करीब 15 साल पहले घर से 5 बच्चों को पढ़ाना शुरू करने वाली कुमावत सेवा भारती के सहयोग से आज शारदा कॉलोनी महेश नगर में ऐसे बच्चों के लिए स्कूल चला रही है। उनका कहना है कि उनके पास कचरा बीनने, मजदूर, झाडू बनाने वालों के बच्चे आते हैं। शुरुआत में 5 बच्चे और आज 450 छात्र-छात्राएं है। कुमावत का एक ही लक्ष्य है कि जब तक उनके पास पढऩे वाले बच्चे अपने पैरों पर खड़े नहीं हो जाते तब तक वे पीछे नहीं हटेंगी।
अड़चनें भी बहुत आई-
पांच साल तक घर में स्कूल चलाया और फिर सामुदायिक केन्द्र महेश नगर में। लेकिन कुछ समय बाद यहां से स्कूल हटा दिया गया और फिर कभी सडक़ पर तो कभी पार्क में स्कूल चलाया। किसी ने शारदा कॉलोनी में जगह दी तो यहां तिरपाल में स्कूल चलाया। वर्ष 2012 में एकाएक समय भी बदला और स्कूल के लिए जगह के साथ ही बिल्डिंग तैयार हो गई।
बच्चे प्यार से कहते ‘दादीजी’-
विमला कुमावत को पहले बच्चे मैडम कहकर पुकारते थे और मैडम से वे अब दादीजी बन गई हैं। प्यार से सब बच्चे उन्हें दादीजी कहकर बुलाते हैं। वे आज बच्चों के साथ ही अपना हर काम करती है। यहां तक कि एक छात्रा को आठवीं कक्षा की पढ़ाई कराने के लिए स्वयं ने भी आठवीं कक्षा की परीक्षा दी।
बी.टेक और नर्सिंग तक कर रहे-
कचरा बीनने से जिन्दगी शुरू करने वाले आज बीटेक, नर्सिंग कर रहे हैं। एक-एक छात्र बीटेक, नर्सिंग, एक छात्र इलाहाबाद से प्रिटिंग में डिप्लोमा, दो छात्राएं महारानी कॉलेज से बीए, एक छात्र कॉमर्स कॉलेज से बीकॉम, इसके साथ ही तीन अन्य छात्र-छात्राएं निजी कॉलेजों से स्नातक कर रही है।