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राजा भैया के लिए किसी से वोट नहीं मांगते उनके पिता राजा उदय प्रताप सिंह, जानिए क्या है वजह

locationवाराणसीPublished: Jan 10, 2019 02:19:14 pm

Submitted by:

sarveshwari Mishra

इस वजह से कभी किसी चुनाव प्रचार में नहीं जाते राजा भैया के साथ

Bahubali Raja Bhaiya

Bahubali Raja Bhaiya

वाराणसी. आगामी लोकसभा चुनाव 2019 की उल्टी गिनती अब शुरू हो गई है। चुनाव जैसे- जैसे नजदीक आ रहा वैसे- वैसे राजनितिक सरगर्मिया तेज हो गई। यूपी की राजनीति में कद्दावर नेता के तौर पर गिने जाने वाले बाहुबली रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया जिनके आगे सत्ता भी सर झुकाती है। राजा भैया कुंडा से छठवी बार विधायक हैं। इस बार 2019 लोक सभा चुनाव के लिए राजा भैया ने अपनी नई जनसत्ता पार्टी बनाई है। राजा भैया ने अपनी पार्टी के लिए दो उम्मीदवार भी घोषित कर दिया है। पहले उम्मीदवार राजा भैया के सबसे करीबी व उनके चचेरे भाई सपा एमएलसी अक्षय प्रताप सिंह उर्फ गोपाल जी हैं तो वहीं दूसरे कैंडिडेट कौशाम्बी के पूर्व सांसद शैलेंद्र सिंह हैं। जो लोकसभा चुनाव 2019 में विरोधियों को झटका देने के लिए तैयार हैं। इनका पोस्टर भी जारी कर दिया गया है। बता दें कि 30 नवम्बर को राजा भैया ने लखनऊ के रमाबाई पार्क में अपनी राजनीतिक पार्टी का औपचारिक ऐलान किया था। राजा भैया के कार्यक्रम में चार लाख से ज्यादा भीड़ भी जुटी थी। लेकिन राजा भैया के साथ उनके पिता राजा उदय प्रताप नहीं आए थे। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि राजा भैया के पिता ने आज तक वोट भी नहीं दिया है।
पिता ने आज तक नहीं दिया वोट
दरअसल, राजा भैया के पिता राजा उदय प्रताप सिंह एक स्वाभिमानी व्यक्ति हैं। उन्होंने आज तक राजा भैया के लिए किसी से वोट तक नही मांगा। क्षेत्र में अलग छाप होने के बावजूद वह आज तक राजा भैया के चुनाव प्रचार में कभी साथ भी नहीं रहे। कहा यह भी जाता है कि वह कभी वोट देने भी नहीं जाते।
राजा भैया ने ऐसे रखा था राजनीति में कदम
राजा भैया जब पढ़ाई पूरी करके कुंडा आए तो उस समय राजनीति में इनका कोई दखल नहीं था। इनके पास क्षेत्र के सैकड़ों लोग रोजाना अपनी समस्याएं लेकर आते थे। लोगों की दिक्कत देखकर इन्होंने सोचा कि प्रॉब्लम्स सॉल्व करने के लिए राजनीति में एंट्री जरूरी है। राजा भैया ने काफी हिम्मत जुटाकर अपने पिता से चुनाव लड़ने की अनुमति मांगी, लेकिन उन्होंने साफ तौर पर मना कर दिया था। जब ये रोज पॉलिटिक्स में आने की बात करने लगे तो इनके पिता ने कहा- आप बंगलुरु में हमारे गुरुजी के पास जाइए और उनसे आदेश लीजिए। अगर वह परमिशन देंगे तो आप चुनाव लड़ सकते हैं। राजा भैया ने वही किया। गुरुजी की परमिशन के बाद ही राजा भैया 1993 में पहली बार निर्दलीय चुनाव में उतरे थे और विजयी रहे थे। तब से इनका विजय रथ जारी है।
राजा भैया का राजनीतिक सफर
राजा भैया ने 1993 में उत्तर प्रदेश की कुंडा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ा और विजयी होकर विधायक बने। पहली बार जब वे विधायक बने तब उनकी उम्र महज 26 साल थी। राजा भैया की अजेय कुंडा सीट पर उनसे पहले कांग्रेस के नियाज हसन का डंका बजता था। बहरहाल, इस सीट पर लगातार जीत हासिल करने वाले राजा भैया पर सभी दलों की निगाह टिकी रहती है। गौरतलब है की राजा भैया 1993 और 1996 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी समर्थित, तो 2002 और 2007, मायावती के शासनकाल में राजा भैया पर पोटा कानून के तहत केस दर्ज करके जेल भेज दिया । 2012 में सपा की सरकार बनने के बाद वह एक बार फिर मंत्री बनाये गये, कुंडा में डिप्टी एसपी जिया उल-हक की हत्या में नाम आने के बाद रघुराज प्रताप सिंह को अखिलेश मंत्रिमंडल से इस्तीफा देना पड़ा । आठ महीने बाद फिर से मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया गया और 2012 के चुनाव में एसपी समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में विधायक चुने गए। राजा भैया, बीजेपी की कल्याण सिंह सरकार और एसपी की मुलायम सिंह सरकार में भी मंत्री बने। 2017 में निर्दलीय विधायक हैं।
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