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बुधवार की दीवाली, गणेश पूजा का है ये महायोग, घर में कभी नहीं रहेगी धन की कमी

locationआगराPublished: Nov 03, 2018 10:43:22 am

सात नवंबर को प्रथमपूज्य की पूजा का महायोग, ज्योतिषाचार्य ने बताईं पौराणिक मान्यता

Lord Ganesh

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आगरा। दीपोत्सव का पर्व धनतेरस से शुरू हो रहा है। वैदिक सूत्रम चेयरमैन भविष्यवक्ता पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि इस बार दीपावली का दीपोत्सव का महापर्व 7 नवंबर को बुधवार के दिन पड़ रहा है, जो कि श्री गणेशजी का भी दिन भी होता है। गणेशजी ऋद्धि-सिद्धि व सद्बुद्धि के देवता हैं। वे सभी देवताओं में प्रथम पूज्य हैं, इसलिए इस बार का दीपावली पर्व अति शुभ फल प्रदान करने वाला महायोग बना रहा है।
पौराणिक मान्यता भी
वैदिक सूत्रम चेयरमैन भविष्यवक्ता पंडित प्रमोद गौतम ने दीपावली महापर्व के पौराणिक प्राचीन महत्व के सन्दर्भ में बताते हुए कहा कि इसी दीपावली पर्व के दिन समुद्रमंथन के बाद लक्ष्मी व धन्वंतरि प्रकट हुए। वैदिक प्राचीन पौराणिक मान्यता है कि दीपावली के दिन ही माता लक्ष्मी दूध के सागर, जिसे केसर सागर के नाम से जाना जाता है, उससे उत्पन्न हुई थीं। माता ने सम्पूर्ण जगत के प्राणियों को सुख-समृद्धि का वरदान दिया और उनका उत्थान किया। इसलिए दीपावली के दिन माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि श्रद्धा-भक्ति के साथ पूजन करने से माता लक्ष्मी अपने भक्तजनों पर प्रसन्न होती हैं और उन्हें धन-वैभव से परिपूर्ण कर मनवांछित फल प्रदान करती हैं।
कुबेर की भी होने लगी पूजा
वैदिक सूत्रम चेयरमैन पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि दीपावली के संबंध में एक अन्य प्रसिद्ध वैदिक प्राचीन मान्यतानुसार मूलत: यह यक्षों का उत्सव है। दीपावली की रात्रि को यक्ष अपने राजा कुबेर के साथ हास-विलास में बिताते व अपनी यक्षिणियों के साथ आमोद-प्रमोद करते थे। दीपावली पर रंग-बिरंगी आतिशबाजी, लजीज पकवान एवं मनोरंजन के जो विविध कार्यक्रम होते हैं, वे यक्षों की ही देन हैं। सभ्यता के विकास के साथ यह त्योहार मानवीय हो गया और धन के देवता कुबेर की बजाय धन की देवी लक्ष्मी की इस अवसर पर पूजा होने लगी, क्योंकि कुबेर जी की मान्यता सिर्फ यक्ष जातियों में थी पर लक्ष्मी जी की देव तथा मानव जातियों में। पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि कई जगहों पर अभी भी दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजा के साथ-साथ कुबेर की भी पूजा होती है। गणेश जी को दीपावली पूजा में मंचासीन करने में भौव-सम्प्रदाय का काफी योगदान है। ऋद्धि-सिद्धि के दाता के रूप में उन्होंने गणेश जी को प्रतिष्ठित किया। पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि यदि तार्किक आधार पर देखें तो कुबेर जी मात्र धन के अधिपति हैं जबकि गणेश जी संपूर्ण ऋद्धि-सिद्धि के दाता माने जाते हैं। इसी प्रकार लक्ष्मी जी मात्र धन की स्वामिनी नहीं वरन ऐश्वर्य एवं सुख-समृद्धि की भी स्वामिनी मानी जाती हैं। अत: कालांतर में लक्ष्मी-गणेश का संबध लक्ष्मी-कुबेर की बजाय अधिक निकट प्रतीत होने लगा। दीपावली के साथ लक्ष्मी पूजन के जुड़ने का कारण लक्ष्मी और विष्णु जी का इसी दिन विवाह सम्पन्न होना भी माना गया है।
होती है महाकाली की पूजा
वैदिक सूत्रम चेयरमैन पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि इस दीपोत्सव पर्व के दिन महाकाली की पूजा भी की जाती है क्योंकि इस दीपोत्सव पर्व के दिन राक्षसों का वध करने के लिए माँ देवी ने महाकाली का रूप धारण किया। राक्षसों का वध करने के बाद भी जब महाकाली का क्रोध कम नहीं हुआ तब भगवान शिव स्वयं उनके चरणों में लेट गए। भगवान शिव के शरीर स्पर्श मात्र से ही देवी महाकाली का क्रोध समाप्त हो गया। इसी की याद में उनके शांत रूप लक्ष्मी की पूजा की शुरुआत हुई। इसी रात इनके रौद्ररूप काली की पूजा का भी विधान है।
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