1.मामला दिग्गज अधिकारियों के शामिल होने की वजह से आठ साल की मासूम पीड़िता का कोई केस नहीं ले रहा था। उस वक्त दीपिका सिंह ने हिम्मत दिखाते हुए इसकी जिम्मेदारी ली थी। मगर ऐसा करने पर उन्हें आरोपियों से जान से मारने और उनकी इज्जत तार—तार करने की धमकी दी गई।
2.दीपिका को केस छोड़ने के लिए मजबूर करने के लिए उन्हें उनकी फैमिली को खत्म करने की भी धमकी दी गई। चूंकि उनकी खुद की छह साल की एक बेटी हैं, इसलिए उन्हें अपने परिवार की बहुत चिंता थी। इसके बावजूद उन्होंने विरोधियों के सामने घुटने नहीं टेके।
3.बताया जाता है कि आरोपियों ने दीपिका को बदनाम करने की भी कोशिश की। इसके तहत उनके घर के पास नशीले पदार्थ भी रखे गए। जिससे वो गलत साबित हो सके। 4.इसके अलावा दीपिका के अप्रवासी होने की बात को भी तूल दिया गया। इससे इलाके के लोग उनके खिलाफ हो गए थे। एक वक्त ऐसा आया कि पीड़िता के परिवार वाले भी उनसे केस न लड़वाने के पक्ष में हो गए थे।
5.एक इंटरव्यू में दिए गए बयान के तहत दीपिका ने बताया कि उन्हें पीड़िता के परिवार वालों ने केस लड़ने से मना कर दिया था क्योंकि वो पठानकोर्ट में हुई करीब 100 सुनवाई में से महज दो डेट पर ही हाजिर हुई थीं। पीड़िता के घरवालों को डर था कि कहीं वो केस को कमजोर करने के लिए तो ऐसा नहीं कर रहीं।
7.दीपिका को केस से दूर रहने के लिए उनके मोबाइल और ईमेल पर धमकियां भेजी जाती थीं। इसके अलावा उन्हें अपशब्द कहे जाते थे। कई बार बात के हद से ज्यादा बढ़ जाने पर दीपिका के घरवाले भी उन्हें केस छोड़ने का दबाव बनाने लगे थे।
9.मगर घरवालों के फैसले के खिलाफ जाकर भी दीपिका ने केस लड़ा। वो न्याय के लिए आवाज उठाना चाहती थीं। मगर वो अपने घरवालों की सुरक्षा के लिए काफी चिंतित थीं। तभी तो वो घर से निकलते समय दो या उससे भी ज्यादा बार लॉक चेक करती थीं। उन्हें डर था कि उनकी गैर मौजूदगी में उनके परिवार को कोई नुकसान न पहुंचा दे।
10.दीपिका सिंह के बयान के मुताबिक केस लड़ने के दौरान उन पर काफी मानसिक दबाव भी था। तभी वो अक्सर मामूली—सी आहट से भी डर जाती थी। कई बार तो वो घबराहट के चलते पीछे मुड़कर देखना तक पसंद नहीं करती थीं।