कथा प्रसंग द्वारा आत्मा के गुणों को दर्शाते हुए कहा कि आत्मा अप्रतिहत गति वाली है, जिस तरह शरीर की अवस्था बदलती रहती है, उसकी शक्ति घटती बढ़ती है। परन्तु जीव या आत्मा सदा एक समान रहते है। शरीर की बदलती पर्याय के कारण शरीर तरुण अवस्था में भार उठाने में समर्थ रहता है, परन्तु वृद्धावस्था में वह असमर्थ हो जाता है, उसी प्रकार जब साधक की मूढ़ता दूर हो जाती है, तब वह आत्म ज्ञान को प्राप्त कर सम्यक्तव की प्राप्ति कर लेता है। इस अवसर पर पूनमचंद बैद ने बताया कि शिविर की प्रभावना के लाभार्थी शोभादेवी, सुशीलकुमार चौरडिय़ा परिवार रहा तथा प्रवचन की प्रभावना के लाभार्थी ताराचंद, निर्मलचंद, नरपतचंद, सुशीलकुमार चौरडिय़ा परिवार रहा। दर्शन प्रतिमा के लाभार्थी मदनदेवी, सज्जनराज, विजयराज ललवानी परिवार रहा।
बेस्ट आउट ऑफ वेस्ट प्रतियोगिता में मनीषा ललवानी प्रथम, प्रेमलता ललवानी द्वितीय तथा अक्षिता ललवानी ने तृतीय स्थान प्राप्त किया। बच्चों के लिए आयोजित विभिन्न प्रतियोगिताओं में नवकार महामंत्र प्रतियोगिता में प्रिंस बोहरा प्रथम, स्नेहा नाहटा द्वितीय व हर्षित ललवानी को तृतीय पुरस्कार प्रदान किए गए। एक पैर पर खड़े रहने की प्रतियोगिता में स्नेहा नाहटा को प्रथम एवं अक्षिता ललवानी को द्वितीय पुरस्कार प्रदान किए गए। सभी विजेताओं को पुरस्कार जयमल जैन महिला मंडल द्वारा प्रदान किए गए। प्रवीण चौरडिय़ा ने बताया कि प्रवचन में तीन प्रश्नों के उत्तर देने वाले पुष्पा ललवानी, मुस्कान भुरट, करण भुरट को चेतनप्रकाश डूंगरवाल परिवार बेंगलोर की ओर से पांच-पांच ग्राम के चाँदी के सिक्कों से सम्मानित किया गया। इस दौरान कमलचंद ललवानी, मूलचंद ललवानी, पी. प्रकाशचंद ललवानी, प्रीतम ललवानी आदि मौजूद रहे।