ये मामला थाना अछनेरा के गांव फतेहपुरा का है। यहां के रहने वाले 36 वर्षीय राजेन्द्र सिंह पुत्र पातीराम प्राइमरी विद्यालय में शिक्षामित्र थे। वर्ष 2014 में पहले बैच में ही राजेन्द्र सिंह का सहायक अध्यापक के रूप में समायोजन हुआ और उन्हें फतेहाबाद में तैनाती मिली। इसके बाद जब सुप्रीम कोर्ट से समायोजन रद्द हुआ, तो राजेन्द्र सिंह दोबारा शिक्षामित्र के रूप में अपने गांव के स्कूल में वापस आ गए। नौकरी जाने का गम तो था ही, लेकिन इस बार आर्थिक तंगी ने इस कदर राजेन्द्र को तोड़ दिया, कि वो बड़ा कदम उठाने पर मजबूर हो गए।
राजेन्द्र सिंह ने 8 नवंबर की रात को अपने कमरे में फंदे पर लटकर आत्महत्या कर ली। सुबह जब परिजनों ने कमरे में शव को लटकता हुआ देखा, तो उनके होश उड़ गए। परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। समझ नहीं आ रहा था, कि दीपोत्सव के दौरान उनके हंसते खेलते परिवार को किसकी नजर लग गई। पत्नी मोतनी देवी तो अपनी सुध बुध खो बैठी। बस रोते हुए एक ही बात कह रही थी, कि पति की मौत के जिम्मेदार शिक्षा विभाग के अधिकारी हैं।
परिजनों ने बताया कि पिछले कई महीनों से मानदेय का पैसा नहीं मिल रहा था, जिससे परिवार की आर्थिक स्थिति खराब हो गई थी। राजेन्द्र सिंह के चार बच्चे हैं, बड़ी बेटी ज्योति 13 वर्ष की है, जो पढ़ाई कर रही है। उससे छोटा बेटा ललित सात वर्ष, भावना दो वर्ष और सबसे छोटी बेटी रुचि अभी सिर्फ तीन माह की है। पत्नी ने बताया कि मानदेय न मिलने से पति परेशान थे। सीधा आरोप बीएसए पर लगाते हुए कहा कि मानदेय का पैसा बीएसए जारी नहीं कर रहे हैं। दिवाली का त्योहार था और घर में रुपये नहीं थे। बच्चों की बहुत सी इच्छाएं होती हैं, ऐसे में पिता की खाली जेब और मासूम बच्चों की इच्छाओं को दबाते हुए, पति और भी परेशान हो गए। मानसिक तनाव इस कदर हावी हुआ, कि पति ने ये आत्मघाती कदम उठाया।