दरअसल वर्ष 2009 में बाघ विहीन हो चुके पन्ना टाइगर रिजर्व में अब बाघोंं का आकड़ा इस समय 40 पार कर चुका है। वयस्क हो रहे बाघ धीरे-धीरे अपनी मां का साया छोड़कर अपने लिये टेरटरी की खोज में लग जाते हैं। यहां बीते साल तक नवजात रहे शावक अब अर्ध वयस्क होकर अपने लिये सुरक्षित टेरटरी की तलाश में लग गए हैं। वहीं कारण है कि वे सुरक्षित कोर जोन से निकलकर बफर जोन और रेगुरल फारेस्ट में देखा जा रहे हैं। ये बाघ लागातार बारह निकल रहे हैं।
वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट के अनुसार पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघों का घनत्व बढऩे के कारण ये यहां से निकलकर आपास के जंगलों में घूम रहे हैं। पन्ना के बाघों को पन्ना लैंड स्केन छतरपुर, सागर, दमोह, ललितपुर, बांदा झांकी, सतना कटनी, उमरिया आदि जिलो के जंगलों में आसानी से देखा जा सकता है। कुछ बाघ स्थानीय रूप से पन्ना टाइगर रिजर्व की सुरक्षित सीमा के बाहर अपना आवास भी बना चुके हैं। जिससे उसकी सुरक्षा की जिम्मेदार अब टाइगर रिजर्व की नहीं होकर संबंधित जिले के डीएफओ की होती है।
बाघ शावक 10 से 11 माह के होने पर मां से अलग जंगल में स्वतंत्र जीवन जीने लगते हैं। उन्हें शिकार सीखने फ्री जोन की जरूरत होगी है। 14 माह के बाद जब बाघिन को भरोसा होने लगता है कि शावक शिकार करने लगे हैं, तो वह उन्हें छोड़कर भी चली जाती है।