किसी भी स्कूल के छूटते समय ऑटो रिक्शा में दबे-सिकुड़े बैठे या अधलटके बच्चों को देखा जाता सकता है, लेकिन पुलिस और परिवहन विभाग के अधिकारियों को दिखाई नहीं देता। ठसाठस ऑटो में बैठे बच्चे हिलने-डुलने को भी मोहताज रहते हैं, वे भले ही इस बारे में कुछ न कहें, लेकिन उनकी आंखें दर्द बयां कर देती हैं। ऑटो रिक्शा वाले अपने थोड़े से मुनाफे के लिए बच्चों को यह कष्ट दे रहे हैं। इसे रोकने के लिए जिम्मेदार यातायात पुलिस और आरटीओ अपने मुनाफे को गंवाना नहीं चाहते। यही कारण है कि जिस ऑटो पर 5 बच्चों को बैठाना चाहिए, उसमें 15 से 20 बच्चे बिठाए जा रहे हैं। कार्रवाई का हवाला तो पुलिस और परिवहन विभाग के अधिकारी कई बार देते हैं, लेकिन कार्रवाई भी खानापूर्ति की तरह ही होती है।
हाईकोर्ट के आदेश की अनदेखीहाईकोर्ट के सख्त आदेश हैं कि ऑटो में तीन वयस्क या पांच बच्चों से अधिक नहीं बिठाए जाएं, लेकिन शहर की हर सडक़ पर इस आदेश की अवहेलना हो रही। स्कूली बच्चों को ऑटो में लगभग ठूंस-ठूंस कर भरा जाता है। ऐसा भी नहीं है कि ये ऑटो सिर्फ शहर की तंग गलियों वाले रहवासी क्षेत्रों में ही चल रहे हों, ये तो धड़ल्ले से मुख्य मार्गों से होते हुए स्कूल तक पहुंचते हैं। इन मार्गों-चौराहों में यातायात सुरक्षा के नुमाइंदे सब देखने के बाद भी कार्रवाई करना तो दूर नसीहत या चेतावनी देने की जहमत भी नहीं उठाते।