उड़ीसा में पुरी से 25 किलोमीटर दूर अलवर नाथ के नाम से एक मंदिर है जो देश ही नहीं विदेशों के कृष्ण भक्तों के लिए प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। इस मंदिर का निर्माण अलवर राजघराने ने करवाया था। यह किवदंती है कि सतयुग में भगवान ब्रह्मा ने स्वयं पर्वत के शिखर पर भगवान विष्णु की पूजा की थी। इस पूजा से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने भगवान ब्रह्मा को आदेश दिया कि इस स्थान पर उनका एक मंदिर बनवाया जाए। भगवान ने यह भी इच्छा जताई कि यहां जो मूर्ति हो, वह काले पत्थर की बनी हो जिसकी चार भुजाएं हो। यहां गरुड़ की भी मूर्ति स्थापित हो। इस मंदिर के इतिहास में यह लिखा है कि इस मंदिर का निर्माण अलवर के शासकों ने करवाया था, जिसे अलवर नाथ के नाम से जाना जाता है।यह भी माना जाता है कि भगवान चैतन्य महाप्रभु भगवान जगन्नाथ के अनावसारा काल के दौरान अलवर नाथ में ही रुके थे। अनावसारा वह अवधि कहलाती है कि जब भगवान जगन्नाथ वार्षिक स्नान महोत्सव के बाद एकांत में विश्राम के लिए चले जाते हैं।
ऐसी मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ के शासनकाल के दौरान अलवर नाथ मंदिर के दर्शन कल श्रद्धालु भगवान का आशीर्वाद लेते हैं। इस दौरान यहां भगवान को खीर का भोग लगाकर भक्तों में बांटा जाता है। इस मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण की दोनों पत्नियों रानी रुकमणि और सत्यभामा क
मूर्तियां हैं। मंदिर के पीछे एक झील भी है जिसमें 21 दिवसीय चंदन यात्रा त्यौहार धूमधाम से मनाया जाता है।