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बिलासपुर

कांग्रेस बना रही ऐसी रणनीति कि आपको वोट डालने ही नहीं मिलेगा और चुन लिए जाएंगे नेता और…

Municipal elections: इस बार महापौर, नगर पालिका और नगर पंचायत अध्यक्ष का चुनाव जनता से करवाने की बजाए पार्षदों के माध्यम से करवाया जा सकता है।

बिलासपुरJul 14, 2019 / 01:56 pm

Murari Soni

Congress created new strategy in municipal elections

नगर निगम चुनाव में कांग्रेस बना रही ऐसी रणनीति कि आपके वोट डाले बगैर ही निर्वाचित हो जायेंगे नए महापौर

सतीश यादव

बिलासपुर. लोकसभा चुनाव में बुरी तरह से पिटने के बाद कांग्रेस नगरीय निकाय चुनाव(Municipal elections) में महापौर, नपं अध्यक्ष चयन की व्यवस्था को बदल सकती है। इस बात के संकेत राष्ट्रीय सचिव चंदन यादव के दौरे और कार्यकर्ताओं से ली जा रही टोह से मिल रहे हैं। कयास लगाया जा रहा है कि इस बार महापौर, नगर पालिका और नगर पंचायत अध्यक्ष का चुनाव जनता से करवाने की बजाए पार्षदों के माध्यम से करवाया जा सकता है। हाई कमान के निर्देश पर कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव व प्रदेश प्रभारी डॉ. चंदन यादव संगठन के पदाधिकारियों से बैठक कर इस बात की टोह ले रहे हैं। कार्यकर्ताओं से मिले फीड बैक के आधार पर निर्णय लिया जाएगा। विदित हो कि नगरीय निकाय चुनाव चार महीने बाद होने वाले हैं। वर्तमान व्यवस्था में महापौर, नगर पालिका व नगर पंचायत अध्यक्ष के पदों पर प्रत्यक्ष चुनाव यानि जनता चुनती है। लेकिन अब महापौर और अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया को बदलने की तैयारी चल रही है।
महापौर और अध्यक्ष का चुनाव अब प्रत्यक्ष करवाने की बजाए अप्रत्यक्ष रूप से किया जा सकता है। ऐसा इसलिए किया जा रहा है कि क्योंकि मई महीने में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को सभी नगरीय निकायों में करारी हार मिली है। कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव डॉ.चंदन यादव द्वारा जिलेवार बैठक लेकर पदाधिकारियों से टोह लिया जा रहा है लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस की क्या स्थिति है।
नगरीय निकाय चुनाव जीत पाएंगे कि नहीं। ऐसा कौन सा परिवर्तन आया है कि लोकसभा में सभी नगरीय निकाय को हारने के बाद हम नगरीय निकाय के चुनाव को जीत जाएंगे। बताया जाता है कार्यकर्ताओं से मिले फीड बैक को हाईकमान के सामने रखा जाएगा। इसके आधार पर फैसला लिया जाएगा।
ये होगा फायदा
नगरीय निकाय चुनाव में कांग्रेस के पार्षद कम जीतते हैं तो तोडफ़ोड़ कर अपना महापौर व अध्यक्ष चुना जा सकता है। इससे पहले भी ऐसा हुआ है। 2000 के पहले पार्षद, महापौर और अध्यक्ष चुना करते थे। लेकिन 2000 के बाद जब से ये निर्वाचन प्रत्यक्ष हुआ यानि जनता ने चुनना शुरू किया तो सिर्फ एक बार वाणीराव कांग्रेस से महापौर के लिए जीती इसके बाद इस सीअ पर भाजपा का कब्जा रहा है। कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी व राष्ट्रीय सचिव डॉ. चंदन यादव जिले के सभी विधानसभा के कार्यकर्ताओं की बैठक लेकर वहां की नब्ज को टटोला। इस दौरान अनेक कार्यकर्ताओ ने नगरीय निकाय और नगर पंचायतों में कांग्रेस की स्थिति को अच्छा नहीं बताया है।
कुछ कार्यकर्ताओं ने नगरीय निकाय चुनाव को जीतने के लिए पुरानी व्यवस्था पर वापस लौटने की सलाह दी है। कांग्रेसियों का तर्क है कि नगरीय निकाय और नगर पंचायतों की चुनाव में सत्ता दल का नेता होने से योजनाओं का सीधा लाभ उनके नेता जनता को दिला सकते हैं। अगर महापौर विपक्षी दल का रहा तो पूरा कार्यकाल विवादों में निबट जाता है। पिछले चुनाव में महापौर कांग्रेस से वाणीराव थीं, राज्य में सत्ता भाजपा की थी। वाणीराव और भाजपा के बीच इतनी खींचतान रही कि कोई काम समय पर नहीं हो पाया। अधिकांश कार्य फाइल रोकने के चक्कर में अटक गया।
अब तक की स्थिति
बिलासपुर नगर निगम में राजेश पाण्डेय को पार्षदों ने चुनकर महापौर बनाया। उमाशंकर जायसवाल भाजपा में थे, तब महापौर का चुनाव प्रत्यक्ष विधि से करवाया गया। इसमें उमाशंकर ने कांग्रेस के बैजनाथ चंद्राकर को हराया। इसके बाद भाजपा से अशोक पिंगले ने शेख गफ्फार को हराया। शेख गफ्फार के बाद कांग्रेस से वाणीराव ने भाजपा के मंदाकिनी पिंगले को हराया इसके बाद भाजपा के किशोर राय ने रामशरण यादव को हराया।
24 पार्षद कांग्रेस के पास
नगर निगम में कांग्रेस के 24 पार्षद चुनाव जीतकर आए। तब प्रदेश में भाजपा की सरकार थी विधायक व मंत्री भी भाजपा के थे। चार निर्दलीय और 38 भाजपा के पार्षद थे। इस तरह दोनों पार्टी में 14 पार्षदों का अंतर है। अब कांग्रेस की सरकार है। संगठन की कोशिश है कि ज्यादा से ज्यादा चुनकर आए। वैसे भी पार्षद चुनाव (Municipal elections) को पार्टी के बजाय व्यक्तिगत चुनाव ज्यादा माना जाता है। इसमें चुनाव वही जीतता है जिसकी अपने वार्ड में छवि अच्छी होती है।

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