पिछड़ों के सहारे 2019 में सत्ता का स्वाद चख चुकी भाजपा की एक बार फिर इन्हीं वोटर के सहारे चुनावी नैया पार करने की तैयारी में है। इसके लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या से लेकर पार्टी के दिग्गज नेता ओबीसी सम्मेलन के जरिये ओबीसी को रिझाने की कवायद में जुटे हैं। बीजेपी अब तक अलग-अलग पिछड़ी जातियों के 21 सम्मेलन कर चुकी है, जबकि अभी और सम्मेलन प्रस्तावित हैं। केशव मौर्या से लेकर पार्टी के कई बड़े नेता ओबीसी सम्मेलनों में कहते नहीं थकते कि पिछड़ों का हित बीजेपी में ही सुरक्षित है। इसके अलावा योगी सरकार ओबीसी युवाओं के लिए जहां तमाम योजनाएं ला रही है, वहीं नि:शुल्क गैस कनेक्शन देकर अति पिछड़े परिवारों तक पहुंचना चाहती है। बीते दिनों सीएम योगी ने अति पिछड़ों तथा अति दलितों को अलग से आरक्षण दिये जाने की घोषणा कर ओबीसी वोटरों को सहेजने की चाल चली है। इसके अलावा ओबीसी आयोग को संवैधानिक दर्जा दिलाने की कोशिश बीजेपी की इसी रणनीति का अहम हिस्सा है। हाल ही में प्रदेश सरकार ने कम्यूटर ट्रेनिंग के जरिये 2022 तक एक लाख ओबीसी युवाओं को रोजगार देने का दावा किया है। इसके अलावा पिछड़ा वर्ग के छात्र-छात्राओं को सभी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिये नि:शुल्क कोचिंग की भी व्यवस्था भी ओबीसी तक पहुंच बनाने की कोशिश मानी जा रही है।
अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी 25 सितंबर से उत्तर प्रदेश के सभी 75 जिलों में पिछड़ा वर्ग सम्मेलन करने जा रही है। मंगलवार को अमेठी जिले से इसकी शुरुआत हुई। इसके बाद समाजवादी पार्टी हर दिन सूबे के किसी न किसी जिले में पिछड़ा वर्ग सम्मेलन कर इस समुदाय के लोगों को साथ जोड़ने की कोशिश करेगी। अभी तक बीजेपी के जातीय सम्मेलन की आलोचना करने वाले अखिलेश यादव की पार्टी भी अब हर जिले में पिछड़ा वर्ग सम्मेलन करेगी। सपा प्रमुख ने इसका जिम्मा पार्टी के पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ अध्यक्ष दया राम प्रजापति समेत पिछड़े वर्ग के नेताओं को सौंपा है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि पिछड़ों के नाम पर समाजवादी पार्टी के पास सिर्फ यादव बिरादरी ही रह गई है, जबकि मुलायम के समय में प्रजापति, पटेल और शाक्य जैसी बिरादरी समाजवादी पार्टी के कोर वोटर माने जाते थे। माना जा रहा है कि सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव की नसीहत के बाद अखिलेश ने ओबीसी सम्मेलन का फैसला किया है। इन सम्मेलनों के जरिये सपाई एक ओर जहां अखिलेश सरकार में किये कामों के बारे में जनता को बताएंगे, वहीं महंगाई, कानून-व्यवस्था, नोटबंदी और जीएसटी जैसे कई मुद्दों पर सरकार को घेरेंगे। समाजवादी पार्टी अमेठी के बाद सुलतानपुर, जौनपुर, भदोही, वाराणसी, चंदौली, सोनभद्र, मिर्जापुर, इलाहाबाद, कौशाम्बी, फतेहपुर और रायबरेली में पिछड़ा वर्ग सम्मेलन करेगी।
मायावती की नजर दलित-मुस्लिम गठजोड़ के साथ ही अति पिछड़ों को बसपा के साथ लाने की है। यूपी में सपा-बसपा और कांग्रेस पार्टी के गठबंधन की भले ही अटकलें चल रही हैं, लेकिन मायावती भी हाथ पर हाथ धरे बैठे नहीं रहना चाहतीं। कभी बसपा के लिये स्टेपनी वोट बैंक रहा पिछड़ी जातियों का समूह 2014 में बीजेपी के साथ चला गया था। 2017 के विधानसभा चुनाव में मायावती को इस तबके का साथ नहीं मिला, नतीजन करारी हार का सामना करना पड़ा। सभी दलों की तरह इस बार मायावती की नजर भी पिछड़ों पर है। मायावती ने बसपा कार्यकर्ताओं को स्पष्ट आदेश दिया है कि बूथ स्तर पर पार्टी की गठित हो रही कमेटियों में पिछड़ी जाति के सदस्यों को भी अनिवार्य रूप से शामिल किया जाये।
ओबीसी वोटर की अहमियत कांग्रेस पार्टी भी समझती है। बीते दिनों कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने नई दिल्ली में पिछड़ा वर्ग सम्मेलन आयोजित किया था। पूरे आयोजन के दौरान कांग्रेसियों की कोशिश कांग्रेस पार्टी को ओबीसी हितैषी पार्टी बताने में रही। सम्मलेन में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा था कि बीजेपी सरकार पिछड़ों की उपेक्षा कर रही है। उत्तर प्रदेश में पार्टी नेता व पदाधिकारी इस वर्ग के मतदाताओं को रिझाने में लगे हैं।
उत्तर प्रदेश में पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं की संख्या करीब 45 फीसदी है। इनमें 10 फीसदी यादव, 3-4 फीसदी लोधी, 4-5 फीसदी कुर्मी-मौर्य और अन्य का प्रतिशत 21 है। ओबीसी के अलावा यूपी में 21-22 फीसदी दलित वोटर, 18-20 फीसदी सवर्ण वोटर और 16-18 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं। ओबीसी यूपी में सबसे बड़ा जाति समूह है। यह समुदाय किसी को भी हराने-जिताने में सक्षम है। इसलिये ह दल गुणा-भाग के जरिये इन्हें अपने खेमे में रखना चाहता है।