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पन्ना

किशनगढ़ के जंगल में ट्रैप हुआ पन्ना टाइगर रिजर्व का बाघ, बफर जोन में और घूम रहे बाघ

क्षेत्र में लगातार बाघों की मौजूदगी से दहशत, बफर जोन के जंगल में भी बड़ी संख्या में घूम रहे बाघ

पन्नाSep 17, 2018 / 04:13 pm

suresh mishra

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पन्ना। पन्ना टाइगर रिजर्व के कोर जोन से निकल कर बफर जोन में बाघों का लगातार आने जाने का सिलसिला जारी है। एक बार फिर मडियादो बफर जोन से लगे किशनगढ़ बफर के जंगल में एक बाघ कैमरे में ट्रैप हुआ है। इसके अलावा एक बाघ दमोह जिले के ही राईपुरा के जंगल में भी होने की बात वन विभाग द्वारा बताई जा रही है। क्षेत्र में लगातार बाघों की मौजूदगी से लोगों में दहशत का माहौल है।
ये है मामला
दरअसल वर्ष 2009 में बाघ विहीन हो चुके पन्ना टाइगर रिजर्व में अब बाघोंं का आकड़ा इस समय 40 पार कर चुका है। वयस्क हो रहे बाघ धीरे-धीरे अपनी मां का साया छोड़कर अपने लिये टेरटरी की खोज में लग जाते हैं। यहां बीते साल तक नवजात रहे शावक अब अर्ध वयस्क होकर अपने लिये सुरक्षित टेरटरी की तलाश में लग गए हैं। वहीं कारण है कि वे सुरक्षित कोर जोन से निकलकर बफर जोन और रेगुरल फारेस्ट में देखा जा रहे हैं। ये बाघ लागातार बारह निकल रहे हैं।
पूरे पन्ना लैंड स्केप में घूम रहे बाघ
वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट के अनुसार पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघों का घनत्व बढऩे के कारण ये यहां से निकलकर आपास के जंगलों में घूम रहे हैं। पन्ना के बाघों को पन्ना लैंड स्केन छतरपुर, सागर, दमोह, ललितपुर, बांदा झांकी, सतना कटनी, उमरिया आदि जिलो के जंगलों में आसानी से देखा जा सकता है। कुछ बाघ स्थानीय रूप से पन्ना टाइगर रिजर्व की सुरक्षित सीमा के बाहर अपना आवास भी बना चुके हैं। जिससे उसकी सुरक्षा की जिम्मेदार अब टाइगर रिजर्व की नहीं होकर संबंधित जिले के डीएफओ की होती है।
10 से 11 माह के होने पर मां से अलग हो जाते हैं
बाघ शावक 10 से 11 माह के होने पर मां से अलग जंगल में स्वतंत्र जीवन जीने लगते हैं। उन्हें शिकार सीखने फ्री जोन की जरूरत होगी है। 14 माह के बाद जब बाघिन को भरोसा होने लगता है कि शावक शिकार करने लगे हैं, तो वह उन्हें छोड़कर भी चली जाती है।
पार्क प्रबंधन के लिए चुनौती भरा

आखिरकार अर्ध व्यस्क बाघ स्वतंत्र क्षेत्र की तलाश कर अधिपत्य जमा लेते हैं। इस दौरान यह बाघ अन कॉलर होते है। जिस कारण इनकी लोकेशन आसानी से प्राप्त नहीं होती है। वहीं यह बाघ कहीं निकल जाए तो पग मार्क के सहारे ही पता करना पड़ता है, जो पार्क प्रबंधन के लिए चुनौती भरा होता है।

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