पाकिस्तान तक है इस मंदिर की प्रसिद्धि,आज भी दर्शन करने आते है पाक भक्त
शहर के गाड़ीखाना मोहल्ला में स्थित पूज्य संत हजारी राम साहिब का मंदिर न देश बल्कि पड़ोसी पाकिस्तान में भी आस्था का प्रतीक है। संत हजारीराम मंदिर में लगभग 234 साल से अनवरत प्रज्वलित हो रही है।
ग्वालियर/दतिया। शहर के गाड़ीखाना मोहल्ला में स्थित पूज्य संत हजारी राम साहिब का मंदिर न देश बल्कि पड़ोसी पाकिस्तान में भी आस्था का प्रतीक है। संत हजारीराम मंदिर में लगभग 234 साल से अनवरत प्रज्वलित हो रही ज्योति मंदिर की प्रसिद्धि का कारण है।
इस अलौकिक ज्योति का दर्शन करने के लिए पाकिस्तान से भी सिंधी समाज के लोग दतिया आते हैं। मंदिर में प्रज्वलित यह ज्योति विभाजन के दौरान भारत में आई थी। सन1949 को राजस्थान से लाकर इस ज्योति को संत हजारीराम मंदिर में प्रतिष्ठित किया गया था।
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संत हजारीराम प्रकट हुए थे ज्योति लेकर
विभाजन से पूर्व पाकिस्तान के सिंध प्रांत में सक्खर जिले के ग्राम रहड़की में संत बसराराम का आश्रम था। इस आश्रम में संत हजारीराम सेवादारी करते थे। उनकी जिम्मेदारी नदी से आश्रम में पानी भर कर लानी थी।
पानी भरने की सेवादारी करते-करते संत हजारीराम के कंधे में घाव हो गया, जिसमें कीड़े पड़ गए। जब कोई कीड़ा घाव से बाहर निकलता तो वह उसे वापस में घाव में यह कह कर आप अपना स्थान मत छोड़ो। आश्रम के अन्य सेवादारों ने यह बात संत बरदाराम को बताई तो उन्होंने हजारीराम को महान संत बताया।
एक दिन सिंध नदी के तट पर संत हजारीराम ने कुछ प्रार्थना की और अचानक नदी में बाढ़ आ गई। नदी में बाढ़ आते ही संत हजारीराम ने नदी में छलांग लगा दी। यह बात जब लोगों को पता चली तो सब सकते में आ गए। इसकी सूचना संत हजारीराम के गृह ग्राम बरदड़े में परिवार के लोगों को दी गई।
सूचना मिलने पर परिवार के सभी सदस्य तथा बरदड़े गांव के संत दादूराम भी वहां पहुंच गए। संत हजारीराम पूर्व में संत दादूराम के आश्रम में सेवादारी कर चुके थे। संत हजारीराम के नदी में छलांग लगाने के बाद सभी ने नौ दिनों तक अखंड प्रार्थना की तो नौवें दिन संत हजारीराम नदी से सूखे बदन और सूखे कपड़ों में जलती हुई दिव्य ज्योति लेकर प्रकट हुए। इस पवित्र ज्योति को पूजा-अर्चना के लिए सबसे पहले संत हजारीराम के गृह ग्राम बरदड़े में रखा गया था।
सन 1947 मेें भारत विभाजन के दौरान जब हिंदुओं ने बरदड़े गांव को खाली कराया तो मूल ज्योति से दूसरी ज्योति जला कर मूल ज्योति को लेकर संत आसूदाराम ने गिरधारीलाल रतनाणी को भारत ले जाने के लिए सौंप दिया। बताया जाता है कि मूल ज्योति से जला कर दूसरी ज्योति पाकिस्तान के ग्राम पन्नो आकिल में रखी गई। भारत में सर्वप्रथम इस दिव्य ज्योति को राजस्थान के ग्राम गुलाबपुर मनोई में रखा गया। उसके बाद भाई प्रभूदयाल सन 1949 में इसे लेकर दतिया आए और गाड़ीखाना में प्रतिष्ठित किया गया।
मान्यता है कि संत हजारीराम इस ज्योति को लेकर श्रावण महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को प्रकट हुए थे। इस तिथि पर हर साल धूमधाम से ज्योति स्नान महोत्सव मनाया जाता है। ज्योति स्नान महोत्सव में देश के विभिन्न स्थानों से श्रद्धालु दतिया आते हैं और धार्मिक कार्यक्रमों में शामिल होते हैं।