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उज्जैन

राष्ट्रीय शिक्षा दिवस:क्यो पिछड़े हम शिक्षा

आज बजट, साधन-संसाधन में कमी से शिक्षा में हम पिछड़े रहें है। उच्च शिक्षा पर गठित विभिन्न संसदीय समितियों व स्वतंत्र निकायों की रिपोर्ट के अनुसार शिक्षा की प्रगति में काफी हद तक बजट एक बड़ी समस्या है।

उज्जैनNov 10, 2019 / 10:28 pm

Shailesh Vyas

National Education Day: Why we education backward

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उज्जैेन. उच्च शिक्षा की बात करें तो वर्षों पहले इसके लिए जो उच्च शिक्षा की जो कल्पना की थी, वह सात दशक बाद भी पूरी होती दिखाई नहीं दे रही है। उच्च शिक्षा पर गठित विभिन्न संसदीय समितियों के अलावा दर्जनों स्वतंत्र निकायों की रिपोर्ट भी आई हैं। इन रिपोर्ट से साफ हो जाता है कि उच्च शिक्षा का स्तर धीरे-धीरे ही सही ऊपर उठा है, लेकिन उसी अनुपात में यह देश की आम जनता की पहुंच से दूर होती गई है।
बजट, साधन और संसाधान की कमी के कारण तमाम प्रयासों के बाद भी शिक्षा के क्षेत्र में हम काफी पिछडे़ हैं। काफी हद तक बजट एक बड़ी समस्या है। राजनीतिक, आर्थिक तौर पर हम जिन देशों के समकक्ष है, उनके मुकाबले यह खर्च बहुत कम है। दुनिया के लगभग सभी विकासशील देशों में उच्च शिक्षा में छात्रों की संख्या स्कूली छात्रों के मुकाबले कम हैं। उच्च शिक्षा के सरकारी संस्थानों की संख्या सीमित है।
शाला त्यागी बच्चों को लाना पड़ता है
शिक्षा को लेकर स्थिति यह है कि एक बार स्कूल में प्रवेश लने के बाद हजारों बच्चें स्कूल ही नहीं जाते है। वर्तमान सत्र में उज्जैन जिले में प्राथमिक और माध्यमिक स्तर के लिए 1.25 लाख से अधिक बच्चों का स्कूलो के लिए पंजीयन किया गया था। इसमें से २० हजार से अधिक बच्चे स्कूल ही नहीं गए। शिक्षा विभाग ने शाला त्यागी बच्चों को घर-घर जाकर फिर से स्कूल लाने की जिम्मेदारी शिक्षकों को दी है।
700 से अधिक स्कूलों में केवल दो शिक्षक
सरकार शासकीय स्कूलों को निजी स्कूलों की तर्ज पर विकसित करने के भले ही तमाम प्रयास कर रही है, लेकिन यह प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं। अकेले उज्जैन जिले में कई स्कूल अतिथि शिक्षकों के तो अनेक विद्यालय एक -दो शिक्षकों केभरोसे ही चल रहे हैं। स्कूलों में शिक्षकों की कमी है। वर्तमान में उज्जैन जिले में 1423 प्राथमिक,729 माध्यमिक, 98 हाईस्कूल और 104 हायर सेकेंडरी स्‍कूल संचालित हो रहे हैं। इन स्‍कूलों में शिक्षकों के करीब 1500 से ज्यादा पद खाली हैं। जिले में करीब 700 प्राथमिक और माध्यमिक स्कूल,जहां केवल एक-दो शिक्षक ही सारा जिम्मा संभाले हुए हैं। जिले में औसत रूप से 40 छात्रों को केवल एक शिक्षक ही शिक्षित कर रहा है।
अतिथि विद्वानों के भरोसे सरकारी कॉलेज
उज्जैन जिले में चार नए सरकारी कॉलेज हैं जो स्थापना के बाद से ही अतिथि विद्वानों के भरोसे चल रहे हैं। शासन ने विषय तो रखे हैं पर संसाधन नहींं दिए हैं। शैक्षणिक के साथ कार्यालयीन कर्मचारी की कमी भी इन कॉलेजों में हैं। बीत चार वर्षों मेंं सरकार ने उज्जैन जिले को चार कॉलेजों की सौगात तो दी, लेकिन अधूरी व्यवस्था और संसाधन के बगैर। जिले के 70 सरकारी कॉलेज में 70 अतिथि विद्वान कार्यरत है। खास बात यह है कि जिले में माकड़ोन, कायथा, उन्हेल और झारड़ा के सरकारी कॉलेज तो पूरी तरह अतिथि विद्वान के ही भरोसे हैं। उच्च शिक्षा के सरकारी संस्थानों की संख्या सीमित है। जाहिर है छात्रों के लिए मौके कम होते हैं। छात्रों के पास निजी संस्थानों या अन्य शहर में जाकर शिक्षा ग्रहण करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता है।
राष्ट्रीय शिक्षा दिवस क्यों
भारत रत्न से सम्मानित स्वतंत्रता संग्राम सैनानी मौलाना अबुल कलाम आजाद का ११ नवबंर को देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना आजाद का जन्मदिन राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में मनाया जाता है। वैधानिक रूप से राष्ट्रीय शिक्षा दिवस का प्रारंभ 11 नवम्बर 2008 से किया गया है। मौलाना आजाद केंद्रीय शिक्षा बोर्ड के चेयरमैन रहे। उनकी पहल पर भारत में 1956 में यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन की स्थापना हुई। शिक्षा मंत्री के तौर पर उनके कार्यकाल में ही इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आईआईटी) का गठन किया गया।
दो बड़ी खामियां
महंगी उच्च शिक्षा और अच्छे शिक्षकों की कमी हमारी शिक्षा व्यवस्था की दो बड़ी खामियां हैं। इसके अलावा समाज के हर हिस्से तक उच्च शिक्षा की पहुंच भी नहीं है। हाल के दशकों में उच्च शिक्षा में सरकारी हिस्सेदारी घटी है। फिलहाल बड़ी संख्या में छात्र निजी संस्थानों से उच्च शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। अगर हमें दुनिया के साथ प्रतिस्पर्धा करनी है तो शिक्षा पर खर्च के साथ संस्थान-साधन बढ़ाना होगा। निजी क्षेत्र के भरोसे हम देश के हितों की पूर्ति नहीं कर सकते।
-प्रो.नागेश शिंदे,शिक्षाविद्।

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