script‘केवल युद्ध न होना ही शांति नहीं है’ | Lecture by Gandhian and Sarvoday worker SN Subbarao | Patrika News

‘केवल युद्ध न होना ही शांति नहीं है’

locationइंदौरPublished: Sep 23, 2018 01:37:49 pm

Submitted by:

amit mandloi

गांधवादी व सर्वोदयी कार्यकर्ता एसएन सुब्बाराव का व्याख्यान

subbarao

‘केवल युद्ध न होना ही शांति नहीं है’

इंदौर. गांधीवादी और सर्वोदयी कार्यकर्ता एसएन सुब्बाराव शनिवार शाम शहर में थे। उन्होंने प्रेस क्लब में एक व्याख्यान दिया जिसका विषय था ‘देश में बढ़ती कटुता और हमारा दायित्व’। यह व्याख्यान महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के तहत सालभर होने वाले कार्यक्रमों की कड़ी में आयोजित किया गया। सुब्बाराव ने कहा, दुनिया की सबसे बड़ी हिंसा सेकंड वल्र्ड वॉर में हुई थी।
युद्ध के बाद चर्चिल, रूजवेल्ट व स्टालिन ने कहा था कि अब हिटलर पराजित हो गया है और अब युद्ध नहीं होगा, लेकिन क्या युद्ध न होना ही शांति है। दरअसल केवल युद्ध होना शांति नहीं है, शांति का अर्थ है देशों के बीच परस्पर सद्भाव और साथ मिलकर चलना। भारत और पाकिस्तान के बीच भी वर्षों से युद्ध नहीं हुआ, लेकिन शांति कहां है? आज ही सुना कि दोनों के बीच मंत्री स्तरीय वार्ता रद्द कर दी गई है। उन्होंने कहा, यूनेस्को के चार्टर के पहले वाक्य में लिखा है कि युद्ध तो दिलों के भीतर होता है। कटुता मुक्त भारत या कटुता मुक्त दुनिया बनना है तो शुरुआत मन से करना होगी।
गांधी ने मन की शक्ति को पहचाना
सुब्बाराव ने कहा, बचपन में महात्मा गांधी बेहद डरपोक थे। एक डरपोक बच्चा जो अंधेरे कमरे में अकेले जाने से डरता था, वह अंग्रेजों से कैसे कह सका कि भारत छोड़ो। दरअसल हम सब के अंदर शक्ति है पर हम उसे पहचानते नहीं, लेकिन गांधी ने मन की शक्ति को पहचाना। हमारे देश में गांधी की प्रांसगिकता पर व्याख्यान होते हैं पर मेरे अनुभव कुछ अलग हैं। दुनियाभर के दौरे के दौरान विमान में मेरा एक डच व्यक्ति से परिचय हुआ। मैंने उससे पूछा कि क्या वह गांधी को पहचानता है तो वह बोला कि दुनिया में एेसा कौन है जो गांधी को नहीं पहचानता। न्यूयॉर्क के कैनेडी एयरपोर्ट पर अब्राहम लिंकन के पोट्रेट के साथ महात्मा गांधी का पोर्टे्रट लगा है और उसके नीचे अंग्रेजी में लिखा है गांधी को गांधी किसने बनाया। उन्होंने कहा, आजादी से पहले हम लोगों को तिरंगा छुपाकर चलना पड़ता था कि कहीं पुलिस पकड़ न ले, लेकिन हमने जब १४ अगस्त की रात बारह बजे देखा कि संसद भवन से लेकर राष्ट्रपति भवन और हर जगह तिरंगा शान से लहराने लगा तो उस वक्त जो रोमांच हुआ, उसका वर्णन करना कठिन है।
नक्सलवाद का मुद्दा सही पर रास्ता गलत
सुब्बाराव ने कहा, अमीर और गरीब के बीच की बड़ी खाई ने ही नक्सलवाद को जन्म दिया। गांव का गरीब युवक जब टीवी पर शहरों की चकाचौंध भरी जिंदगी देखता है तो नक्सलवाद की तरफ मुड़ जाता है। मैंने नक्सलियों को समझाया कि आपकी मांग का मैं समर्थन करता हूं, लेकिन ये सोचो कि सैकड़ों नक्सलियों के मरने और सैकड़ों पुलिसवालों के मरने से क्या आपका उद्देश्य हासिल हुआ। हिंसा से कुछ हल नहीं होगा।
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