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मुशायरे में कलाम पेश कर शायरों पाई दाद, देर रात तक जमें रहे श्रोता

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टोंकFeb 01, 2019 / 05:36 pm

Vijay

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मुशायरे में कलाम पेश कर शायरों पाई दाद, देर रात तक जमें रहे श्रोता

टोंक. मौलाना अबुल कलाम आजाद अरबी फारसी शोध संस्थान में चल रहे पांच दिवसीय अखिल भारतीय कैलीग्राफी आर्ट फेस्टीवल प्रदर्शनी व वर्कशाप में बुधवार रात मुशायरे का आयोजन किया गया। इसमें मुख्य अतिथि मौलाना मोहम्मद सईद थे। अध्यक्षता फैसल सईदी ने की। नात शरीफ असमा शाद ने पेश की।

संस्थान निदेशक डॉ. सौलत अली खां ने शायरों की गुलपोशी कर स्वागत किया। इसके बाद असमा शाद ने ‘क्यों दिल को न हो उल्फते सुल्ताने मदीना, है ताअते हक ताअते सुल्ताने मदीना’, डॉ. नदीम ने ‘रंग इतने बदलने लगा पल-पल मेरा चेहरा, आईना भी हैरत से मुझे देख रहा है’ अन्जुम शेफी ‘झूठ बोलूं यह मेरे दिल को गवारा ही नहीं, सच का इजहार जो करता हूं तो सर जाता है’, बरकत साईबी ने ‘है यादरगारे इश्क में दामन की धज्जियां, सरमायाए हयात इन्हीं को बना के देख’, एजाज टोंकी ने ‘अल्लाह अल्लाह उस निगाहे नाज की नेरंगगिया, देखना चाहा न था, लेकिन उधर देखा किए’, माणक चन्द सौदा ने ‘मित्र देखा नर का नर तो दुश्मन देख नर का नर, नर देखों किस काम का है वो जिसके ना हो घर में घर’, अरशद राशिदी ने ‘यह किस सिम्त से आज निकला है सूरज, भला उनका खत मेरे नाम आ गया है’ मौलाना उमर नदवी ने ‘इफ्तेखारों नाजिशे गुलस्तिां सौलत मियां, माअरेफ इल्मो तरीकत तरजुमा सौलत मियां’, प्रदीप पंवार ने तिरंगे पर कविता पढ़ी, फरीद टोंकी ने ‘डर उनको घर बैठे मारे जो डर-डर के जीते हैं, जी तूं बै डर होकर जी तूं ऐसे ना डर-डर के जी’, अनवर ऐजाजी ने ‘तुम्हे भी खाक में मिलना है, एक दिन सोच लो यह भी, उठाओगे तुम अपने सर पर आसमां कब तक’, शाद टोंकी ने ‘तुमने ही किया था शाद मुझे तुमने ही किया नाशाद मुझे, आबाद भी था तुमने ही किया तुमने ही किया बर्बाद मुझे’ हसन इकबाल ने ‘सच्चाई में कुछ झूठ भी कर लीजिए शामिल, बाजार में चलता नहीं सिक्का जो खरा है‘ खालिद सहर ने ‘जिन्दगी कितने मराहिल से गुजरती होगी, आज लम्हों की थकन से अहसास हुआ’ अब्दुस सलाम, उड़ीसा ने ‘अब हमारे पास मुद्दे बड़े हैं, कुछ सुलझी कुछ अनसुलझी पहेली है’, शम्सी तेहरानी ने ‘है कसरे इल्म की शौकत अली से है शमसी, है शहरे इल्म नबी बाब है अली अमजद’, जिया टोंकी ने ‘हम मुजाहिद भी है हम फनकार है, हम वफादार हैं हम वफादार हैं’, आबिद आकिल ने ‘मेरे लबो पे जो फैसल भी बात आने लगी, हसीन गुलों की महक बात-बात पर आई’, इमदाद अली शमीम ने ‘शाद कैसे ना इदारा हो है बानी शौकत’ पेश कर वाह-वाही लूटी।

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