सूरत महानगर पालिका संचालित नगर प्राथमिक शिक्षा समिति स्कूलों में गुणोत्सव के दौरान चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए थे। पता चला कि पहली से 8वीं कक्षा के कई विद्यार्थियों को लिखना, पढऩा और गिनती करना नहीं आता। इस समस्या को दूर करने के लिए सरकार की ओर से शैक्षणिक सत्र 2018-20 में तीन बार अलग-अलग प्रोजेक्ट लागू किए गए। इनके माध्यम से विद्यार्थियों को लिखने, पढऩे और गिनती करने योग्य बनाने का प्रयास किया गया, लेकिन सफलता नहीं मिली। वेकेशन के दौरान राज्य शिक्षा विभाग ने समिति शिक्षकों से समय दान की अपील की थी, ताकि वेकेशन में विद्यार्थियों को पढऩा, लिखना और गिनती करना सिखाया जा सके। शिक्षक तो तैयार हो गए, लेकिन गिनती के विद्यार्थी ही स्कूल आए। इसलिए सरकार का यह चौथा प्रयास भी विफल रहा।
डॉ. रुद्रेश व्यास, प्राध्यापक, एमटीबी आट्र्स कॉलेज
लर्निंग डिसेबलिटी का पता चलने के बाद विद्यार्थी का इलाज कर उसे पढऩे-लिखने लायक बनाया जा सकता है। शोध में पता चला है कि जेलों में 50 प्रतिशत कैदी लर्निंग डिसेबलिटी से पीडि़त हैं।
डॉ. केतन भरड़वा, पीडियाट्रीशियन