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जानिए… तमिलनाडु के दो गांवों से क्या है चंद्रयान-2 का खास कनेक्शन?

locationकोयंबटूरPublished: Jul 22, 2019 06:21:03 pm

Chandrayaan 2 mission : नामक्कल की मिट्टी से बने कृत्रिम सतह पर हुआ लैंडर और रोवर का परीक्षण

ISRO

जानिए… तमिलनाडु के दो गांवों से क्या है चंद्रयान-2 का खास कनेक्शन?

कोयम्बत्तूर. देश के दूसरे चंद्र अभियान Moon Mission के तहत भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ISRO ने सोमवार को चंद्रयान-2 मिशन Chandrayaan 2 mission को प्रक्षेपित कर नया कीर्तिमान रचा। इसरो की इस सफलता और चंद्रयान के सफर से तमिलनाडु ( Tamil Nadu) के कोंगुनाडु इलाके के दो गांवों का भी खास संंबंध है। इन दो गांवों में ‘चांद की धरती जैसी मिट्टी’ Soil मिलती है। इसरो ने चंद्रमा Moon के दक्षिण धु्रव South pole के अध्ययन के लिए chandrayaan-2 mission चंद्रयान-2 के साथ भेजे गए लैंडर (विक्रम) Lander Vikram और रोवर (प्रज्ञान) Rover Pragyan का परीक्षण इसी मिट्टी से बेंगलूरु bengaluru की प्रयोगशाला में बनाए गए ‘चांद की धरती’ पर किया था।
इसरो पहली बार पृथ्वी Earth के प्राकृतिक उपग्रह चांद पर लैंडर और रोवर युक्त मिशन भेज रहा था इसलिए दोनों यंत्रों के चंद्रमा की सतह पर उतरने का परीक्षण किया जाना जरुरी था। परीक्षण के लिए इसरो ने बेंगलूरु Banglore की लूनर टैरियन टेस्ट प्रयोगशाला में चंद्रमा का कृत्रिम माहौल तैयार किया। न सिर्फ चांद की सतह की तरह की धरती बनाई गई बल्कि उतनी प्रकाश की व्यवस्था की गई ताकि सॉफ्ट लैंडिंग की प्रक्रिया पूरा परीक्षण किया जा सके।
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मुफ्त में मिली सेवा, बचे 25 करोड़
पहली बार लैंडर-रोवर भेजने के कारण चंद्रमा की धरती पर लैंडिंग का परीक्षण आवश्यक था और इसके लिए इसरो ने 25 करोड़ रुपए का प्रारंभिक प्रावधान भी किया था लेकिन भू-वैज्ञानिकों और परिवहन सेवा प्रदाताओं के नि: शुल्क सेवा उपलब्ध कराने के कारण इसरो के लिए यह फायदे का सौदा रहा। इसरो के पास परीक्षण के लिए अमरीका America से चांद की सतह जैसी मिट्टी खरीदने का विकल्प था। इसरो को परीक्षण के लिए 60-70 से टन ऐसी मिट्टी की आवश्यकता थी और तब उसकी कीमत 150 डॉलर प्रतिकिलो थी। लेकिन, इसरो लागत घटाने के लिए स्वदेशी विकल्प तलाश रहा था। भू-वैज्ञानिकों ने इसरो को बताया कि तमिलनाडु के सेलम और आसपास के इलाकों में एनॉर्थोसाइट Anorthosite की चट्टानें हैं, जो चंद्रमा की मिट्टी के समान हैं। इसरो वैज्ञानिकों की टीम ने नामक्कल namakkal जिले की सीतमपोंडी और कुन्नामलै गांव के पास मौजूद एनॉर्थोसाइट की चट्टानों को इसके लिए उपयुक्त पाया। इसके बाद पेशेवर क्रशरों ने चट्टान को तोड़कर छोटे-छोटे आकार और चूर्ण में तब्दील किया और फिर उसे बेंगलूरु के प्रयोगशाला पहुंचाया गया। इस काम में राष्ट्रीय प्रोद्यौगिकी संस्थान (एनआईटी) तिरुची, सेलम के पेरियार विश्वविद्यालय के अलावा बेंगलूरु के भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) IISc के भू-वैज्ञानिकों ने इसरो की मदद की। सेवा के लिए विशेषज्ञों और ट्रांसपोर्टरों ने कोई शुल्क नहीं लिया। एनॉर्थोसाइट चंद्रमा की सतह का सबसे पुराना ज्ञात चट्टान है। परीक्षण के लिए प्रयोगशाला में चंद्रमा पर सूर्य SUN के प्रकाश के वेग और उसकी प्रदीप्ति के अनुपात में रोशनी की व्यवस्था की गई।
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