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उखाड़ फेंके या बना रहे, बीआरटीएस पर छिड़ी जंग

locationइंदौरPublished: Jan 16, 2019 12:50:02 pm

लोक निर्माण मंत्री सज्जन सिंह वर्मा द्वारा सवाल उठाने के बाद बीआरटीएस राजनीतिक अखाड़े का रूप लेता जा रहा है।

इंदौर@संदीप पारे और विकास मिश्रा. राजनीतिक दलों के साथ प्रबुद्ध लोग भी दो हिस्सों में बंट गए हैं। एक पक्ष का कहना है, परेशानी का सबब बने बीआरटीएस को उखाड़ फेंको। वहीं दूसरा पक्ष इसे बेहतर और सुंदर लोक परिवहन सुविधा का आधार बता रहा है। इसे पूर्णत: सफल प्रोजेक्ट घोषित करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहा है। दोनों ही पक्षों के पास अपने-अपने आंकड़े और दावे हैं। हाइ कोर्ट में भी विचाराधीन दो याचिकाओं पर अंतिम बहस चल रही है। याचिकाकर्ता ने चीफ जस्टिस के समक्ष आवेदन दे कर जल्द सुनवाई का आग्रह किया है। राजनीतिक द्वंद्व से परे पत्रिका ने पूरे मामले को दावे और आंकड़ों की हकीकत के साथ जनता के समक्ष रखने का प्रयास किया है। बीआरटीएस की स्थिति पर
कांग्रेस के वचनपत्र में भी बीआरटीएस
प्रदेश के लोक निर्माण एवं पर्यावरण मंत्री सज्जनसिंह वर्मा ने रविवार (13 जनवरी) को ट्रैफिक सुधार के लिए कहा, बीआरटीएस उखाडऩा ही एकमात्र रास्ता है। कांग्रेस के वचनपत्र में भी बीआरटीएस का उल्लेख है। कांग्रेस ने नगरीय प्रशासन विभाग की व्यवस्थाओं को लेकर कहा था बीआरटीएस जनता के लिए मुसीबत का सबब बन चुका है।
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इसलिए चाहिए तेज व बेहतर लोक परिवहन
मध्य शहर में सडक़ों की चौड़ाई अब नहीं बढ़ा सकते। शहर का आकार बढऩे से दूरिया बढ़ रही हैं। शिक्षा व रोजगार के लिए आ रहे युवाओं को मिले बेहतर लोक परिवहन के साधन।
प्रदूषण के स्तर को नियंत्रण में रखना है जरूरी। दुर्घटनाओं के बढ़ते आंकड़ों पर लगाम कसने के लिए लोक परिवहन जरूरी। शहर में चार पहिया वाहनों की खरीदी २७त्न तक बढ़ी। सडक़ों पर वाहनों की संख्या को कम करने में मदद मिली। फीडर रूट्स से दूरस्थ इलाकों को जोड़ा गया।
वैधानिकता पर सवाल
बीआरटीएस की वैधानिकता पर भी सवाल उठते रहे हैं। हाई कोर्ट में याचिका दायर करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता किशोर कोडवानी का आरोप है कि बीआरटीएस का संचालन अटल इंदौर सिटी बस लि. कंपनी करती है। कंपनी में जिला प्रशासन, इंदौर विकास प्राधिकरण और नगर निगम शामिल है। कोडवानी का कहना है, कंपनी के गठन में नियमों की अनदेखी की गई है। गठन में गड़बड़ी के कराण बीआरटीएस का मालिक कौन है, यह तय नहीं हो सका। उनका कहना है बीआरटीएस को लेकर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से एनओसी नहीं ली गई। नेशनल हाई-वे ने डीनोटिफिकेशन नहीं किया है। निगम अधिनियम से भी नोटिफिकेशन नहीं किया है, इसलिए पूरे कॉरिडोर की वैधानिकता नहीं है।
वर्तमान स्थिति
बीआरटीएस की कुल लंबाई 11.4 किमी। नौलखा से एलआइजी तक करीब 4 किमी का बॉटल नेक कॉरिडोर। एलआइजी से निरंजनपुर और नौलखा से राजीव गांधी चौराहा तक वाहन, साइकिल व पैदल चलने वालों के लिए अलग लेन। 42 एसी आइ-बस का रोजाना संचालन किया जा रहा है यहां। हर 2 से 3 मिनट की फिक्वेंसी पर एक बस। एक बस रोजाना 20 ट्रिप में 1400 यात्री ला-ले जा रही।यात्रा करने वालों में 58 प्रतिशत युवा व छात्र। 38 प्रतिशत महिलाएं कर रही हैं सफर। 40 प्रतिशत दोपहिया वाहन चालक हो रहे सवार। पूरे शहर में 400 सिटी बसों का नेटवर्क ।
5 किमी बीआरटीएस की चौड़ाई आधी
भारतीय रोड कांग्रेस के नियमों के अनुसार बीआरटीएस की चौड़ाई 200 फीट होना चाहिए। जिन मार्गों से बड़ी बसों का आवागमन होता है उनकी चौड़ाई भी इतनी ही होना चाहिए। इंदौर में राजीव गांधी चौराहा से निरंजनपुर के बीच 11.4 किलोमीटर लंबे बीआरटीएस में से 5.30 किलोमीटर हिस्से (एलआइजी से नौलखा) के बीच इसकी चौड़ाई सिर्फ 105 फीट है, यानी इस हिस्से में बीआरटीएस आधा है। बीआरटीएस के खिलाफ हाई कोर्ट में दो जनहित याचिका विचाराधीन हैं। कोर्ट के आदेश पर संभागायुक्त द्वारा पेश रिपोर्ट के मुताबिक निरंजनपुर से राजीव गांधी चौराहे के बीच प्रतिदिन करीब २१ लाख लोग सफर करते हैं। इसमें से 40 से 50 हजार बीआरटीएस की आई बस का इस्तेमाल करते हैं। साढ़े पांच लोग स्कूल बसों, इंटरसिटी बसों, मैजिक सहित अन्य कंपनियों की बसों में परिवहन करते हैं। यहां गुजरने वाले 21 लाख में से सिर्फ करीब 50 हजार के लिए सडक़ का 43 फीसदी हिस्सा सुरक्षित रखा गया है। बचे 20 लाख 50 हजार लोगों के लिए 57 फीसदी हिस्सा बचा है, जो अनुचित है। रैलिंग तोडऩा चाहिए।
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बीआरटीएस के खिलाफ

