भोपाल

गुरुवार को है शब-ए-बारात, लॉकडाउन के बीच इबादत को लेकर शहर काजी ने की खास अपील

भोपाल शहर क़ाजी सैय्यद मुश्ताक अली साहब की शब-ए-बारात को लेकर मुसलमानों से अपील, घर में रहकर करें इबादत, मस्जिद और कब्रिस्तान जाने के लिए घर से बाहर न निकलें। लॉकडाउन का पालन करें।

भोपालApr 08, 2020 / 07:18 pm

Faiz

गुरुवार को है शब-ए-बारात, लॉकडाउन के बीच इबादत को लेकर शहर काजी ने की खास अपील

भोपाल/ कोरोना वायरस का असर लोगों की सेहत पर ही नहीं, बल्कि इंसान से जुड़ी लगभग हर एक चीज पर दिखाई देने लगा है। ये न सिर्फ देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा रहा है त्योहारों का देश कहे जाने वाले भारत पर भी इसका खास असर दिखाई देने लगा है। हालही में हमने देखा कि, इस बार की नवरात्री लोगों ने अपने घऱों में रहकर ही मनाई। वैसे ही, गुरुवार 9 अप्रैल 2020 को मुसलमानों के लिए बेहद खास शब-ए-बारात का त्योहार आ रहा है। हालांकि, कोरोना वायरस के कारण देशभर में किये गए लॉकडाउन को लेकर देशभर के मुस्लिम धर्मगुरूओं ने मुस्लिम समाज के लोगों से अपने घरों में रहकर ही इबादत करने की अपील की है। मध्य प्रदेश के सभी शहरों के काज़ियों की तरह काज़ी ए शहर भोपाल ने भी शब-ए-कद्र की इस रात को लेकर मुसलमानों से खास अपील की है।

 

 

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भोपाल शहर काजी की मुसलमानों से खास अपील

शहर काजी भोपाल सैय्यद मुश्ताक अली ने जानकारी देते हुए बताया कि, शब-ए- बारात गुरुवार की रात को होगी। इसके बाद उन्होंने सभी मुसलमानों से अपील करते हुए कहा कि, ये बात हम सभी जानते हैं कि, लगभग पूरी दुनिया में एक वबा (संक्रमण) फैला हुआ है। जिससे बचाव के लिए सरकार की तरफ से लोगों के बीच सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखने के लिए लॉकडाउन किया है। उन्होंने कहा कि, ये बात समझनी होगी कि, ये बहुत जरूरी है। इसलिए लॉकडाउन की पूरी तरह पालन करते हुए इस रात की इबादत हम सभी अपने अपने घरों में ही करें। घरों से बिल्कुल भी बाहर न निकलें। अकसर लोग इस रात में अपने मरहूमीन (पूर्वज) की कब्र पर फातिहा पढ़ने जाते हैं। लेकिन, इस बार ये लोग कब्रिस्तान भी न जाएं। ताकि, हम वबा की चपेट में आने से बच सकें। शहर काजी ने वीडियो के जरिये लोगों से कई महत्वपूर्ण बातें भी कीं।

 

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आइये जानते हैं शब-ए-बारात से जुड़ा खास बातें

मज़हब-ए-इस्लाम के दिनों की गिनती चांद की तारीख़ों से तय होती है और इसी हिसाब से महीने तय किए जाते है। इन्ही महीनों में से एक महीना है “शाबान”। शाबान सालभर के महीनो में से आठवां महीना है, जो सिलसिलेवार चांद के ज़मीन पर दिखने के पहले दिन से शुरु हुआ है। इस्लाम के मुताबिक, ये महीना काफी अहम (ख़ास) होता है। इसी महीने की 14वीं और 15वीं तारीख़ की दरमियानी रात को भी काफ़ी ख़ास रात माना जाता है। इस रात का भी एक नाम है, इसे “शब-ए-बारात” के नाम से जाना जाता है। साथ ही, इसे “शब-ए-कद्र” (कद्र करने वाली रात) के नाम से भी जाना जाता है, आइए आपको भी बताते हैं इस फ़जीलत भरी (ख़ास) रात के बारे में कुछ अहम बातें।

