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चुटकी बजाते तेज होगा बच्चों का दिमाग, आज ही आजमाएं ये शानदार टिप्स

कर्सिव राइटिंग में शब्दों को लिखना दिमाग का खेल है और इसका अभ्यास बचपन से हो तो इसके बेहतर परिणाम देखने को मिलते हैं।

जयपुरSep 22, 2018 / 09:52 am

सुनील शर्मा

kids playing on tablet

kids playing on tablet

एक वक्त था जब लोग कर्सिव में हस्ताक्षर करते थे। जिन्हें नहीं आता था वे इसे सीखने की कोशिश करते थे। अमरीकी स्कूलों में यह चलन अधिक था। बच्चों को इसे सीखने पर जोर दिया जाता था। स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के अनुसार शब्द किसी भी लेख में जान डालते हैं। कलात्मक रूप से लिखे जाएं तो रुचिकर बनाकर पढऩे की इच्छा जगाते हैं।
बच्चों को छुट्टियों के समय खेलना और घूमना पसंद होता है पर कर्सिव राइटिंग (अंग्रेजी में लिखने की एक खास शैली) का प्रशिक्षण उन्हें दिया जाए तो उनकी छुट्टियां और अच्छे से गुजर सकती हैं। फ्रैंसेस्का कर्टेइलो ने तीन समर कैंप में हिस्सा लिया जिसमें जंगलों के भ्रमण के साथ मार्शल आट्र्स की टे्रनिंग पर अधिक जोर दिया। इसके बाद स्कूल खुलने के ठीक पहले उसने कर्सिव राइटिंग का प्रशिक्षण लेना शुरू कर दिया। एक सुबह वे बिना खिड़कियों वाले कमरे में बैठकर कर्सिव में ‘एफ’ लिखना सीख रहा था। काफी खुश था। छह साल का फ्रैंसेस्का कह रहा था कि हम ‘शब्दों के साथ बहुत कुछ कर सकते हैं’। उसके पसंदीदा शब्द ‘आर, ए पी, जेड, वाई, जी और ए’ हैं। इन शब्दों को लिखने का अभ्यास बहुत रुचि के साथ कर रहा था। शब्दों को लिखने का काम उसे स्कूल से होमवर्क में नहीं मिला था। वह अपनी खुशी के लिए कर रहा था। कर्सिव लिखने को लेकर उसके अंदर ऐसी खुशी थी कि उसे जब भी समय मिलता तभी प्रेक्टिस शुरू कर देता था और नए- नए तरीके से शब्दों को लिखने लगता।
कर्सिव टे्रनिंग के लिए बच्चों में दिखता गजब का उत्साह
डैनबरी म्यूजियम और हिस्टॉरिकल सोसाइटी की एग्जक्यूटिव डायरेक्टर ब्रिगिड गर्टिन बताती हैं कि उन्हें कुछ ऐतिहासिक दस्तावेज मिले थे जिसे कागजों में लिखना था। हमारे पास ऐसे कई दस्तावेज और धरोहर हैं जो कर्सिव में हैं लेकिन अभी इनका पुनर्लेखन नहीं हो पाया है। इसलिए करीब तीन साल पहले हमने कर्सिव कैंप की घोषणा की जिससे संभावित लेखकों को हम पहले ही प्रशिक्षित कर सकें। आश्चर्यजनक रूप से अभिभावकों और बच्चों में इसके प्रति गजब का उत्साह देखा गया। कैंप में ६ से १४ साल के बच्चों का कैथलीन जॉनसन की देखरेख में प्रशिक्षण शुरू हुआ। ऐसे कैंप ब्रिटेन में भी आयोजित किए जाते हैं जहां बच्चों को प्रशिक्षण दिया जाता है जिससे लेखन की यह शैली प्रचलन में रहे।
सैन्य अभ्यास की तरह होती है कर्सिव राइटिंग की ट्रेनिंग
कर्सिव एक कला के साथ सैन्य अभ्यास जैसा प्रशिक्षण है। २०वीं सदी में कर्सिव लिखने का प्रशिक्षण प्रतिदिन एक घंटे दिया जाता था। हाईस्कूल में इस प्रशिक्षण को हैंडराइटिंग ड्रिल कहा जाता है। इसकी निगरानी टास्क मास्टर और पेनमैनशिप सुपरवाइजर करते हैं जिनके पास अवॉर्ड और आलोचनाओं का जखीरा होता है। यूनिवर्सिटी ऑफ बफेलो में हिस्ट्री की प्रोफेसर तमारा थॉर्टन कहती हैं कि कर्सिव नियमों के हिसाब से लिखने की कला है। उसकी पालना हर हाल में जरूरी है। इन्होंने अपनी किताब ‘हैंडराइटिंग इन अमरीका: अ कल्चरल हिस्ट्री’ में लिखा है कि हस्ताक्षर एक ऐसा माध्यम है जो आपको परिभाषित करता है जो सतत अभ्यास से ही संभव है और सभी को करना चाहिए।
लिखने से चीजें जल्दी याद हो जाती हैं
पहले के समय में बच्चों को पेंसिल, मोरपंख और इंक (स्याही) से लिखने का अभ्यास कराया जाता था। इससे बच्चे का दिमाग लिखने का सही तरीका जल्दी ग्रहण कर लेता था। २०१२ में हुए एक शोध के अनुसार पढऩे लिखने और सोचने से बच्चे के दिमाग का बेहतर विकास होता है। इंडियाना यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर केरिन जेम्स के अनुसार लेखन से बच्चे के दिमाग पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है जो छात्र अध्ययन के दौरान नोट्स टाइप करने की बजाए लिखते हैं, उन्हें वे टॉपिक याद रहते हैं। बच्चे कर्सिव में लिखना जल्दी सीखते हैं क्योंकि वे उसमें रुचि दिखाते हैं। जल्द से जल्द सीखने के लिए वे कड़ी मेहनत भी करते हैं।
प्रशिक्षण के बाद बच्चों में दिखने लगा सुधार
कैंप में कर्सिव राइटिंग के एक हफ्ते के अभ्यास के बाद दस साल के बेंजामिन और डेविड ने १९०८ के दस्तावेज को पढऩा शुरू कर दिया। इसके बाद कर्सिव में लिखे किसी भी ऐतिहासिक दस्तावेज को पढऩे लगे जबकि १३ साल के डैव और आठ साल के स्पार्की ने कर्सिव लिखना शुरू कर दिया। उनके हाथों और आंखों ने शब्दों की पहचान कर ली और उसी हिसाब से उन्होंने अपने भीतर क्षमता विकसित की जिसके बाद वे बेहतर करने लगे। बच्चे की हैंडराइटिंग उसके भूत, वर्तमान और भविष्य का निर्धारण करती है।

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