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काशी ने सदैव ही साहित्य के संवेदनात्मक अनुभूति को ही स्वीकारा है

locationवाराणसीPublished: Feb 16, 2019 07:45:09 pm

Submitted by:

Ajay Chaturvedi

काशी कथा की ओर से काशी पर 14 दिवसीय कार्यशाला।

काशी पर कार्यशाला को संबोधित करते प्रो सीताराम दूबे

काशी पर कार्यशाला को संबोधित करते प्रो सीताराम दूबे

वाराणसी. काशी का साहित्य कभी भी राजदरबारी नही रहा। यहां का साहित्य विश्व विजयी मानवता की रचना करता है। काशी की मिट्टी फक्कड़पन और लड़ने का साहस देती है। चाहे वह कबीर के साहित्य के रूप में समाज मे व्याप्त बुराइयों पर प्रहार करती है अथवा जयशंकर प्रसाद के ध्रुव स्वामिनी के रूप में नारी अस्मिता के पक्ष में निर्णय लेने के रूप में हो। ये बातें डॉ रामसुधार सिंह ने काशीकथा के 14 दिवसीय कार्यशाला के दूसरे दिन कही।
कार्यशाला के प्रथम सत्र में “साहित्य में काशी” विषयक व्याख्यान देते हुए डॉ रामसुधार सिंह ने कहा कि साहित्य में काशी के अवदान को कबीर, तुलसी, रैदास, भारतेन्दु, जयशंकर प्रसाद, प्रेमचंद आदि से लेकर आधुनिक काल में काशीनाथ सिंह, केदार सिंह, नामवर सिंह तक है। काशी ने सदैव ही साहित्य के संवेदनात्मक अनुभूति को ही स्वीकार किया। प्रगतिवादी युग में जब साहित्य का केंद्र दिल्ली की तरफ विस्थापित होने लगा तो काशी ने संवेदना को पकड़ते हुए ‘हास्य व्यंग्य परंपरा’ की एक नई पीढ़ी दी, जिसमें भैयाजी बनारसी, बेढब बनारसी, चोंच जी और अन्नपूर्णानंद जी जैसे लोगों ने व्यंगधार के साथ सामाजिक कुरीतियों पर कड़ा प्रहार किया। काशी का साहित्य लालच में न पड़कर सकारात्मक अवदान दिया है। काशी की बोली, काशी की माटी ही काशी के साहित्य की ताकत है। धूमिल की कविता के रूप में काशी के साहित्य ने सवाल पूछने की ताकत दी। काशी के हिंदी साहित्य के योगदान के प्रमुख केंद्र रहे नागरी प्रचारिणी सभा के वर्तमान हालत पर चिंता जताते हुए कहा कि हिंदी में आज जो कुछ भी है उन महान तपस्वियों का परिणाम है। लेकिन आज यह संस्था कुछ लोगों के पॉकेट में रह गई है।
कार्यशाला के दूसरे सत्र में “काशी के पुराण इतिहास” विषयक व्याख्यान देते हुए प्रो सीताराम दूबे ने काशी के पौराणिक उल्लेखों यथा स्कंद पुराण, काशी खंड आदि में काशी के अवस्थिति के बारे में प्रकाश डाला। साथ ही कहा कि काशी की संस्कृति लोकोन्मुख है। सांस्कृतिक समग्रता की यही पहचान ही काशी की पहचान है।
इस मौके परमुख्य रूप से डॉ विकास सिंह, अरविंद मिश्र, दीपक तिवारी, गोपेश पांडेय, अभिषेक यादव, उपेंद्र दीक्षित अजय कुशवाहा, जय प्रकाश चतुर्ववेदी, शेखर, शमीम नोमानी, आदि उपस्थित रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो एस एन उपाध्याय ने किया जबकि संचालन डॉ अवधेश दीक्षित ने। डॉ सुभाष चन्द्र यादव ने आभार जताया।
डॉ जितेंद्र नाथ मिश्र ने विकास के नाम पर काशी के विरासत से छेडछाड पर जताई चिंता

कार्यशाला के पहले दिन उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए साहित्यकार डॉ जितेंद्र नाथ मिश्र ने कहा कि विकास के नाम पर काशी के तीर्थ स्थलों को पर्यटन केंद्र के रूप में परिवर्तित किया जा रहा है। अपने में काशी की परंपरा, इतिहास, जीवंतता समेटी गलियों को कॉरिडोर का रूप दिया जा रहा है। यूं कहें कि काशी की सांस्कृतिक परंपरा को नष्ट किया जा रहा है। उन्होंने काशी के वैशिष्ट्य की चर्चा करते हुए कहा कि काशी की संस्कृति भारतीय संस्कृति की परिचायक है। यह भारत की धर्मधानी है। यह पंचोपासना का शहर है। यह किसी एक मत, सम्प्रदाय या विचारधारा से प्रभावित न होकर समग्रता का प्रतीक है। यहां की संस्कृति में आपसी भाईचारा, प्रेम स्नेह है। यहां ऊंच नीच का कोई स्थान नहीं रहा है।
उन्होंने कहा कि आज सम्भ्यताओं के आक्रमण के कारण यहां की विशिष्ट संस्कृति में धीरे-धीरे ह्रास हो रहा है। हमने अब संस्कृति को कल्चर बना दिया है, जबकि कल्चर सभ्यता का पर्याय है। सभ्यता का संबंध बुद्धि से है वहीं संस्कृति विवेक का परिणाम है। कहा कि हमें यदि अपनी यानि काशी की संस्कृति को बचाना है तो बाहरी सभ्यताओं से सावधान रहने की जरूरत है।
प्रो राणा पीवी सिंह ने काशी के भौगोलिक, देवायतनों के स्थान के बारे में वैज्ञानिक व्याख्या की। साथ ही पंचक्रोशी या़त्रा, मंदिरों के अंकशास्त्र के आधार पर उनका महत्व बताया। कहा कि पंचक्रोशी, अंतर्ग्रही यात्रा, केदार यात्रा के धार्मिक महत्व के साथ ही वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर भी प्रकाश डाला।
दूसरे सत्र को संबोधित करते हुए क्षेत्रिय पुरातत्व अधिकारी डॉ सुभाष यादव ने काशी के पुरातात्विक इतिहास पर विस्तार से प्रकाश डाला। काशी के विभिन्न नामों और उपनामों के बारे में पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर चर्चा की। कहा कि विभिन्न खासियतों के आधार पर इस शहर के कई नाम रहे हैं। प्राचीन समय से ही ये शहर ज्ञान का केंद्र रहा है। चिंतन मनन और अध्ययन के लिए विद्वान यहां आते रहे हैं।
डॉ रामसुधार सिंह
डॉ जितेंद्र नाथ मिश्र
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