उत्तराखंड राज्य गठन के बाद पंडित नारायण दत्त तिवारी ने ऊडऩ खटोला को लेकर जरूर प्लान किया लेकिन उन्हें सफलता हाथ नहीं लगी। उसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री मेजर जनरल (अवकाश प्राप्त) भुवन चंद्र खंडूड़ी की ओर से भी प्रयास किए गए लेकिन निवेशकों ने इसमें कोई रुचि नहीं दिखाई जिससे रोपवे का प्लान खटाई में पड़ गया। वर्ष 2019 में एक बार उत्तराखंड सरकार ने रोपवे को लेकर दिलचस्पी ली और रोपवे को एक अभियान के रूप में लिया। खास बात यह है कि रोपवे के इस नेटवर्क में सरकार का एक चवन्नी भी नहीं खर्च हो रहा है। पूरा का पूरा निजी निवेश ही है। केवल केदारनाथ रोपवे को लेकर स्थिति अब तक साफ नहीं हो पा रही है। गौरीकुंड से केदारनाथ रोपवे का सर्वेक्षण वर्ष 2018 में पूरा हो चुका है। माना जा रहा है कि उत्तराखंड का यह सबसे बड़ा प्रोजेक्ट है। इसलिए सरकार यह निर्णय नहीं ले पा रही है कि केदारनाथ रोप वे का निर्माण कार्य वह खुद करे या फिर पीपीमोड के हवाले कर दे। सूत्रों के मुताबिक सरकार अन्य दूसरे विकल्प की भी तलाश कर रही है। भारी बजट होने के कारण सरकार केदारनाथ रोपवे को लेकर हिम्मत नहीं जुटा पा रही है।
वर्तमान में पर्यटन विभाग के अपने पहले रोपवे के वर्ष 2019 में पूरा हो जाने की उम्मीद है। यह रोप वे कद्दुखाल से सुरकंडा देवी तक है। इस रोपवे की लंबाई 502 मीटर है। हालांकि टिहरी जनपद में पडऩे वाले सुरकंडा देवी रोपवे की लागत शुरूआती दौर में 5 करोड़ ही आंकी गयी थी लेकिन समय पर फंड नहीं मिलने की वजह से इसका निर्माण कार्य देर से शुरू हुआ है। अब इसकी कुल लागत 15 करोड़ के आसपास पहुंच चुकी है। चंपावत जनपद में भी पूर्णागिरी रोपवे का काम भी प्रगति पर है। देहरादून -मसूरी रोपवे निर्माण की प्रक्रिया भी शुरू है। इस रोपवे की लंबाई 5.5 किलोमीटर है। इस पर कुल 285 करोड़ की लागत आने की उममीद है। एक दो माह के अंदर सारे क्लीयरेंस मिल जाने की उम्मीद है। यदि सब कुछ अनुकूल और निर्धारित समय के अंदर हो गया तो देहरादून -मसूरी रोपवे का काम भी आगामी दो साल के अंदर पूरा हो जाने की उम्मीद है। घांघरिया से हेमकुंड साहिब रोपवे का भी सर्वेक्षण हो गया है। वन्य एवं पर्यावरण विभाग द्वारा क्लीयरेंस का आना बाकी रह गया है। चमोली जनपद में बनने वाले इस रोपवे की लंबाई की 2 किलोमीटर है। इस पर कुल 70.75 करोड़ की राशि खर्च होने की उम्मीद है। इसके अलावा रानीबाग से नैनीताल रोपवे के लिए भी सर्वेक्षण का काम शुरू हो गया है। इस पर कुल 500 करोड़ रुपए खर्च होने की उम्मीद लगाई गयी है। बड़े रोपवे के अलावा सरकार का ध्यान छोटे छोटे रोपवे को भी विकसित करने पर है। ताकि पर्यटक छोटे रोपवे का भी आनंद उठा सकें। इस क्रम में ही पौड़ी जनपद में भारत सरकार की एजेंसी रोपवे निर्माण को लेकर स्टडी कर रही है। इस तरह से आगामी तीन चार सालों में रोपवे का नेटवर्क उत्तराखंड में फैलेगा और इसका लाभ पर्यटकों को मिलेगा। केवल इतना ही नहीं स्थानीय लोगों की आर्थिकी भी सशक्त होगी। इस संबंध में पर्यटन अधिकारी सुशील बहुगुणा का कहना है कि पीपीमोड पर रोपवे निर्माण का काम शुरू किया जा चुका है। आगामी तीन चार सालों में रोपवे का नेटवर्क पूरे उत्तराखंड में फैल जाएगा। इसका लाभ न केवल पर्यटकों को मिलेगा बल्कि स्थानीय लोगों की आर्थिकी भी इससे मजबूत होगी।