-जिम्मेदारों पर दंडात्मक कार्रवाई हो
बीआरटीएस किसी भी रूप में सफल नहीं कहा जा सकता है। इस गैरवैधानिक और गैरसंवैधानिक प्रोजेक्ट को लागू करने वाले जिम्मेदार अफसरों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की जाना चाहिए। अफसरों के कारण आम जनता के करोड़ों रुपए जो गलत प्रोजेक्ट में लग गए हैं, वह राशि वसूल की जाए। कोर्ट में मेरी लड़ाई जारी है।
किशोर कोडवानी, हाई कोर्ट में याचिकाकर्ता
-बीआरटीएस सुविधा नहीं शहर के लिए दुविधा
कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में स्पष्ट लिखा है, बीआरटीएस से आम जनता को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। इस पर जाम से प्रदूषण बढ़ता है और ईंधन का भी दुरुपयोग हो रहा है। यह सुविधा नहीं, शहर के लिए दुविधा बन गया है। इससे हुए नुकसान की जांच की जाएगी, जिम्मेदारों पर कार्रवाई की जाएगी।
सज्जन सिंह वर्मा, मंत्री, लोक निर्माण विभाग
-जाम से परेशान शहरवासी, बच्चों को भी दिक्कत
बीआरटीएस की अवधारणा सुगम ट्रैफिक के लिए बनाई गई थी, लेकिन देश के साथ विदेश में भी यह सफल नहीं हो सकी है। इंदौर के बीआरटीएस की सबसे बड़ी समस्या जाम है, जिससे लोग परेशान हैं। हमने कोर्ट में आवेदन देकर मांग की है, कम से कम कॉरिडोर से स्कूल बसों को निकलने की अनुमति दी जाए, ताकि हजारों बच्चे परेशान न हों।
अजय बागडिय़ा, एडवोकेट
सिस्टम के साथ…
-अस्वीकार करने से पहले समझने की जरूरत

