पहले भी सत्ता विरोधी लहर में ऐसा ही दिख चुका है नजारा
वर्ष 2008 में भी सत्ता विरोधी लहर के चलते एमएनएफ के अध्यक्ष जोरामाथांगा को भी दो सीटों से चुनाव हारना पड़ा था। इस बार के चुनाव में भाजपा को एक सीट मिली है। उसने मिजोरम में पहली बार खाता खोला है। पर इसमें भाजपा के बजाए कांग्रेस की अंदरुनी कलह ज्यादा काम कर गई। कांग्रेस के वरिष्ठ मंत्री डा.बी डी चकमा को टिकट नहीं मिला, तो उन्होंने भाजपा का दामन थामा। भाजपा ने डा.चकमा को टिकट दिया और वे अपनी विधानसभा सीट टिवचांग से चुनाव जीत गए। वैसे एमएनएफ भाजपा के नेतृत्ववाली नार्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक एलांयस(नेडा) में शामिल है लेकिन अब नेडा के प्रति क्या रुख होगा, यह एमएनएफ की बैठक में तय होगा।
अपने बलबूते पर हासिल की जीत
जीतने के बाद उन्होंने कहा कि वे फिलहाल नेडा यानि राजग में हैं। उन्होंने कहा कि पहला काम राज्य में शराबबंदी लागू करने का होगा। एमएनएफ के अध्यक्ष होने के नाते जोरामथांग ही राज्य के अगले मुख्यमंत्री होंगे। मिजोरम के राजनीतिक टीकाकार प्रोफेसर जे डोंगल ने कहा कि भाजपा को एक सीट मिलना उसकी सफलता नहीं बल्कि डा.चकमा की अपनी सफलता है। वहीं भाजपा का पूर्वोत्तर को कांग्रेस मुक्त करने का सपना मिजोरम में एमएनएफ की जीत के साथ पूरा हो गया है। नेडा के समन्वयक डा.हिमंत विश्व शर्मा ने कहा कि पिछले तीन साल से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हमने इसके लिए कार्य किया।