लोकसभा चुनाव के लिए टिकट आबंटन के मामले में पूरी तरह से हुड्डा की ही चली है। जबकि अन्य कांग्रेसी नेता केवल अपनी-अपनी सीट को ही बचाने में कामयाब रहे हैं। अंबाला लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में उतरी कुमारी सैलजा अपने संबंधों के दम टिकट लेकर आई हैं। इसमें हुड्डा का कोई योगदान नहीं है। कुरूक्षेत्र लोकसभा सीट से नवीन जिंदल के बैकफुट पर आने के बाद पार्टी ने हुड्डा की सिफारिश पर उनके करीबी निर्मल सिंह को चुनाव मैदान में उतारा है। निर्मल सिंह लंबे समय से लोकसभा टिकट के लिए प्रयास कर रहे थे। करनाल लोकसभा सीट पर भी कई नेताओं का नाम चलता रहा लेकिन अंत में भूपेंद्र सिंह हुड्डा के सबसे अधिक करीबी कुलदीप शर्मा को चुनाव मैदान में उतारा गया है। कुलदीप को लोकसभा की टिकट भी हुड्डा की इच्छा पर ही दी गई है।
सोनीपत लोकसभा सीट से हुड्डा खुद मैदान में हैं। हालांकि पहले हुड्डा फरीदाबाद में अपने करीबी ललित नागर को भी टिकट दिलाने में कामयाब हो गए थे लेकिन प्रियंका गांधी और ज्योतिरादात्यि सिंधिया के दबाव के बीच ललित नागर को मैदान से हटा दिया गया। रोहतक लोकसभा सीट से भी हुड्डा के बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा को टिकट मिली है। बदले हुए हालातों में कुलदीप बिश्नोई पूरी तरह से हुड्डा का नेतृत्व स्वीकार कर चुके हैं। जिसके चलते पार्टी हाईकमान की इच्छा के उलट जाकर हुड्डा ने हिसार लोकसभा सीट से कुलदीप के बेटे को टिकट दिए जाने का समर्थन किया तो हाईकमान को मजबूरन उन्हें टिकट देना पड़ा।
दूसरी तरफ अशोक तंवर जहां अपनी सिरसा सीट, किरण चौधरी अपनी बेटी के लिए भिवानी-महेंद्रगढ़ सीट तथा कैप्टन अजय सिंह यादव केवल अपनी गुरुग्राम लोकसभा सीट हासिल करने में कामयाब हुए हैं।