जिस व्यक्ति को लड़ाने के लिए मैं उधर गया था और उनके घर में ही मेरे ठहरने की व्यवस्था थी। उनके बाप ने घर के बाहर भूख हड़ताल शुरू कर दी, यह कहते हुए कि मेरे लडक़े का दिमाग खऱाब हो गया है, ये कांशीराम के चक्कर में आ गया है। यह बसपा से चुनाव लडऩा चाहता है, मैं कांग्रेस वालों को क्या जवाब दूंगा। जिसको लड़ाने के लिए मैं वहां गया था जब वह नहीं लड़ा तो मैंने सोचा कि मैं तो इसे लड़ाने के लिए यहां तैयारी करके आया हूं, अब ये नहीं लड़ रहा है तो मुझे क्या करना चाहिए। मैंने सोचा कि नामांकन का आज आखिरी दिन है, तो अब मुझे ही लडऩा चाहिए लेकिन, उस वक्त तो मेरे पास नामांकन के दौरान अमानत राशि भरने का पैसा भी नहीं था।
मैंने उधर चादर बिछाई और बहुजन समाज के जिन लोगों को मैंने तैयार किया था उनसे अपील किया कि आप लोग इस चादर पर थोड़ा-थोड़ा पैसा डालें ताकि मैं 500 रूपये जमा करके अपना नामांकन कर सकूं। उन्होंने पैसा डाला और मैंने गिना तो 700 रुपया हो गया। उसमें से 500 रूपये डिपोजिट भर दिया और 200 रूपये में मैंने एक साइकिल खरीद ली क्योंकि अब मुझे प्रचार भी करना था। मैंने सोचा बाकि कर्मचारियों के पास अपनी-अपनी साइकिलें हैं, हम इक_े होकर साइकिल से प्रचार करेंगे। इस तरह हम लोगों ने प्रचार शुरू कर दिया और मुझे 32 हजार वोट मिले।
नोट: 14 अप्रैल 1984 को बहुजन समाज पार्टी की स्थापना के बाद कांशीराम ने पहला लोकसभा चुनाव दिसम्बर 1984 में जांजगीर से लड़ा।
स्रोत: कांशीराम के भाषणों की सीडी से।