बीआरटीएस को अस्वीकार करने से पहले शहर की संरचना को समझना होगा। इंदौर के आवासीय क्षेत्रों की सघनता है। पुरानी बसाहट होने से सडक़ों की चौड़ाई कम है। भविष्य में दोपहिया के साथ कारों की संख्या बढ़ेगी। वर्तमान में यहां १ मीटर प्रति व्यक्ति के हिसाब से सडक़ें हैं। यदि ट्रैफिक मिक्स लेन में ले जाएंगे तो इसकी रफ्तार खत्म हो जाएगी।
प्रो. शिवानंद स्वामी, सेफ्ट विवि, अहमदाबाद
-अनेक सुधार किए, बॉटलनेक भी सुधारा
बीआरटीएस में सबसे ज्यादा परेशानी बॉटलनेक में आ रही थी, जिसके लिए नौलखा से एलआइजी तक रोड को दोनों ओर 3-3 मीटर चौड़ा किया गया। राइट व लेफ्ट टर्न भी सुधारे गए। बस स्टैंड की डिजाइन बेहतर बनाते हुए स्मार्ट कार्ड सिस्टम लागू कर रहे हैं। इंटेलीजेंट ट्रांजिट सिस्टम से यात्रियों के सफर को सुरक्षित बनाया गया है
संदीप सोनी, सीइओ, एआइसीटीएसएल
-हमें लगा था बीआरटीएस गलत, पर यह सही है
बीआरटीएस सफलतापूर्वक चल रहा है। इसमें चलने वाली बसों से जनता को सुविधा मिल रही है। पहले जो भी स्थिति रही हो, लेकिन आज ये सफलतापूर्वक चल रहा है। हमें भी लगा था, बीआरटीएस गलत है। लेकिन आज ये बहुत अच्छे से चल रहा है। भोपाल में बीआरटीएस में बसों के साथ ही साइकिल और अन्य वाहनों के चलने से जरूर दिक्कत है।
मालिनी गौड़, महापौर और एआइसीटीएसएल की चेयरमैन
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2006
में तैयार की गई थी डीपीआर

2007
से बीआरटीएस का काम शुरू

2013
में काम पूरा होने के बाद हुआ शुरू

94
करोड़ रुपए में तैयार होना था सिस्टम

227
करोड़ की लागत से हुआ पूरा बीआरटी
30
करोड़ रुपए करीब 5 साल में हुए खर्च

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एक बस में हर दिन 1400 यात्री करते हैं सफर, जिसमें 58 प्रतिशत युवा

दावा: 25 हजार से 70 हजार पहुंचे यात्री
2006 में शहर में बेहतर और तेज लोक परिवहन की सुविधा के लिए बीआरटीएस की कल्पना की गई। अप्रैल 2013 में 18 आई बस के साथ इसकी शुरुआत हुई। आज 11.4 किमी के कारिडोर में 42 बसें दौड़ रही हैं। 25 हजार यात्रियों से शुरू हुआ सफर 68 से 70 हजार लोग रोजाना पर पहुंच गया है। एक स्टडी के अनुसार इससे २२ हजार से ज्यादा दोपहिया व चार पहिया वाहन सडक़ों पर नहीं आते हैं।
उद्देश्य: सबसे सस्ता या महंगा सफर
2006 में बीआरटीएस की डीपीआर में सस्ता, सुलभ और गतिमान लोक परिवहन देने का दावा था। साथ ही लोक परिवहन बढऩे से निजी वाहन, प्रदूषण और ईंधन के इस्तेमाल में कमी की बात कही गई थी। कोर्ट में पेश आंकड़ों के मुताबिक आई बस में सफर करने वालों को 3.35 रुपए प्रति किलोमीटर खर्च करना पड़ता है, जबकि दावा 0.92 पैसे प्रति किमी का था। इसलिए सफर सस्ता करने का उद्देश्य पूरा नहीं हो रहा है।
विचार: रिंग पूरी हो तो मेट्रो का विकल्प
वर्तमान में शहर में मेट्रो की कवायद जारी है। बीआरटीएस की कल्पना का अभी 10 प्रतिशत हिस्सा ही बना है, क्योंकि योजना मुताबिक बीआरटीएस की पूरी रिंग तैयार होना थी। अब मेट्रो की रिंग पर योजना बनाई जा रही है। एमआर-10, 11, एयरपोर्ट, सुपर कॉरिडोर, पश्चिमी रिंग रोड से राजीव गांधी चौराहा तक बीआरटीएस की रिंग बन जाए तो दूरस्थ कॉलोनियों को जोड़ सकते हैं। इससे मेट्रो की जरूरत नहीं रह जाएगी।
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