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उदयपुर

ऐसा टीका जो बच्चों को पहले लग चुका है, उसे फिर से लगाने का आदेश

Medical department: मिजल्स-रूबैला टीका जिसे पहले लग चुका है, उसे भी फिर से लगाया जाएगा। सरकार ने चिकित्सा विभाग को इसके लिए पाबंद किया है, क्योंकि जिसे टीका नहीं लगा होगा, वह भी डर के मारे यह कह सकता है कि उसे टीका लग चुका है। सरकार चाहती है कि सुरक्षा चक्र नहीं टूटे।

उदयपुरJul 21, 2019 / 12:47 pm

madhulika singh

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खसरा का टीका लगवाएं, बच्चे को बीमारी से बचाएं

भुवनेश पंडया/उदयपुर. मिजल्स-रूबैला टीका जिसे पहले लग चुका है, उसे भी फिर से लगाया जाएगा। सरकार ने चिकित्सा विभाग को इसके लिए पाबंद किया है, क्योंकि जिसे टीका नहीं लगा होगा, वह भी डर के मारे यह कह सकता है कि उसे टीका लग चुका है। सरकार चाहती है कि सुरक्षा चक्र नहीं टूटे। इस व्यवस्था से टीकाकरण को लेकर बच्चों को गिनीपिग बनाने के आरोप लगने लगे हैं। उल्लेखनीय है कि केन्द्र सरकार ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के सहयोग से बच्चों को खसरा, जर्मन खसरा या रूबेला से सुरक्षित करने के लिए मिजल्स रूबैला अभियान तय किया है। प्रदेशभर में 22 जुलाई से शुरू हो रहे इस अभियान पर सवालों की बौछार शुरू हो चुकी है। सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि जिन बच्चों को पहले टीके लग चुके हैं, उन्हें फिर से टीका लगाया जाएगा क्यों ? इस संबंध में मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ दिनेश खराड़ी की दलील है कि जिस कंपनी के यह टीके हैं, उसने करीब एक माह से इसकी सप्लाई निजी चिकित्सालयों से लेकर मेडिकल स्टोर्स पर बंद कर दी है यानी अब ये टीके नहीं लग रहे हैं। आरसीएचओ डॉ अशोक आदित्य का कहना है कि सरकार की मंशा है कि कोई बच्चा नहीं छूटे इसलिए यह टीका सभी को लगेगा, चाहे पहले लगा दिया गया हो। इन दोनों जवाबों पर सवाल खड़ा होता है कि क्या जिस बच्चे को एक माह पहले ही टीका लगा हो, उसे फिर लगाना कहां तक उचित है या जरूरी है ? यदि टीका मेडिकल स्टोर्स पर उपलब्ध है और किसी ने लगवा लिया तो भी इसे लगाना जरूरी है क्या?
अब तक यह रही व्यवस्था
बच्चों को जन्म के नवें महीने में मिजल्स मम्प्स एण्ड रूबेला (एमएमआर) का पहला एवं 15वें महीने में दूसरा टीका लगाया जा रहा था। बाद में 5वें वर्ष में इसका बूस्टर टीका लगाया जा रहा था तो फिर इस टीके की जरूरत क्यों? अचानक यह अभियान इस तरह लागू करना क्यों और कितना जरूरी है।
कोई खास शोध नहीं : मिजल्स के वायरस मोर्बिली एवं खसरे के वायरस पैरामिक्सो के जीन्स म्यूटेशन हो गया हो और अब नए सिरे से टीकाकरण की जरूरत हो, ऐसा कोई शोध सामने नहीं आया है।
गिनिपिग बनाने पर उठ रहे सवाल
किसी भी प्रकार के टीके, दवा या मेडिकल शोध के लिए गिनीपिग का इस्तेमाल किया जाता रहा है। गिनीपिग या गिनी सूअर, जिसे वैज्ञानिक नाम केविआ पोर्सेलस है। इसका उपयोग कई प्रकार के शोध के लिए किया जाता है। ऐसे में यदि कोई शोध किया जा रहा है तो क्या हमारे बच्चे गिनीपिग है ? यह बड़ा सवाल है।
टीकाकरण का एक फेज पांच वर्ष की उम्र तक पूरा हो जाता है। एक बार टीका लगने के बाद बच्चे में उस रोग को लेकर उम्र भर के लिए प्रतिरोधकता आ जाती है। दस वर्ष में ऐसी कौनसी प्रतिरोधकता घट गई जिसके लिए पन्द्रह वर्ष तक के बच्चों को शामिल किया गया है।
हर्ड इम्यूनेटिंग ऑफ पोपुलेशन
यदि हमने बच्चों का टीका लगवा लिया है, तो वे सुरक्षित हो गए। मगर कुछ अन्य बच्चे जो इसमें छूट गए हैं, उनसे संक्रमण का खतरा पैदा हो सकता है। यदि यह टीका ग्रुप में लगाया जाता है तो सुरक्षा घेरा मजबूत होता है, जिससे वायरस का संक्रमण रुक जाता है। ऐसे वायरस फल फूल नहीं पाएगा जिसे हर्ड इम्यूनेटिंग ऑफ पॉपुलेशन कहा जाता है।
डॉ अक्षय व्यास, डब्ल्यूएचओ एसएमओ उदयपुर
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