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सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद पटाखा कारोबार को 8 हजार करोड़ रुपए का नुकसान

कंफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स के महासचिव प्रवीण खंडेलवाल ने कहा, “पटाखों का देश भर में सालाना 20,000 करोड़ रुपये का कारोबार होता है। इस साल बिक्री में पिछले साल की तुलना में 40 फीसदी की गिरावट आई है।

Nov 08, 2018 / 11:14 am

Saurabh Sharma

Fire works

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद पटाखा कारोबार को 8 हजार करोड़ रुपए का नुकसान

नर्इ दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पटाखों की बिक्री और उसे जलाने पर कड़े नियम लागू किए जाने के कारण देश के 20,000 करोड़ रुपए के पटाखा कारोबार पर असर पड़ा है और दिवाली के दौरान बिक्री में 40 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। पटाखा निर्माताओं ने केंद्र सरकार से ‘हरित पटाखे’ के निर्माण के लिए दिशानिर्देश जारी करने और समग्र नीति लागू करने की मांग की है।

संगठन ने की यह मांग
कंफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स के महासचिव प्रवीण खंडेलवाल ने कहा, “पटाखों का देश भर में सालाना 20,000 करोड़ रुपये का कारोबार होता है। इस साल बिक्री में पिछले साल की तुलना में 40 फीसदी की गिरावट आई है। हम सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का सम्मान करते हैं। यह पर्यावरण के लिए अच्छा है, लेकिन बाजार में मंदी छा गई है।” उन्होंने कहा कि पटाखे का कारोबार मौसमी होता है और दिवाली के दौरान ही 80 फीसदी सालाना बिक्री होती है। उन्होंने कहा, “इस उद्योग से लाखों लोग जुड़े हैं, जिनकी आजीविका प्रभावित हुई है।” उन्होंने कहा कि पटाखा निर्माता और व्यापारी सर्वोच्च न्यायालय से इस साल छूट देने की भी मांग की थी।

40 फीसदी की आर्इ कमी
खंडेलवाल के सुर में सुर मिलाते हुए सारा बंगला आतिशबाजी उन्नयन समिति के अध्यक्ष बाबला राय ने बताया, “पटाखा जलाने के लिए दो घंटे का वक्त दिया गया है। इतने कड़े नियम के कारण हमारी बिक्री में 40 फीसदी की कमी आई है।” अदालत ने हालांकि अपने आदेश में कहा कि यह दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों के लिए ही है और बाकी देश पर लागू नहीं होता है।

दिल्ली में 500 करोड़ रुपए के पटाखे बेकार
खंडेलवाल ने कहा, “दिल्ली एनसीआर क्षेत्र में सर्वोच्च न्यायालय के हरित पटाखा के आदेश के कारण 500 करोड़ रुपये का स्टॉक बेकार हो गया है। इतने कम समय में हम इसे बेचने के लिए दूसरे राज्य भी नहीं ले जा सकते हैं, न ही हम इसे हरित उत्पाद बना सकते हैं, क्योंकि सरकार की तरफ से अभी तक हरित पटाखों की परिभाषा ही नहीं बताई गई है।”

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