ऐसे करें पूजा
एक टोकरी में पूजन की सारी सामग्री रखकर वट वृक्ष के पास जाएं। फिर वहां सफाई करके सामग्री को रखना चाहिए और एक स्थान पर बैठ जाना चाहिए। उसके बाद सबसे पहले सत्यवान और सावित्री की मूर्तियों को स्थापित करना चाहिए। उसके बाद धूप, दीप, रोली भिगोए चने, सिंदूर आदि सामग्री से वट सावित्री का पूजन करना चाहिए। इस दिन महिलाएं पंडित जी से कथा सुनती हैं। इसके अलावा पट के वृक्ष में 5, 11, 21, 51 या फिर 108 बार धागा लपेटते हुए फेरे लेती है।
मद्र देश के राजा अश्वपति ने अपनी पत्नी के साथ सावित्री देवी का विधिपूर्वक व्रत रखा था, जिसके बाद उन्हें पुत्री की प्रप्ति हुई थी। राज ने अपनी पुत्री का नाम भी सावित्री रखी, सावित्री जब बड़ी हुईं तो अश्वपति ने उन्हें अपने मंत्री के साथ वर को चुनने के लिए भेजा. सावित्री ने जैसे ही सत्यवान को अपने वर के रुप में चुना देवर्षि नारद ने सबको बता दिया कि विवाद के 12 साल बाद सत्यवान की मृत्यु को जाएगी। इसे जानने के बाद अश्वपति ने अपनी पुत्री को दूसरा वर चुनने के लिए कहा, लेकिन सावित्री नहीं मानी. सावित्री को नारद जी से अपने पति के मृत्यु का समय पता चल गया, जिसके बाद वो अपने पति और सास, ससुर के साथ वन में रहने लगीं. सावित्री ने नारद जी के बताए दिन से कुछ समय पहले से व्रत रखना शुरू कर दिया. उसके बाद जब सावित्री के पति को यमराज लेने आए तो वो उनके पीछे चलने लगीं, जिसके बाद यमराज ने सावित्री की निष्ठा से प्रसन्न होकर उन्हें वर मांगने के लिए कहा. सावित्री ने सबसे पहले वर में अपने अंधे सास-ससुर की आंखो की रोशनी मांगते हुए उनके दीर्घायु होने की कामना की. उसके बाद भी सावित्री यमराज के पीछे चलती रहीं दूसरे वर में सावित्री ने यमराज से अपने पति का छूटा राज पाठ मांगा. आखिर में सावित्री ने यमराज से सौ पुत्रों का वरदान मांगा, जिसके बाद यमराज ने उनके पति के प्राण को वापस लौटा दिया।