समाज में विवाह के दौरान होता है कई अनूठी परंपराओं का निर्वहन
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फेरे से ठीक पहले दूल्हे के मुंह से निकल गई ऐसी बात की शादी में मच गया हड़कंप, फिर बिना दुल्हन के लौटी बारात श्रीमाली ब्राह्मण समाज में विवाह के दौरान दूल्हे का विवाह के लिए दो बार ससुराल की चौखट पर आना व इस बीच में दुल्हन का घोड़ी पर बैठकर ससुराल पक्ष के यहां मुंह दिखाई के लिए जाना जिसे इस समाज में कुलेवा व आड़ बंदोला की रस्म से पहचान बनीं हुई है वहीं वेवाणों का आपस में विवाह की रस्म भी अपने आप में अनोखी है। दूल्हे का विवाह के समय में एक बार नहीं अपितु दो बार ससुराल की चौखट पर पहुंचने की इस प्रथा को कुलेवा का नाम दिया गया है।
ऐसे प्रारंभ हुई थी कुलेवा की परंपरा
इस समाज के बड़े-बुजुर्गों के अनुसार वर्षों पूर्व घटित घटना के तहत पहली बार विवाह के लिए आने वाले दूल्हे को कोई एक राक्षसी ऐसी थी जो कि फेरे लेते वक्त उस दूल्हे का भक्षण कर लेती थी जिससे विवाह की परंपरा अधूरी रहने लगी तो उस वक्त के लोगों ने नई परपरा को जन्म दिया। जिसके तहत उस राक्षसी को चकमा देने के लिए दूल्हे को ससुराल की चौखट पर एक बार सजी-सजाई चवरी में लाकर खूंटी वंदना की रस्म निभाने के पश्चात बिना ब्याह पुन: अपने घर लौटने की परंपरा बनाई गई। उस समय जब वह राक्षसी आई तो दूल्हे की जगह महिलाओं को आपस में माला पहनाते देखा तो उसे बैरंग लौटना पड़ा था। उसके बाद से लगातार पिछले लंबे समय से इस समाज में यह अनूठी परंपरा चल रही है जिसे कुलेवा कहते है। कुलेवा के तहत ही वर व वधू पक्ष की महिलाओं का आपस में विवाह होने की परंपरा भी सदियों से चल रही है।
घोड़ी पर सवार होकर दूल्हे की तरह पहुंचती है दुल्हन
कुलेवा से पहले वधू दूल्हे की तरह घोड़ी पर सवार होकर गाजे-बाजे के साथ दूल्हे के डेरे पहुंचती है जहां उसकी होने वाली सास मुंह दिखाई के तहत उसका माल्यार्पण व साड़ी भेंटकर समान करती है। इस परपरा को आड़ बंदोला के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा समाज में दूल्हे द्वारा चवरी में दूल्हन को अपने हाथों में उठाकर अग्नि के फेरे लेने की परंपरा भी बेहद निराली है। इसके तहत चवरी में सर्वप्रथम दूल्हा व दुल्हन चलकर अग्नि के चार फेरे लगाते है तथा इसके पश्चात दूल्हा अपनी दुल्हन को दोनों हाथों में उठाकर लगातार अग्नि के चार ओर फेरे लेता है। इसके बाद विवाह रस्म पूर्ण होती है।