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वाराणसी

बोले प्रो विश्वंभर नाथ, सरकार की संवेदनहीनता बनी जीडी अग्रवाल की मौत की वजह

प्रो अग्रवाल सन्यासी नहीं टेक्नोक्रेट, वैज्ञानिक थे, वो गंगा के प्रति अटूट आस्था थी कि उसके लिए देह त्याग दिया।

वाराणसीOct 11, 2018 / 05:06 pm

Ajay Chaturvedi

प्रो विश्वंभर नाथ और प्रो जीडी अग्रवाल

प्रो विश्वंभर नाथ और प्रो जीडी अग्रवाल

डॉ अजय कृष्ण चतुर्वेदी


वाराणसी. प्रो जीडी अग्रवाल की मौत सरकार की संवेदनहीनता का परिणाम है। आखिर वह क्या मांग ही रहे थे, महज मां गंगा की निर्मलता और अविरलता। गंगा पर बांध न बनाना और जो प्रस्तावित हैं उनका निर्माण रोकना ताकि गंगा की अविरलता बनी रही। कारण साफ था कि गंगा महज एक नदी नहीं, वरन् भारत की लाइफ लाइन है। प्रो अग्रवाल एक टेक्नोक्रेट थे। वैज्ञानिक थे। आईआईटी कानपुर में डीन रहे। वह गंगा के प्रति उनकी अटूट आस्था थी कि वह इससे जुड़े। केंद्र सरकार के पर्यावरण मंत्रालय से जुड़े रहे। वह कोई साधारण इंसान नहीं थे। उनका इस तरह जाना छोटी बात नहीं है। इसके लिए कहीं न कहीं केंद्र व उत्तराखंड सरकार जिम्मेदार है। पत्रिका से खास बातचीत में यह कहा गंगा स्वच्छता के लिए वर्षों से काम कर रहे संकट मोचन फाउंडेशन के चेयरपर्सन प्रो विश्वंभर नाथ मिश्र का।
बता दें कि वो प्रो मिश्र ही थे जिनसे काशी में गत 20 अप्रैल 2018 को प्रो जीडी अग्रवाल उर्फ स्वामी सानंद मिले थे उनके तुलसीघाट स्थित आवास पर। उन लमहों को याद कर प्रो मिश्र काफी विह्वल हो गए। कहा कि शाम का धुंधलका था जब प्रो अग्रवाल आए। वह काफी भावुक नजर आ रहे थे, उन्होंने कहा कि मुझे अब जीने की भूख नहीं रही, जब मां (गंगा) के लिए कुछ कर नहीं सकता तो ऐसे शरीर से क्या लेना लादना। अब तो आप जैसे शुभेक्षुओं से यह सोच कर अंतिम बार मिलने आया हूं कि अब देह त्याग दूंगा। प्रो मिश्र ने कहा कि प्रो अग्रवाल काफी डिटरमिंड व्यक्तित्व वाले इंसान थे। उन्हें यह विश्वास हो गया था कि मौजूदा सरकार गंगा के लिए कुछ नहीं करने वाली।
प्रो मिश्र ने पत्रिका से कहा कि मैं तो हरिद्वार जाना चाहता था, लेकिन तब तक उनके निधन की सूचना आ गई। वैसे मैंने अपने लोगों से जो हरिद्वार जा रहे थे उनसे गुजारिश की थी कि वे प्रोफेसर साहब से आग्रह करिएगा कि वो जल त्याग न करें। शरीर त्यागने का फैसला छोड़ दें। मैने तो अपना अभिभावक ही खो दिया है। कहा कि इसी तरह गंगा के लिए जीवन भर संघर्ष करते करते पिता जी, प्रो वीरभद्र मिश्र 2013 में छोड़ कर चले गए, अब पिता व गुरु तुल्य स्वामी प्रो जीडी अग्रवाल नहीं रहे।
उन्होंने कहा कि जब 20 अप्रैल को प्रोफेसर साहब तुलसी घाट आए थे तब मैने उन्हें बहुत समझाने की कोशिश की थी। कहा था कि चलिए आज कोई नहीं सुन रहा, पर वक्त बदलेगा, सुनवाई होगी, जीवन त्यागने की बात न करें। आप रहेंगे तो ही यह लड़ाई लड़ी जाएगी। आपका रहना नितांत जरूरी है। लेकिन वह इस मौजूदा सरकार के रवैये से अंदर से इतना टूट चुके थे कि उन्होंने मेरी बातों पर शायद गौर नहीं किया। दरअसल वह एक बहुत ही सहृदय, अति संवेदनशील इंसान रहे। एक वैज्ञानिक, टेक्नीशियन के साथ उनका मां गंगा के प्रति लगाव ही था कि पिता जी (प्रो वीर भद्र मिश्र) के साथ ही उन्होंने मोचन फाउंडेशन के लिए काम किया। हम लोगों को जहां कहीं कोई दिक्कत होती वह तुरंत सहायता के लिए खड़े हो जाते। हर समस्या का हल था उनके पास वह भी वैज्ञानिक हल। ऐसा व्यक्तित्व युगों में जन्म लेता है लेकिन क्या कहा जाए इस सरकार को जो ऐसी सख्शियत का अमूल्य जीवन भी नहीं बचा सकी। यह दीगर है कि प्रकृति के आगे किसी की नहीं चली है लेकिन उनका इस तरह जाना निःसंदेह सरकार पर बड़ा सवाल खड़ा करता है। प्रो मिश्र ने कहा कि क्या यह सबका दायित्व नहीं था कि ऐसे संत समान वैज्ञानिक व टेक्नीशियन का जीवन बचाए। 86-87 वर्ष की अवस्था में जीर्ण-शीर्ण शरीर लेकर वह 22 जून 2018 से अनशन पर थे, 09 अक्टूबर से जल त्याग कर दिया था, आखिर किसके लिए, देश के लिए, मां गंगा के लिए, देश की लाइफ लाइन के लिए। इतना कहते कहते प्रो मिश्र काफी भावुक हो गए, उनका गला रुंध गया।

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