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चेन्नई

दुख-पीड़ा से उबारना ही सच्ची दोस्ती का प्रमाण

दोस्ती का अर्थ खाना-पीना एवं मौज-मस्ती करना नहीं बल्कि मुसीबत आने पर भामाशाह, हनुमान की तरह अपने मित्र को संकट से उबारना और आत्मीयता जताना है : आचार्य पुष्पदंत सागर

चेन्नईNov 17, 2018 / 06:46 pm

Santosh Tiwari

acharya pushpdant sagar pravachan

दुख-पीड़ा से उबारना ही सच्ची दोस्ती का प्रमाण

श्रीपेरम्बुदूर. यहां भगवान अभिनंदन जैन मंदिर में विराजित आचार्य पुष्पदंत सागर ने कहा हर इन्सान को जीवन की कमियां बताने वाला दोस्त खोजना चाहिए ताकि वह वास्तविक जीवन जी सके। झूठी प्रशंसा एवं चापलूसी करने वाले दोस्त तो बहुत हैं लेकिन सच्चा मित्र वही है जो आपकी कमियां बताए और उनसे मुक्त कराए तथा विपदा में कभी साथ न छोड़े। विभीषण ने प्रतिकूलता में राम का साथ दिया और सफलता दिलाई।

सफलता की मिठाई खाने वाले बहुत हैं लेकिन विपदा एवं प्रतिकूलता में साथ देने वाले नहीं के बराबर हैं। दोस्ती का अर्थ खाना-पीना एवं मौज-मस्ती करना नहीं बल्कि मुसीबत आने पर भामाशाह, हनुमान की तरह अपने मित्र को संकट से उबारना और आत्मीयता जताना है। दुख-पीड़ा से उबारना ही सच्ची दोस्ती का प्रमाण है। सबसे बड़ा उपकारी वही है जो मुसीबत में काम आए। मन बड़ा चालाक है दूसरों को दोषी ठहराता है और स्वयं को ईमानदार बन जाता है। वास्तविक दूध वही है जो शक्कर डालते ही मधुर हो जाए। पानी वही वास्तविक है जो नींबू डालने पर शक्कर डालते ही शिंकजी व शर्बत बन जाए। पाषाण वही अच्छा है जो शिल्पी के हाथ लगाते ही प्रतिमा बन जाए। पर्वत वही अच्छा है जो संत के ठहरते ही ऊर्जा से भरकर तीर्थ बन जाए। शून्य वही है जो एक अंक सामने आते ही नौ अंक की वृद्धि हो जाए। वास्तविक जीवन वही है जो परोपकार का अवसर मिलते ही सागर में ब्रिज व पुल बन जाए।

आचार्य ने कहा स्कूल की ड्रेस सिखाती है कि भेदभाव व अहंकार मत करो। ये सभी एक समान हैं और सबको एक-सा ज्ञान दिया जाता है। गुरुकुल में राम के साथ अनेक गरीब बालक शिक्षा पाते थे और सभी को एक समान ज्ञान दिया जाता था। विद्यार्थी जिस पेन से जिस कॉपी पर लिखता है उसकी कीमत समान है लेकिन जो डिग्री मिलती है वह मूल्यवान है, जीवनभर काम, नाम और दाम देती है।

गुण को धारण करने से दूर होते हैं अवगुण

चेन्नई. राजेन्द्र भवन में मुनि संयमरत्न विजय व भुवनरत्न विजय ने कहा कि लोभी प्राणी जिस प्रकार धन में आसक्त रहता है, वैसे ही पंडित पुरुष गुण-ग्रहण करने में ही सदैव तत्पर रहते हैं। धागे का संग करके जिस प्रकार बिखरे हुए मोतियों से एक सुंदर माला बन जाती है,वैसे ही गुण के कारण मानव मालामाल बन जाता है। जिस तरह धनुष में लगा हुआ धागा दूसरों को पीड़ा देने में सहायक होता है, वैसे ही दुर्जन प्राणी में रहा हुआ गुण भी उसके लिए लाभकारी सिद्ध नहीं होता। पवित्र वेषभूषा बनाने के लिए निर्मल वस्त्र चाहिए। बुद्धि के वैभव से मनोहर विद्या की प्राप्ति होती है तथा दिव्य धन की प्राप्ति अत्यंत परिश्रम से होती है किंतु वस्त्र, बुद्धि और उद्यम के परिचय से कभी भी गुणों का समूह प्राप्त नहीं होता। जिस धागे गुण के संयोग से पत्थर के टुकड़े भी मोती के आभूषण बनकर महिला के हृदयस्थल पर सुशोभित होते हैं, वैसे ही गुणों का संग करने वालों का जीवन शोभायमान होता है।

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