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शाहजहांपुर

दीवाली पर मां की ये पर्ची पढ़कर आप भी रो पड़ेंगे, जरूर पढ़िए

दीवाली पर शॉपिंग के लिए मां के हाथ की लिखी पर्ची की आखिरी पंक्त पढ़ते-पढ़ते शालिनी फफक-फफक कर रो पड़ी।

शाहजहांपुरNov 07, 2018 / 07:06 am

अभिषेक सक्सेना

sikar diwali

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शालिनी आइना के सामने खड़ी होकर साड़ी के पल्लू अपने कंधे पर सलीके से जमाते हुए बोली, सूरज इस बार मैं दिवाली शॉपिंग के लिए बहुत लेट हो गयी हूँ, मिसेस तनेजा ने तो वृद्धाश्रम जाकर मिठाई और कपड़े बाँट कर अपनी पोस्ट फेसबुक पर भी डाल दी। मिसेस वोहरा ने भी अनाथालय में गिफ्ट बांटती हुई अपनी फोटो इंस्टाग्राम में डाली है।
सूरज तुम सुन भी रहे हो मै क्या बोल रही हूँ।

सूरज झुंझला कर बोला- हां यार सुन रहा हूँ। मैंने तुझे कब मना किया था, शॉपिंग के लिए, ड्राइवर को लेके चली जाती और तुम भी किसी आश्रम में दे आती जो तुम्हें देना है। अपनी नेकी करती तस्वीरें डाल देतीं फेसबुक पर। मुझे क्यूँ सुना रही हो। शर्ट की बटन लगाते हुए सूरज बोला अब और कितनी देर लगाओगी तैयार होने में।
मुझे आज ही अपने स्टाफ को बोनस बांटने भी जाना है। जल्दी करो मेरे पास टाईम नहीं है। कह कर सूरज रूम से बाहर निकल गया। तभी बाहर लॉन में बैठी “माँ” पर नजर पड़ी।
कुछ सोचते हुए वापस रूम में आया। शालू तुमने माँ से भी पूछा कि उनको दीवाली पर क्या चाहिए।

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सूरज झुंझला कर बोला- हां यार सुन रहा हूँ। मैंने तुझे कब मना किया था, शॉपिंग के लिए, ड्राइवर को लेके चली जाती और तुम भी किसी आश्रम में दे आती जो तुम्हें देना है। अपनी नेकी करती तस्वीरें डाल देतीं फेसबुक पर। मुझे क्यूँ सुना रही हो। शर्ट की बटन लगाते हुए सूरज बोला अब और कितनी देर लगाओगी तैयार होने में।
मुझे आज ही अपने स्टाफ को बोनस बांटने भी जाना है। जल्दी करो मेरे पास टाईम नहीं है। कह कर सूरज रूम से बाहर निकल गया। तभी बाहर लॉन में बैठी “माँ” पर नजर पड़ी।
कुछ सोचते हुए वापस रूम में आया। शालू तुमने माँ से भी पूछा कि उनको दीवाली पर क्या चाहिए।

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सूरज के बहुत जोर देने पर माँ बोली ठीक है, तुम रुको मैं लिख कर देती हूँ। तुम्हें और बहू को बहुत खरीदारी करनी है। कहीं भूल ना जाओ। सूरज की माँ अपने कमरे में चली गई। कुछ देर बाद बाहर आई और लिस्ट सूरज को थमा दी।
सूरज ड्राइविंग सीट पर बैठते हुए बोला, देखा शालू माँ को भी कुछ चाहिए था पर बोल नहीं रही थीं। मेरे जिद करने पर लिस्ट बना कर दी है, “इंसान जब तक जिंदा रहता है, रोटी और कपड़े के अलावा भी बहुत कुछ चाहिये होता है।”
अच्छा बाबा ठीक है पर पहले मैं अपनी जरूरत की सारी सामान लूँगी। बाद में आप अपनी माँ का लिस्ट देखते रहना, कहकर कार से बाहर निकल गयी।

पूरी खरीदारी करने के बाद शालिनी बोली अब मैं बहुत थक गयी हूँ, मैं कार में एसी चालू करके बैठती हूँ। आप माँ जी का सामान देख लो।
अरे शालू तुम भी रुको फिर साथ चलते हैं मुझे भी जल्दी है।

देखता हूँ माँ ने इस दीवाली क्या मंगाया है। कहकर माँ की लिखी पर्ची जेब से निकलता है। बाप रे इतनी लंबी लिस्ट, पता नहीं क्या-क्या मंगाया होगा। जरूर अपने गाँव वाले छोटे बेटे के परिवार के लिए बहुत सारा सामान मंगाया होगा। और बनो “श्रवण कुमार”, कहते हुए गुस्से से सुरज की ओर देखने लगी। पर ये क्या सूरज की आंखों में आंसूऔर लिस्ट पकड़े हुए हाथ सूखे पत्ते की तरह हिल रहा था। पूरा शरीर काँप रहा था।
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शालिनी बहुत घबरा गयी। क्या हुआ ऐसा क्या मांग लिया है तुम्हारी माँ ने, कह कर सूरज की हाथ से पर्ची झपट ली।

हैरान थी शालिनी भी इतनी बड़ी पर्ची में बस चंद शब्द ही लिखे थे। पर्ची में लिखा था.-
बेटा सूरज मुझे दीवाली पर तो क्या किसी भी अवसर पर कुछ नहीं चाहिए। फिर भी तुम जिद कर रहे हो तो तुम्हारे शहर की किसी दुकान में अगर मिल जाए तो फुर्सत के कुछ” पलमेरे लिए लेते आना। ढलती साँझ हुई अब मैं, सूरज मुझे गहराते अँधियारे से डर लगने लगा है, बहुत डर लगता है पल-पल मेरी तरफ बढ़ रही मौत को देखकर। जानती हूँ टाला नहीं जा सकता शाश्वत सत्य है पर अकेलेपन से बहुत घबराहट होती है सूरज। तो जब तक तुम्हारे घर पर हूँ कुछ पल बैठा कर मेरे पास। कुछ देर के लिए ही सही बाँट लिया कर मेरा बुढ़ापा का अकेलापन। बिन दीप जलाए ही रौशन हो जाएगी मेरी जीवन की साँझ। कितने साल हो गए बेटा तूझे स्पर्श नहीं किया। एक बार फिर से आ मेरी गोद में सिर रख और मै ममता भरी हथेली से सहलाऊँ तेरे सिर को। एक बार फिर से इतराए मेरा हृदय मेरे अपनों को करीब बहुत करीब पाकर और मुस्करा कर मिलूं मौत के गले, क्या पता अगली दिवाली तक रहूँ ना रहूँ। पर्ची की आखिरी पंक्त पढ़ते-पढ़ते शालिनी फफक-फफक कर रो पड़ी।
प्रस्तुतिः निर्मला दीक्षित

सदस्य, राज्य महिला आयोग, उत्तर प्रदेश

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