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जांजगीर चंपा

महिला कृषक ने पहली बार अम्बारी पटवा के रेशे से तैयार किया कपड़ा, जिले को मिलेगी अलग पहचान

– कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों की मदद से नवाचार कर रही पार्वती, आचार व जैम भी किया तैयार

जांजगीर चंपाOct 22, 2019 / 06:03 pm

Vasudev Yadav

महिला कृषक ने पहली बार अम्बारी पटवा के रेशे से तैयार किया कपड़ा, जिले को मिलेगी अलग पहचान

महिला कृषक ने पहली बार अम्बारी पटवा के रेशे से तैयार किया कपड़ा, जिले को मिलेगी अलग पहचान

जांजगीर-चांपा. कहते हैं जहां चाह होती है वहीं राह होती है और इसी बात को चरितार्थ करते हुए सिवनी (चांपा) की महिला कृषक पार्वती देवांगन ने अपने पुस्तैनी कार्य में नवाचार को जोड़ते हुए पूरे भारत वर्ष में पहली बार अपने हाथों से लाल अंबारी पटवा के रेशे से कपड़ा तैयार करने में सफलता हासिल की है।
उल्लेखनीय है कि केले के रेशे और अलसी के डंठल से कपड़ा तैयार करने के बाद अब जिले की महिला कृषक पार्वती जो बुनकर परिवार से आती है, उन्होंने लाल अम्बारी पटवा के रेशे से उच्च क्वालिटी का कपड़ा तैयार किया है। इस कार्य में जिले के कृषि विज्ञान केंद्र की अहम भूमिका है जहां के वैज्ञानिकों ने इसी वैज्ञानित खेती एवं अन्य उत्पादों की उपयोगिता बताई। महिला कृषक पार्वती ने नवाचार के लिए ऐसे पौधों का चयन किया जिसका फल विभिन्न औषधि गुणों का भरमार है।
इसके फल से सब्जी के विभिन्न व्यंजन, जूस, खाद्य तेल, आचार जैम तैयार भी किया है जिसकी अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बहुत मांग बढ़ रही है। लाल अंबारी पटवा के रेशे को महत्व को जानकारी महिला कृषक ने नया कार्य करके दिखाया। महिला किसान ने स्वयं के खेत में इसकी खेती भी की है। जिले के महिला किसान के इस नवाचार से जिले के साथ प्रदेश एवं देश की महिलाओं को भी प्रेरणा मिलेगी। इस नवाचार से किसानों को इस पौधे की खेती का क्षेत्र भी बढ़ेगा, जिससे आमदनी एवं स्वास्थ्य लाभ भी मिल सकेगा।
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महिला कृषक ने पहली बार अम्बारी पटवा के रेशे से तैयार किया कपड़ा, जिले को मिलेगी अलग पहचान

इस तरह तैयार किया कपड़ा
महिला कृषक पार्वती ने बताया कि फसल पकने के बाद फल को अलग कर बेकार डंठल को 12 से 15 दिन तक पानी में सड़ाकर रेशे को अलग किया जाता है। रेशे को 80 डिग्री सेल्सियस तापमान में पानी में खौलाकर सिलिकस जो चिपचिपापन लिए हुए रहता है अलग कर लिया जाता है। इसे सूखाकर फिर धागा निकाला जाता है। इसके बाद बाबीन तैयार कर हाथकरघा से कपड़ा तैयार किया जाता है। जिसे प्राकृतिक रंग के साथ-साथ विभिन्न रंग के कपड़े तैयार किए जा सकते हैं।

रेशे अत्यंत कोमल होने से बेस्ट क्वालिटी का कपड़ा
लाल अंबारी (पटवा) की खेती बिना सिंचाई के हो जाती है और पशुओं द्वारा भी कोई भी प्रकार का नुकसान नहीं होता। लाल अंबारी के रेशे बहुत ही कोमल होते हैं जिससे गुणवत्तापूर्ण कपड़ा तैयार हो रहा है। खेती आसानी से टिकरा या बेकार जमीन पर की जा सकती है। लाल अंबारी पटवा एक मालवेसी कुल का पौधा है जिसे वैज्ञानिक नाम हिबिसकस सबडेरिफा है। इसे अलग-अलग राज्य में अलग-अलग नाम से जाना जाता है।

अंबारी पटवा में औषधि गुणों की भरमार
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, यह पौधा औषधीय गुणों का भरपूर है। इसके जूस में एंटी आक्सीडेंट एवं प्राकृतिक भोजन के रूप में काम आती है। इसका जूस कैंसर, शुगर, हाईपरटेंशन में गुणकारी होता है। इसके पौधे में प्रचुर मात्रा में खनिज पदार्थ, फेयर एवं मैग्नेशियम तथा विटामिन्स के साथ एस्कार्बिक एसिड आदि भी पाए जाते हैं। औषधि गुण में एन्टी हाइपरटेक्सीव, एन्टी सेप्टिक, सेडेटिव, अयुरेटिक, पाचनशील, परगेटिव, डेमूसूसेन्ट आदि गुण होते हैं।

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महिला कृषक की यह बड़ी सफलता : कृषि वैज्ञानिक
कृषि विज्ञान केंद्र जांजगीर-चांपा के प्रभारी केडी महंत ने बताया कि जिले की महिला कृषक पार्वती देवांगन ने नवाचार करते हुए पूरे भारत वर्ष में लाल अंबारी पटवा के बेकार रेशे का उपयोग कर कपड़ा तैयार करने में सफलता हासिल की है। इस नवाचार में कृषि विज्ञान केंद्र की भी भूमिका महत्वपूर्ण है। इससे उच्च गुणवत्ता का कपड़ा तैयार हुआ है। इससे अंबारी पटवा की खेती का क्षेत्र बढ़ेगा वहीं किसानों की आदमनी भी बढ़ेगी।

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