चंदनिया पारा शिव मंदिर के पास तीन-चार स्थानों पर महिलाओं ने पूजा की और बरगद-पीपल के 108 फेरे भी लगाए। यहां पर दिन भर महिलाओं के आने-जाने का क्रम जारी रहा। कुछ नई नवेली दुल्हनों के अलावा जिनके घरों में बरगद पीपल के पेड़ हैं, उन्होंने घरों में ही पूजा कर परिक्रमा की।
परिक्रमा के दौरान महिलाओं ने विभिन्न प्रकार की वस्तुएं जैसे महावर की पुडिय़ा, चुडिय़ां आदि भगवान को समर्पित किया। चना बेसन से बने पकवान के साथ ऋतुफल भी चढ़ाए गए। बांस की पतली सिंक में बरगद के लिए बारह व पीपल के लिए पांच बेसन से बने पकवान चढ़ाए गए। बाद में व्रतधारी महिलाओं ने इसका प्रसाद भी ग्रहण किया।
पौराणिक मान्यता के अनुसार जब राजा सत्यवान की मृत्यु हो गई, तो अपने पति को पुन: जीवित करने के लिए उनकी पत्नी सावित्री ने बरगद व पीपल की पूजा की थी। व्रत के प्रभाव से यमराज को हार मानना पड़ा और सत्यवान को पुन: जीवन मिल गया। इसी मान्यता को मानते हुए सौभाग्यवती महिलाएं अपने पति की लम्बी उम्र की कामना के लिए यह व्रत रखती हैं।