जबकि इन अत्यचारों से जुड़े मामलों में शिकायत दर्ज करने में भी पुलिस अधिकांश दिलचस्पी नहीं दिखाती। यहां तक की यदि पुलिस इस मामले को लेकर लापरवाही बरते तब भी कार्रवाई का महज दिखावा तो करती है, लेकिन अपने सहयोगियों पर कभी 166-ए में कार्रवाई तक नहीं करती।
कुल मिलाकर महिलाओं का उत्पीडऩ, उनके खिलाफ हुए अत्याचार की एफआइआर लिखने से इनकार-आनाकानी करने वाले पुलिसकर्मियों पर कानून का चाबुक कभी नहीं चलता। इसकी कहानी आईपीसी की धारा-166-ए खुद बयां कर रही है।
भोपाल पुलिस के रेकॉर्ड में आज तक इस धारा के तहत किसी पुलिसकर्मी के खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई है। इसके उलट ऐसे लापरवाह पुलिसकर्मियों को अभयदान ही मिलता रहा है।
दरअसल, 2012 के दिल्ली के निर्भयाकांड के बाद फरवरी 2013 में सरकार ने आइपीसी की धारा 166 में संशोधन कर धारा 166 (ए) संसद में पारित कराकर कानून बनाया था।
इसमें प्रावधान है कि महिला उत्पीडऩ संबंधित मामलों की सूचना वह स्वयं या किसी अन्य के माध्यम से पुलिस को देती है तो पुलिस का कर्तव्य है कि वह तुरंत केस दर्ज कर विवेचना शुरू करे।
एफआइआर नहीं करने वाले पुलिसकर्मी के खिलाफ 166-(ए) के तहत मामला दर्ज किया जाए, लेकिन पिछले दिनों कमला नगर में बच्ची के साथ दुष्कर्म के आद हुई हत्या के मामले में ऐसा नहीं हुआ। पुलिस ने एफआइआर करने से साफ मना कर दिया। आनन-फानन में किरकिरी से बचने लापरवाह पुलिसकर्मियों के खिलाफ सिर्फ निलंबन की कार्रवाई की गई।
भोपाल पुलिस की अब तक की तमाम कार्रवाई बता रही कि मामला ठंडा होते ही निलंबित पुलिसकर्मियों को बहाल कर दिया जाता है। अफसरों की जांच में बेदाग घोषित कर दिए जाएंगे।
इससे पहले भी हबीबगंज गैंगरेप केस में लापरवाही बरतने वाले इंस्पेक्टरों को अभयदान दिया जा चुका है। मामले में निलंबित किए गए सभी इंस्पेक्टर मनचाहे थानों, दफ्तरों में पदस्थ हैं।
केस-1
अक्टूबर 2017:
यूपीएससी की तैयारी कर रहे छात्रा के साथ गैंगरेप। सीमा विवाद में तीन थानों में एफआरआर नहीं दर्ज की गई। तत्कालीन जीआरपी टीआई मोहित सक्सेना, हबीबगंज टीआई रविन्द्र यादव, एमपी नगर टीआई संजय बैस को सस्पेंड किया गया। सालभर चली जांच के बाद तीनों को क्लीन चिट दे दी गई। मोहित सतना, संजय भिंड, रविन्द्र पुलिस मुख्यालय में पदस्थ हैं।
केस-2
अप्रेल 2016:
कोलार इलाके में मासूम बच्ची के साथ सौतेले पिता ने दुष्कर्म किया। मासूम को लेकर मां थाने पहुंची। तत्कालीन कोलार टीआई सुदेश तिवारी ने एफआईआर दर्ज करने से इंकार कर दिया। बाद में जीरो में टीटी नगर थाने में एफआईआर दर्ज की हुई। तिवारी को लाइन अटैच किया। इसके थोड़ी दिन बाद ही उन्हें हनुमानगंज थाने में पदस्थ कर दिया गया।
केस-3
मार्च 2017:
किड्जी स्कूल के संचालक आशुतोष प्रताप सिंह पर स्कूल में पढऩे वाली तीन साल की बच्ची पर दुष्कर्म के आरोपी की शिकायत हुई। तत्कालीन थाना प्रभारी गौरव सिंह बुंदेला (एसआइ) तीन दिन तक एफआईआर नहीं दर्ज की। डीजीपी के निर्देशपर एफआइआर हुई। टीआई को सस्पेंड कर दिया गया। अब वह हैदगरढ़, विदिशा थाना प्रभारी हैं।
वेबसाइट में कोई डाटा ही नहीं
प्रदेश में इस धारा का कितना उपयोग होता होगा, इसका अंदाजा स्टेट क्राइम रिकार्ड ब्यूरो, नेशनल क्राइम रेकॉर्ड ब्यूरो से लगाया जा सकता है। इस धारा का दोनों की वेबसाइट में कोई डाटा ही उपलब्ध नहीं है।
इतना ही नहीं इस धारा का कॉलम भी अब तक नहीं बनाया गया। इसके पीछे की बड़ी वजह यह कि इस धारा में राजधानी समेत प्रदेश में कोई कार्रवाई ही नहीं की गई।
आयोग ने भी आईजी से पूछा
मानवाधिकार आयोग ने भोपाल जोन आईजी से इस धारा के तहत अब तक कितनी कार्रवाई की गईं, इसकी जानकारी मांगी है। सूत्रों की मानें तो भोपाल जोन में इस धारा का रेकॉर्ड नहीं है। अब तक एक भी कार्रवाई इस धारा के तहत किसी पुलिसकर्मी के खिलाफ नहीं की गई है।