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जांजगीर चंपा

जिले में कुपोषित बच्चे २९ हजार मगर एनआरसी के सभी १० बेड खाली

ये कैसा वजन त्योहार : कुपोषित बच्चों को भर्ती कर इलाज करा पाने में महिला एवं बाल विकास विभाग का अमला फेलजिला अस्पताल के पोषण पुनर्वास केंद्र में ताला लटकने की नौबत, १० महीने में मात्र १०८ बच्चों का हुआ इलाज

जांजगीर चंपाFeb 19, 2019 / 09:09 pm

Shiv Singh

जिले में कुपोषित बच्चे २९ हजार मगर एनआरसी के सभी १० बेड खाली

जिले में कुपोषित बच्चे २९ हजार मगर एनआरसी के सभी १० बेड खाली

जांजगीर-चांपा. जिला अस्पताल के पोषण पुनर्वास केंद्र (एनआरसी) में ताला लटकने की नौबत आ गई है। क्योंकि वर्तमान में यहां भी बच्चा भर्ती नहीं है। एनआरसी के पूरे १० के १० बेड खाली पड़े हैं। इसका मतलब यह नहीं समझे, कि जिले में अब कुपोषित बच्चे नहीं है। ऐसे बच्चों की संख्या तो २९ हजार के करीब है, मगर इन बच्चों को एनआरसी तक लाकर इलाज कराने वाला महिला एवं बाल विकास विभाग का अमला ही बेपरवाह हो गया है जिसके कारण कुपोषित बच्चों का समुचित इलाज नहीं हो पा रहा।

इन बच्चों को पोषण पुनर्वास केंद्र तक लाकर इलाज कराने की जिम्मेदार महिला एवं बाल विकास विभाग के मैदानी अमले यानी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की है क्योंकि आंगनबाड़ी केंद्रों में आने वाले सभी बच्चों का रिकार्ड कार्यकर्ता-सहायिकाओं के पास रहता है कि कौन बच्चा कुपोषित है, लेकिन स्थिति यह है कि कुपोषित बच्चों को पोषण पुनर्वास केंद्र तक लाने में कोताही बरती जा रही है। यही कारण है कि २९ हजार बच्चे कुपोषण की श्रेणी में होने के बावजूद पोषण पुनर्वास केंद्र में ताला लटकने की नौबत आ जा रही है।
आंकड़े बता रहे हैं कि जिम्मेदार अमला कुपोषित बच्चों का इलाज कराने में कितना सजग है। जिला अस्पताल प्रबंधन के अनुसार एनआरसी में बीते १० माह (अप्रैल १८ से जनवरी १९ तक) में मात्र १०८ कुपोषित बच्चों का ही इलाज हुआ है जबकि एनआरसी में १० बेड है। यहां एक बच्चे को अधिकतम १५ दिन रखकर इलाज किया जाता है। यानी १० बेड के हिसाब से महीने में २० बच्चे। महीने में २० बच्चे ही अगर ईमानदारी से भर्ती कराए जाए तो २०० बच्चों का इलाज होता। मगर ले-देकर १०० बच्चों का इलाज हो पाया। ऐसी स्थिति तब है कि एनआरसी के नोडल अफसर और स्टाफ द्वारा बेड खाली होने की जानकारी तत्काल महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारियों को दे दी जाती है। मंगलवार को पत्रिका की टीम ने जब जिला अस्पताल में संचालित एनआरसी का जायजा लिया तो सभी दसों बेड खाली मिले। डाईटिशियन सुषमा बघेल ने बताया कि इस महीने १५ फरवरी तक यहां ७ बच्चे भर्ती थे। उनकी छुट्टी हो गई जिससे सभी बेड खाली हो गए। वहीं इस संबंध में जब एनआरसी के नोडल अफसर शिशु रोग चिकित्सक व्हीके श्रीवास्तव से जानकारी लेने के बाद उन्होंने बताया कि बेड खाली होते ही इसकी जानकारी महिला एवं बाल विभाग के अफसरों को दी जा चुकी है, मगर अभी तक कोई भी बच्चों को लेकर नहीं आ रहा। एनआरसी तक बच्चों को लाने की जिम्मेदारी उनकी नहीं होती, यह जिम्मेदारी महिला एवं बाल विकास विभाग की रहती है।

इलाज में देरी कुपोषित बच्चों के लिए खतरनाक
डॉक्टरों के अनुसार कुपोषित बच्चों का समय पर इलाज नहीं होना खतरनाक है। शिशु रोग डॉक्टरों के अनुसार कुपोषण से ही शरीर में बीमारियों की शुरूआत होती है। ये ही सभी बीमारियों की जड़ बनती है। खासकर छोटे बच्चों के लिए यह घातक हो सकता है। ऐसे बच्चों का समय पर इलाज होना जरूरी रहता है। इसीलिए सरकार ने आंगनबाड़ी केंद्रों में दर्ज कुपोषित बच्चों को सुपोषित बनाने पोषण पुनर्वास केंद्र की स्थापना की गई है ताकि केंद्र में भर्ती कर कुपोषित बच्चों को बेहतर पोषक आहार और ट्रीटमेंट दिया जा सके। केंद्र में बच्चे के साथ उसकी मां की रहने और खाने-पीने की पूरी व्यवस्था शासन करती है तो १५ दिन रहने के एवज में प्रति दिन १५० रुपए के रूप में राशि भी देती है ताकि यहां से जाने के बाद भी पालक उस पैसे से बच्चे को पोषण आहार खिला सके।

इधर वजन त्योहार मना रहा विभाग
मजेदार बात यह है कि जिले में ऐसी स्थिति तब देखने को मिल रही है जब महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा आंगनबाड़ी केंद्रों में वजन त्योहार मनाया जा रहा है। आंगनबाड़ी केंद्रों में २० फरवरी तक यह अभियान अभी और चलेगा। जिसमें आंगनबाड़ी केंद्रों में दर्ज बच्चों का वजन और माप लेकर सारी जानकारी अपलोड की जा रही है। इसी आंकड़े के आधार पर फिर रिपोर्ट बनेगी जिससे पता चलेगा कि पिछले साल की तुलना में कुपोषण में कितनी कमी आई। यानी कितने कुपोषित बच्चे सुपोषित हो पाए। उल्लेखनीय है कि पिछले साल २०१८ के वजन त्यौहार की रिपोर्ट में 23 हजार 772 बच्चे कुपोषित और 5867 बच्चे गंभीर कुपोषित मिले थे। इस तरह 29 हजार 639 बच्चें कुपोषित की श्रेणी में आए थे। अब फिर वजन त्योहार मनाया जा रहा है जिसकी रिपोर्ट आने के बाद ताजा स्थिति सामने आएगी कि विभाग को कुपोषण मिटाने में कितनी सफलता मिली।

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