मुफ्त में मिली सेवा, बचे 25 करोड़
पहली बार लैंडर-रोवर भेजने के कारण चंद्रमा की धरती पर लैंडिंग का परीक्षण आवश्यक था और इसके लिए इसरो ने 25 करोड़ रुपए का प्रारंभिक प्रावधान भी किया था लेकिन भू-वैज्ञानिकों और परिवहन सेवा प्रदाताओं के नि: शुल्क सेवा उपलब्ध कराने के कारण इसरो के लिए यह फायदे का सौदा रहा। इसरो के पास परीक्षण के लिए अमरीका America से चांद की सतह जैसी मिट्टी खरीदने का विकल्प था। इसरो को परीक्षण के लिए 60-70 से टन ऐसी मिट्टी की आवश्यकता थी और तब उसकी कीमत 150 डॉलर प्रतिकिलो थी। लेकिन, इसरो लागत घटाने के लिए स्वदेशी विकल्प तलाश रहा था। भू-वैज्ञानिकों ने इसरो को बताया कि तमिलनाडु के सेलम और आसपास के इलाकों में एनॉर्थोसाइट Anorthosite की चट्टानें हैं, जो चंद्रमा की मिट्टी के समान हैं। इसरो वैज्ञानिकों की टीम ने नामक्कल namakkal जिले की सीतमपोंडी और कुन्नामलै गांव के पास मौजूद एनॉर्थोसाइट की चट्टानों को इसके लिए उपयुक्त पाया। इसके बाद पेशेवर क्रशरों ने चट्टान को तोड़कर छोटे-छोटे आकार और चूर्ण में तब्दील किया और फिर उसे बेंगलूरु के प्रयोगशाला पहुंचाया गया। इस काम में राष्ट्रीय प्रोद्यौगिकी संस्थान (एनआईटी) तिरुची, सेलम के पेरियार विश्वविद्यालय के अलावा बेंगलूरु के भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) IISc के भू-वैज्ञानिकों ने इसरो की मदद की। सेवा के लिए विशेषज्ञों और ट्रांसपोर्टरों ने कोई शुल्क नहीं लिया। एनॉर्थोसाइट चंद्रमा की सतह का सबसे पुराना ज्ञात चट्टान है। परीक्षण के लिए प्रयोगशाला में चंद्रमा पर सूर्य SUN के प्रकाश के वेग और उसकी प्रदीप्ति के अनुपात में रोशनी की व्यवस्था की गई।
पहली बार लैंडर-रोवर भेजने के कारण चंद्रमा की धरती पर लैंडिंग का परीक्षण आवश्यक था और इसके लिए इसरो ने 25 करोड़ रुपए का प्रारंभिक प्रावधान भी किया था लेकिन भू-वैज्ञानिकों और परिवहन सेवा प्रदाताओं के नि: शुल्क सेवा उपलब्ध कराने के कारण इसरो के लिए यह फायदे का सौदा रहा। इसरो के पास परीक्षण के लिए अमरीका America से चांद की सतह जैसी मिट्टी खरीदने का विकल्प था। इसरो को परीक्षण के लिए 60-70 से टन ऐसी मिट्टी की आवश्यकता थी और तब उसकी कीमत 150 डॉलर प्रतिकिलो थी। लेकिन, इसरो लागत घटाने के लिए स्वदेशी विकल्प तलाश रहा था। भू-वैज्ञानिकों ने इसरो को बताया कि तमिलनाडु के सेलम और आसपास के इलाकों में एनॉर्थोसाइट Anorthosite की चट्टानें हैं, जो चंद्रमा की मिट्टी के समान हैं। इसरो वैज्ञानिकों की टीम ने नामक्कल namakkal जिले की सीतमपोंडी और कुन्नामलै गांव के पास मौजूद एनॉर्थोसाइट की चट्टानों को इसके लिए उपयुक्त पाया। इसके बाद पेशेवर क्रशरों ने चट्टान को तोड़कर छोटे-छोटे आकार और चूर्ण में तब्दील किया और फिर उसे बेंगलूरु के प्रयोगशाला पहुंचाया गया। इस काम में राष्ट्रीय प्रोद्यौगिकी संस्थान (एनआईटी) तिरुची, सेलम के पेरियार विश्वविद्यालय के अलावा बेंगलूरु के भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) IISc के भू-वैज्ञानिकों ने इसरो की मदद की। सेवा के लिए विशेषज्ञों और ट्रांसपोर्टरों ने कोई शुल्क नहीं लिया। एनॉर्थोसाइट चंद्रमा की सतह का सबसे पुराना ज्ञात चट्टान है। परीक्षण के लिए प्रयोगशाला में चंद्रमा पर सूर्य SUN के प्रकाश के वेग और उसकी प्रदीप्ति के अनुपात में रोशनी की व्यवस्था की गई।