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बैंगलोर

जहां श्रद्धा हो वहां तर्क उचित नहीं: आचार्य महाश्रमण

आचार्य महाश्रमण ने महाश्रमण समवसरण में प्रवचन में कहा कि हमारी दुनिया में बुद्धि और तर्क का अपना-अपना महत्व है। निर्मल बुद्धि से तर्क किया जाए तो सच्चाई पाने की दिशा में गति मिलती है। तर्क और श्रद्धा दो अलग-अलग विषय हैं।

बैंगलोरOct 17, 2019 / 07:49 pm

Santosh kumar Pandey

जहां श्रद्धा हो वहां तर्क उचित नहीं: आचार्य महाश्रमण

आचार्य महाश्रमण

बेंगलूरु. आचार्य महाश्रमण ने महाश्रमण समवसरण में प्रवचन में कहा कि हमारी दुनिया में बुद्धि और तर्क का अपना-अपना महत्व है। निर्मल बुद्धि से तर्क किया जाए तो सच्चाई पाने की दिशा में गति मिलती है। तर्क और श्रद्धा दो अलग-अलग विषय हैं। जहां पर हमारी श्रद्धा हो वहां पर तर्क उचित नहीं होता है परंतु विषय की जानकारी के लिए निर्मल बुद्धि से समस्या का निवारण किया जा सकता है। हर बात को तर्क से हल नहीं किया जा सकता। जहां पर उचित हो वहां पर तर्क से हल पाया जा सकता है। आदमी को तर्क का प्रयोग इंद्रिय गम्य विषयों पर करना चाहिए। आत्मा का स्वरूप तर्कातीत विषय है। व्यक्ति को आत्मा का स्वरूप तब तक दिखाई नहीं देता है जब तक वह अपनी ज्ञान चेतना का मंथन न करे। दुनिया में नास्तिकवाद की बात भी होती है परंतु आत्मा के स्वरूप को वह भी नहीं नकार सकते। क्योंकि दुनिया में अनेक चीजें होती है जो हमें दिखाई नहीं देती परंतु उनका अस्तित्व होता है। प्रवचन में जैनोलॉजी और आत्मा के विषय में पीएचडी अथवा शोध करने वाली समणीवृन्द द्वारा चारवाद और आत्मवाद के सिद्धांत के बारे में वक्तव्य दिया गया।
अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के तत्वावधान में तेरापंथ टास्क फोर्स के 3 दिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन का शुभारंभ आचार्य के मंगल पाठ से हुआ। संचालन मुनि दिनेश कुमार ने किया।

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