों पर रुके थे और धूनी प्रज्वलित की थी। रानीबाग, आनंदबाग, माता टेकरी पर वे रूके। तत्कालीन रियासतकाल के महाराज उनसे प्रभावित हुए और उन्हें मल्हार क्षेत्र में जगह दी इसके बाद वे वहां बस गए। वहीं पर धूनी प्रज्वलित की। तब से लेकर अब तक यह धूनी प्रज्वलित है और यहां प्रतिदिन सैकड़ों भक्त दर्शन के लिए जाते हैं। गुरु पूर्णिमा पर यहां विशेष आयोजन होता है। १६ जुलाई को भी यहां आयोजन होगा।