scriptकर्मों का फल तो भुगतना ही पडेगा | You will have to suffer the consequences of deeds | Patrika News

कर्मों का फल तो भुगतना ही पडेगा

locationचेन्नईPublished: Aug 13, 2019 02:59:19 pm

Submitted by:

shivali agrawal

पुरुषवाक्कम purusaiwakkam स्थित एएमकेएम में विराजित साध्वी कंचनकंवर के सानिध्य में साध्वी डॉ.सुप्रभा ने कहा कर्म और आत्मा में आत्मा अधिक शक्तिशाली है लेकिन शरीर और कर्म का संयोग आत्मा को उसके ऊध्र्वगामी स्वभाव से अधोगामी बनाते हैं।

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कर्मों का फल तो भुगतना ही पडेगा

चेन्नई. पुरुषवाक्कम purusaiwakkam स्थित एएमकेएम में विराजित साध्वी कंचनकंवर के सानिध्य में साध्वी डॉ.सुप्रभा ने कहा कर्म और आत्मा में आत्मा अधिक शक्तिशाली है लेकिन शरीर और कर्म का संयोग आत्मा को उसके ऊध्र्वगामी स्वभाव से अधोगामी बनाते हैं। कितने ही छिपकर कर्म किए जाएं, वे हमारा पीछा नहीं छोड़ते उन्हें भुगतना ही पड़ता है, इसलिए पूर्ण जागरूक रहकर कर्म करें। हमें मनुष्य भव और आर्य क्षेत्र में जन्म मिला है, इस जीवन को व्यर्थ न गंवाएं, जैसे आएं हैं वैसे ही खाली न जाएं। दो प्रकार के कर्म हैं- विदित कर्म जो तपस्या से कट जाते हैं और निकाचित कर्म जिनको भोगना ही पड़ता है। जीवन में संयम रखेंगे तो आयुष्य पूर्ण करेंगे और असंयमित जीवन से आयुष्य जल्दी टूटेगा। उत्तेजना, क्रोध आदि के कारण मनुष्य के श्वासोच्छवास शीघ्र नष्ट होते हैं। जैसे नामकर्म होगा वैसा ही शुभ या अशुभ शरीर प्राप्त होता है। गौत्रकर्म का बंध जैसा होगा वैसा उच्च या निम्नकुल मिलता है। अंतराय कर्मों का क्षय और उपशम निरंतर चलता रहता है।
साध्वी डॉ.हेमप्रभा ने आत्मविकास की दृष्टि से आत्मा की चार भूमिकाएं- अहं, दासोहं, सोहं और अर्हम बताई। अहं ने अनादिकाल से जीव को अपने मिथ्यात्व के वश में कर रखा है। अहंकारी व्यक्ति गुरु और देव को वंदन नहीं करता, अपने अभिमान का ही पोषण कर मिथ्यात्व में जीता है। अहंकारी बाहर से अप्रिय और भीतर से अपात्र बनता है। उसमें विनय का गुण लुप्त होकर साधना करने का वह पात्र नहीं होता। दशा और दिशा दोनों बिगड़ जाती है। आत्मा को परमात्मा बनने नहीं देती।
आचार्य शुभचंद्र के 81वां जन्मोत्सव पर उन्होंने कहा आचार्य शुभचन्द्र सर्व संप्रदाय समुदाय के लोगों के बीच विशेष श्रद्धा एवं अनन्य आस्था के केंद्र थे। 31 वर्ष तक आचार्य पद से जयमल संघ का कुशल नेतृत्व किया, नई ऊंचाई दी। वे सरलता, सादगी और संयम का त्रिवेणी संगम थे। जिसके आचार और विचार शुभ होते हैं, उसके अशुभ कर्म भी शुभ कर्म में परिवर्तित हो जाते हैं। आचार्य की वाणी को जीवन में उतारें।
धर्मसभा में बकरीद पर मूक जानवरों की होनेवाली हत्या के लिए साध्वीवंृद सहित सभी श्रावक-श्राविकाओं ने उनकी आत्मा की शांति और अभयदान के लिए नवकार महामंत्र का सामूहिक जाप किया तथा अनेक श्रावक श्राविकाओं ने आयंबिल तप किया। बुधवार को रक्षाबंधन पर विशेष सामूहिक कार्यक्रम और हस्तनिर्मित राखी, थाली सजावट तथा अनेक प्रकार की प्रतियोगिताएं होगी।
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