वे लिखती हैं कि बच्चों का खोना हमारे लिए कैसे चुनौतीपूर्ण बनता जा रहा है जिससे दुनिया के हर देश को निपटना है। किताब 40 सवालों पर आधारित है जिसमें ये जानने की कोशिश की गई है कि ‘ये कैसे खत्म हो सकता है’। वलेरिया ने किताब में स्पष्ट लिखा है कि प्रवासी बच्चों की सुरक्षा उस देश की होती है जहां वे रह रहे हैं। ऐसा न होने से बच्चों की जिंदगी तबाह हो गई है।
किताब में प्रवासी बच्चों की परेशानियों के साथ उनके भविष्य के खतरे के बारे में भी बताया गया है। उन अभिभावकों के बारे में भी लिखा है जो किसी कारण से अपना सब सुख चैन त्यागकर शरणार्थी कैंपों में रहते हैं। स्थिति ये है कि इन कैंपों में वे अपने बच्चों से भी बिछड़ जाते हैं और ये परिवार दोबारा कभी मिल नहीं पाता है। इस पीड़ा को सहते हुए बच्चों को अपना जीवन बुरी हालत में गुजारना पड़ता है।
अमरीका में हुए शटडाउन पर राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के बयान की आलोचना की है जिसमें उन्होंने प्रवासी लोगों और बच्चों पर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। इसका मकसद सिर्फ जनता का सहयोग पाना था जिससे अमरीका और मेक्सिकों सीमा पर दीवार खड़ी की जा सके। ऐसे कदम से परिवार और बच्चे अलग होते हैं जिसे किसी भी देश की सरकार किसी हाल में सही नहीं कर सकती है।
पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने ऐसे बच्चों के लिए नियम बनाया था कि अगर उनका केस लडऩे के लिए 21 दिन के भीतर वकील नहीं मिलता है तो उसे उस देश वापस भेजा जाएगा जहां का वह रहने वाला है। भागे, बिछड़े बच्चे अकेले बसों और ट्रेनों में यात्रा कर मीलों चले जाते हैं पर कोई सुध लेने वाला नहीं है, इसपर सबको ध्यान देना होगा।
क्रिस्टेन मिलर्स पुस्तक विश्लेषक, वाशिंगटन पोस्ट से विशेष अनुबंध के तहत