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नीमच

ऐसा क्या हुआ कि कांग्रेस प्रत्याशियों की फूल गई अभी से सांसें

कांग्रेसियों की सच्चाई जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर

नीमचNov 09, 2018 / 10:55 pm

harinath dwivedi

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नीमच. लगता है कि पिछले चुनाव में कांग्रेस द्वारा की गई गलती से संगठन ने कोई सबक नहीं सीखा। इस बार पार्टी ने एक नहीं जिले की तीनों सीटों पर बाहरी प्रत्याशियों पर दांव लगाया है। इनमें से दो तो ऐसे प्रत्याशी है जो संबंधित विभानसभा क्षेत्र में कभी सक्रिय रहे ही नहीं।

काफी करना पड़ेगा संघर्ष
नीमच विधानसभा सीट पर जावद से सत्यनारायण पाटीदार, जावद विधानसभा सीट पर नीमच से राजकुमार अहीर और मनासा विधानसभा सीट पर नीमच से उमरावसिंह गुर्जर को कांग्रेस पार्टी ने अपना अधिकृत प्रत्याशी बनाया है। राजनीतिक दृष्टि से देखा जाए तो केवल राजकुमार अहीर ही एकमात्र ऐसे प्रत्याशी है जो पूरे पांच साल जावद विधानसभा क्षेत्र में सक्रिय रहे हैं। इसका उन्हें लाभ भी मिला, लेकिन वहां समंदर पटेल ने बगावत का बिगुल बजा दिया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया जब जावद और मनासा क्षेत्र के दौरे पर आए थे तब समंदर पटेल ने ही पूरे आयोजन की बागड़ोर संभाली थी। वे जावद क्षेत्र से टिकट के प्रबल दावेदार माने जा रहे थे। इस बार फिर जावद से राजकुमार अहीर का नाम फाइनल होने के बाद समंदर ने बागी बन मैदान में उतरने का निर्णय ले लिया है। मनासा सीट से नीमच कृषि उपज मंडी संचालक उमरावसिंह गुर्जर को मैदान में उतारा गया है। वे मनासा क्षेत्र में कभी सक्रिय नहीं रहे। इसका नुकसान उन्हें हो सकता है। नीमच से जावद निवासी सत्यनारायण पाटीदार मैदान में हैं। उन्हें यहां लोग पहचानते तक नहीं है। इसका खामियाजा पार्टी को उठाना पड़ेगा। पिछले चुनाव में जावद से कांग्रेस ने अधिकृत प्रत्याशी के रूप में राघुराजसिंह चौरडिय़ा को मैदान में उतारा था। तब राजकुमार अहीर बागी बन मैदान में उतरे थे। इसके चलते कांग्रेस की जमानत तक जब्त हो गई थी। इस बार भी कांगे्रस के अधिकृत प्रत्याशी को बागी का सामना करना पड़ सकता है। मनासा और नीमच विधानसभा सीट पर दोनों की बाहरी प्रत्याशियों को कार्यकर्ताओं तक पहुंचने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ेगा। मतदाता तक पहुंचना तो दूर की बात है। यदि वे कार्यकर्ताओं विशेषकर पोलिंग एजेंटों तक पहुंचने में सफल रहते हैं तो जीत की उम्मीद बनी रह सकती है। इसके साथ ही मात्र १९ दिन में दोनों विधानसभा क्षेत्र में गांव गांव पहुंचना भी दोनों प्रत्याशियों के लिए मुश्किल भरा रहेगा। टिकट वितरण को लेकर कार्यकर्ताओं में पनप रहे रोष को शांत करने के लिए संगठन स्तर पर वरिष्ठ पदाधिकारियों को काफी मशक्कत करना पड़ेगी।

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