उल्लेखनीय है कि प्रदेश का पन्ना टाइगर रिजर्व को वर्ष 200८ में बाघ विहीन हो गया था। बाघों का यहां से पूरी तरह खात्मा हो जाने पर राष्ट्रीय स्तर पर पन्ना टाईगर रिजर्व की खासी किरकिरी हुई थी। बाघों के उजड़ चुके संसार को यहां पर फिर से आबाद करने के लिए बाघ पुनस्र्थापना योजना के तहत कान्हा व बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व से बाघिन व पेंच टाईगर रिजर्व से एक नर बाघ लाया गया। बाघिन टी.1 ने पन्ना आकर 16 अप्रैल 2010 को अपनी पहली संतान को जन्म दिया। इस ऐतिहासिक व अविस्मरणीय सफलता को यादगार बनाने के लिए 16 अप्रैल को हर साल प्रथम बाघ शावक का जन्म धूमधाम से मनाए जाने की परंपरा तत्कालीन फील्ड डायरेक्टर आर श्रीनिवास मूर्ति ने ही शुरू की थी।
जनभागीदारी से बाघों के संरक्षण को बल मिले। इसके बड़े ही उत्साहजनक परिणाम भी देखने को मिले। जो लोग पन्ना टाईगर रिजर्व की आलोचना करते थे वे भी पर्यावरण संरक्षण व बाघों के वजूद को बचाये रखने की बात करने लगे। वन्यजीव प्रेमी व पर्यावरण से जुड़े लोगों का भी यह मानना है कि सिर्फ सरकारी प्रयासों से न तो जंगल की सुरक्षा हो सकती है और न ही वन्य प्राणियों का संरक्षण किया जा सकता है। इसके लिए जनता की भागीदारी बेहद जरूरी है। इस बात को ध्यान में रखकर आम जनता की भागीदारी बाघ संरक्षण में सुनिश्चित करने के लिए पन्ना टाईगर रिजर्व के पूर्व क्षेत्र संचालक के अथक प्रयासों से बाघ पुनस्र्थापना योजना को चमत्कारित सफलता प्राप्त हुई। उन्होंने 16 अप्रैल को प्रथम बाघ शावक का जन्म दिन उत्सव की तरह मनाने की परम्परा शुरू की।
बाघ के जन्मोत्सव के तहत सुबह नगर के छत्रसाल पार्क से जागरुकता रैली निकाली गई। इसमें स्कूली बच्चे हाथों में तख्ती लिए हुए बाघ, जंगल और वन्य जीवों को बचाने का संदेश दे रहे थे। इसको लेकर बच्चों में खासा उत्साह देखा गया। वहीं दूसरी ओर शाम को शाम को कर्णावती प्राकृति व्यााख्या केंद्र मड़ला में केक काटकर बाघ का जन्मोत्सव मनाया गया। इसमें तत्कालीन फील्ड डायरेक्टर मूर्ति, फील्ड डायरेक्अर केएस भदौरिया सहित पार्क के अधिकारी और कर्मचारी सहित जिला प्रशासन के आला अधिकारी भी मौजूद रहे।