जानकारी के मुताबिक हल के एक ओर गोहरा बैलों की जगह खुद कंधा सम्हालता है और दूसरी ओर बारी बारी से बेटों की सहायता लेता है गोहरा के अनुसार उसके पास इतना पैसा नहीं है कि वह बैल खरीद सके और समय निकल जाने पर धान का रोपा नहीं लग पायेगा उसके पास खुद जुतने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा था। हैरत की बात है कि पूरे मसले पर सरकारी नुमाईंदे और कृषि विभाग का रवैया उदासीन बना हुआ है किसी ने भी मजबूर गोहरा की सुध लेना मुनासिब नहीं समझा है जिससे प्रदेश में खेती को लाभ का धंधा बताने के दावे खोखले नजर आ रहे हैं गौरतलब है कि पिछले दिनों मेहंदवानी विकासखण्ड के मटियारी गांव में भी ऐसा ही मामला सामने आया था जहां सरकारी छलावे से पीडित किसान भी बैल की जगह खुद हल खींचने मजबूर हुआ था।