 

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रोज़े की है ख़ास अहमियत

शब-ए-बारात को मज़हब-ए-इस्लाम में इबादत की काफी अहम रात माना जाता है। वैसे तो, रमज़ान महीने से पहले आने वाले इस महीने में मुस्लिम समुदाय के कई लोग रोज़े भी रखते हैं, ये रोज़े नफ़्ली (सभी पर लागू ना होने वाले) होते हैं। मुस्लिम समुदाय के लोगों के नज़दीक (क़रीब) इन रोज़ों वाले दिन में और शब-ए-बारात की रात के अगले दिन रोजा रखने को खास माना जाता है। क्योंकि, ये रात इबादत की रात मानी जाती है, इसलिए भी मुस्लिम समुदाय के कई लोग इन दो दिनो में रोज़ा रखकर इबादत करते हैं। मज़हबी (धार्मिक) तौर पर ऐसा माना जाता है, कि इन दिनों में रोज़ा रखने वालों से अल्लाह खुश होता है।

 

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गुनाहों से तौबा की है ये रात

इस्लामिक तारीख़ों के मुताबिक़, ये इबादत की रात है। इस रात में मुस्लिम समुदाय के लोग घरों, मस्जिदों और खानगाहों में अल्लाह की इबादत करते हैं। इस रात में मुस्लिम अपने गुनाहों की तौबा करते हैं। क्योंकि, मुसलमान के नजदीक ये भी माना जाता है कि, इंसान कई जगहों पर ऐसे काम कर ही देता है जो, अल्लाह के नजदीक बुरे माने जाते हैं और कई बार इंसान ऐसे भी काम कर देता है, जो गलत होते हैं और उस इंसान को पता भी नहीं होता। ऐसे गुनाहों की तौबा करने के लिए भी इस रात को काफी अहम माना जाता है।

 

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“शब-ए-बारात” का क्या है मतलब?

शब-ए-बारात की रात को अगर एक आम अल्फ़ाज में बताया जाए तो, इसका मतलब है, वो रात जिसमें बरी होते है, यानि “शब” का मतलब होता है “रात” और “बरआत” का मतलब होता है “बरी होना” होना। इसी रात को “शब-ए-कद्र” के नाम से भी जाना जाता है, यानि वो रात जिसकी कद्र की जाए। ये रात साल में एक बार शाबान के महीने की 14 तारीख को सूरज डूबने के बाद से शुरु होकर 15 तारीख़ के सूरज निकलने से पहले तक रहती है।

 

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इस रात में खासतौर पर मुस्लिम समुदाय के लोग अल्लाह की इबादत करते हैं, अपने गुनाहों की तौबा करते हैं, साथ ही दुनिया और आख़िरत (मरने के बाद की जिंदगी) के लिए दुआएं मांगते हैं। साथ ही ये लोग अपने रिश्तेदारों और दुनिया के सभी लोगों की भलाई के लिए भी अल्लाह से दुआ करते है। साथ ही, इस रात में इबादत के साथ कुरआन की तिलावत (धर्म ग्रंथ को पढ़ना) भी की जाती है। इस रात में खासतौर पर उन रिश्तेदारों के लिए भी दुआ की जाती है, जो इस दुनिया से जा चुके हैं, उनके लिए भी इस रात में अल्लाह से माफी मांगी जाती है। मज़हबी तौर पर ऐसा माना जाता है कि, इसा रात से पहले किए गए कामों का लेखाजोखा अल्लाह के नजदीक तैयार होता है और आने वाली शब-ए-कद्र तक का मुस्तक़बिल (भविष्य) तय होता है और इस्लामिक मान्यता के मुताबिक, इसी दिन ये भी तय होता है कि, इंसान को इस साल से ज्यादा जिंदगी देना है या नहीं। इसलिए अगर बंदा अपने पिछले गुनाहों की माफी मांग लेता है तो, ईश्वर उससे खुश होकर उसके आने वाले समय को बेहतर बना देता है।

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