माना जा रहा है कि निर्मला सीतारमण भी इन सारी परिस्थितियों से असहज स्थिति में थीं। इसकी वजह केंद्र सरकार में उनका अहम पद पर होना भी है, साथ ही पति के विपक्षी पार्टी के साथ होने से उन्हें भी शायद पार्टी के भीतर असहज स्थिति का सामना करना पड़ता था। माना जा रहा था कि जल्दी ही इस मामले पर कोई फैसला होगा। अंततः मंगलवार को प्रभाकर के इस्तीफे के बाद एक तरह से इस एपीसोड पर भी हाल-फिलहाल विराम लग गया।
गौरतलब है कि विशेष राज्य का दर्जा देने के मुद्दे पर भाजपा से टीडीपी ने गठबंधन तोड़ दिया था। इसके बाद से प्रकाला प्रभाकर का नाम लेकर विपक्षी दल चंद्रबाबू नायडू पर सियासी हमले कर रहे थे। हालांकि खबर है कि नायडू ने अब तक प्रभाकर का इस्तीफा स्वीकार नहीं किया है।
इस्तीफे में यूं छलका दर्द
प्रभाकर ने मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू को सौंपे अपने इस्तीफे में लिखा है कि “पिछले कुछ दिनों से विपक्षी दल के नेता आपकी बीजेपी के खिलाफ जारी लड़ाई पर शक की उंगली उठा रहे हैं। आंध्र प्रदेश के प्रति आपका जो समर्पण है, मेरी वजह से उसका मजाक बनाने की कोशिश की जा रही है। आज वाईएसआर कांग्रेस के प्रमुख जगनमोहन रेड्डी ने यह मुद्दा उठाकर आंध्रप्रदेश को लेकर आपकी प्रितबद्धता पर सवाल खड़े करने की कोशिश की है। इससे मैं बहुत आहत हुआ हूं।” उल्लेखनीय है कि 1994 में प्रभाकर ने नरसापुर सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा था। वह पूर्व प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हा राव के भी बहुत करीबी रहे थे।