जिंदल पावर स्टील में जूनियर इंजीनियर श्रीमंत ने नौकरी और खेल दोनों के बीच में गजब का तालमेल बैठाया है। वे रोजाना आठ घंटे की नौकरी के बाद 4 घंटे अपने खेल को देते हैं। चार घंटे कड़ी मेहनत करके जिम में पसीना बहाते हैं। उनका लक्ष्य अब वल्र्ड चैंपियनशिप में देश के लिए सोना जीतना है। वल्र्ड चैंपियनशिप के साथ ही एशिया और वल्र्ड कप में भी दिव्यांग खिलाड़ी ने उमदा प्रदर्शन करते हुए 10 से ज्यादा मैडल जीता है।
जन्म से दिव्यांगता के साथ आगे बढ़ रहे श्रीमंत कहते हैं कि दिव्यांगता कोईअभिशाप नहीं बल्कि सबसे बड़ी ताकत है। दुनिया में कुछ करने के लिए सोच बड़ा रखने की जरूरत है। मेहनत और संघर्ष के बीच सफलता कब आपके कदम चूमेंगी पता नहीं चलेगा। सिर्फ सांसे चलते रहने को जिंदगी नहीं कहते, आंखों में कुछ ख्वाब और दिल में उम्मीदें होना भी जरूरी है।