नागदाPublished: Feb 12, 2019 01:29:04 am
Gopal Bajpai
एक महीने से सोनोग्राफी सुविधा बंद, स्टाफ की कमी के कारण फार्मासिस्ट कर रहे डाटा एंट्री
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उज्जैन. निजी की तरह सरकारी अस्पतालों में मरीजों को बेहतर सुविधा देने के दावे होते हैं, लेकिन जिला चिकित्सालय में मरीजों को ठंड में भी फर्श पर लेटना पड़ रहा है। कारण सिर्फ इतना है कि अस्पताल प्रबंधन के पास पर्याप्त बिस्तर व पलंग नहीं हैं। पलंग खाली नहीं होने की स्थिति में मरीज या परिजन को मुश्किल से कंबल आवंटित करवाते हैं और उसी पर लेटकर उपचार करवाते हैं।
जिला अस्पताल सहित अन्य शासकीय अस्पतालों में करोड़ों रुपए खर्च होने के बावजूद मरीजों को आवश्यक सुविधाओं के लिए भी परेशान होना पड़ रहा है। सोमवार को जिला अस्पताल के सी वार्ड में खाली पलंगों की कमी के चलते आधा दर्जन से अधिक मरीज ठंडे फर्श पर लेटकर उपचार करवाते मिले। इन्हें जमीन पर बिछाने के लिए गद्दे तक नहीं मिले। मजबूरी में जिन कंबलों का उपयोग ओढऩे में किया जाता है, उन्हें ही बिछाकर मरीज उपचार करवा रहे थे। मक्सी रोड निवासी सौरभ भटनागर ने बताया, तबीयत खराब होने के कारण वे सुबह उपचार के लिए जिला अस्पताल पहुंचे थे। यहां उन्हें एडमिट कर लिया गया, लेकिन पलंग खाली नहीं होने के कारण जमीन पर ही लेटना पड़ा। गद्दा मांगने पर स्टाफ ने इनकार कर दिया। काफी जद्दोजहद के बाद एक कंबल मिला, जिसे बिछाकर वे लेटे और उपचार करवाया।
दो साल पहले मशीन आई, अब मिलेगी सुविधा
मरीजों को जरूरी नई सुविधाएं उपलब्ध कराने में अस्पताल प्रबंधन कितना फेल है, इसका एक उदाहरण ब्लड सेप्रेशन मशीन का है। जिला अस्पताल में अब तक ब्लड सेप्रेशन की सुविधा उपलब्ध नहीं हो पाई है। इसके लिए वर्ष 2016 में ब्लड कम्पोनेंट सेप्रेशन यूनिट स्थापित की गई थी। इसके बाद लाइसेंस के लिए जरूरी अन्य व्यवस्थाएं जुटाने में ही प्रबंधन को करीब दो वर्ष लग गए। व्यवस्थाएं जुटाने के बाद अप्रैल-मई 2018 में लाइसेंस के लिए आवेदन किया गया। लाइसेंस जारी करने से पूर्व सितंबर 2018 में टीम निरीक्षण करने आई और अक्टूबर में लाइसेंस जारी किया गया। इसके बावजूद अभी तक यूनिट शुरू नहीं हो पाई है। इस दौरान करीब आधा दर्जन सिविल सर्जन बदल चुके हैं। अब मंगलवार को स्वास्थ्य मंत्री सिलावट ब्लड कम्पोंनेंट यूनिट का शुभारंभ कर सकते हैं।
लांड्री पर एक महीने में भी नहीं हुआ निर्णय
अस्पताल के चादर व अन्य कपड़ों को धोने के लिए चरक अस्पताल में लांड्री स्थापित की गई थी। इसका संचालन निजी कंपनी को दिया गया था। ठेकेदार द्वारा सरकारी लांड्री का बेजा लाभ लेते हुए निजी कपड़े भी धोए जाते थे। तत्कालीन सिविल सर्जन राजू निदारिया द्वारा किए निरीक्षण में उक्त अनियमितता सामने आने के बाद प्रशासन ने लांड्री सील कर दी थी और आगामी कार्रवाई के लिए कलेक्टर को रिपोर्ट प्रस्तुत की गई थी। इसके बाद से ही मामले में कोई निर्णय नहीं हो पाया है। इधर अस्पताल के पिछले भाग में लांड्री के बाहर गंदगी पसरी हुई है।
जनवरी से सोनोग्राफी सुविधा बंद
जिला अस्पताल में मरीजों को सोनोग्राफी की सुविधा भी नहीं मिल रही है। अस्पताल में सोनोग्राफी की दो मशीनें हैं। पूर्व में सप्ताह के दो दिन सोनोग्राफी सुविधा दी जाती थी। वर्तमान में दो मशीन में से एक-एक लंबे समय से बंद है वहीं दूसरी विशेषज्ञ के अभाव में जनवरी से उपयोग नहीं हो पा रही है। ऐसे में हर सप्ताह 100 से अधिक मरीज को बैरंग लौटना पड़ रहा है।
स्टाफ की कमी, मरीज भी परेशान
अस्पताल में स्टाफ की कमी के चलते स्वास्थ्य व्यवस्थाएं खासी प्रभावित हो रही हैं। स्थिति यह है कि फार्मासिस्ट को डाटा एंट्री करना पड़ रही है। अस्पताल में ही मरीजों को नि:शुल्क दवाई दी जाती है। यह दवाई फार्मासिस्ट द्वारा दी जाती है। प्रतिदिन जितनी दवाइयां दी जाती हैं, तय सॉफ्टवेयर में इनकी एंट्री करना आवश्यक है। इसके लिए कम्प्यूटर ऑपरेट होना जरूरी है। ऑपरेटर्स की कमी के चलते फार्मासिस्ट को ही मजबूरी में डाटा एंट्री करना पड़ती है। ऐसी ही स्थिति अन्य शाखाओं में भी है। इधर कई बार दवाई की समय पर सप्लाई नहीं होने से मरीजों को परेशान होना पड़ता है।