भगवान के जन्म के बाद बधाइयां देने के साथ घर-घर मे मिठाई बांट कर खुशियां मनाई गई। इस अवसर पर हाथी, पालकियों के राजसी ठाट-बांट के साथ तीर्थ से ग्राम में शोभा-यात्रा भी निकाली गई। जिसमें 24 तीर्थंकरों के साथ मुनि संघ के जयकारों से आवां भक्ति के रंग मे रंग गया।
इस अवसर पुष्प वर्षा कर ग्राम में जगह-जगह स्वागत किया गया। इससे पूर्व तीर्थ पर तीर्थंकर बालक के जन्म रंगमंच पर सजीव मंचन और चित्रण के सांस्कृतिक आयोजन में भक्ति का सैलाब उमड़ पड़ा।
पंचकल्याणक में माता-पिता बनने का पुण्र्याजन आवां निवासी छीतर मल और छान्या बाई हरसौरा को प्राप्त हुआ। दोपहर मे आदि नाथ भगवान मंदिर का शिलान्यास पुण्र्याजक हुकुम चन्द जैन ने किया। शुक्रवार शाम के बाद देवली- उनियारा विधायक हरीश मीना ने भी महोत्सव के आयोजन मे शरीक होकर मुनि संघ का आशीर्वाद लिया।
इनमें भी बरसा भक्ति का रस
आशीष शास्त्री और चन्द्र प्रकाश हरसोरा ने बताया कि सुदर्शनोदय तीर्थ पर इस भगवान के जन्मोत्सव में सौधर्म इन्द्र के साथ अयोध्या नगरी की तीन परिक्रमा की गई।अयोध्या नगरी में प्रवेश के बाद इनको ऐरावत हाथी पर बैठाकर पाण्डुक वन की ओर प्रस्थान के आयोजन ने भाव-विभोर कर दिया।
कार्यक्रम में तीर्थंकर बालक का 1008 कलशों से अभिषेक के आयोजन में धर्म की पावन सरिता बह निकली। शाम को आचार्य भक्ति के साथ जिज्ञासा समाधान, आरती और शास्त्र प्रवचन मे धर्मावलम्बियों ने ज्ञानार्जन कर धर्म लाभ कमाया।
जन्म कल्याणक का समझाया महातम्य
अच्छे माता-पिता बनना बड़ा मुश्किल है। शास्त्रों में श्रेष्ठ माता को मुनि के समान उच्च पदवी प्रदान की है। मुनि सुधासागर ने आवां तीर्थ पर जन्म कल्याणक संस्कार पर प्रवचन देते हुए माता को ममता और वात्सल्य का रूप बताया।
सन्तान को सुसंस्कारित और पावन बनाने का उपदेश देते हुए भगवान के जन्म कल्याणक का महातम्य समझाया। मुनि ने कहा कि पुण्यात्माओं को थोड़ा सा अवलम्बन मिलने पर ही वो बहुत कुछ कर जाते हैं, इनके उद्वार के लिए ही भगवान ने जन्म लिया है।
इस अवसर पर मुनि ने सन्तान के बिगडऩे और कलंक लगाने के भय के पीछे भी माता-पिता के कर्मों और दोषों को ही जिम्मेदार बताया। उन्होंने कहा कि जैसी सन्तान चाहते हो वैसा ही सोचना, सुनना, देखना, खाना, पहनना शुरू कर दो। संगति का प्रभाव भी पड़े बिना नहीं रहने से धर्म की शरण अपनाने के भाव भी जगाए।