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SURAT EDUCATION : लर्निंग डिसेबलिटी जांचने के लिए सूरत के प्राध्यापक ने खोजा दुनिया का पहला अनोखा टूल्स

SURAT EDUCATION :
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से मिला सूरत के प्राध्यापक और पीडियाट्रीशियन को अनुदान

सूरतJun 26, 2019 / 07:54 pm

Divyesh Kumar Sondarva

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SURAT EDUCATION : लर्निंग डिसेबलिटी जांचने के लिए सूरत के प्राध्यापक ने खोजा दुनिया का पहला अनोखा टूल्स

सूरत.

विद्यार्थी लर्निंग डिसेबलिटी का शिकार है या नहीं, यह आसानी से पता चल सकेगा। सूरत के एमटीबी कॉलेज के प्राध्यापक और पीडियाट्रीशियन ने मिलकर स्क्रीनिंग टूल्स तैयार किए हैं। इन टूल्स की शोध के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की ओर से अनुदान मिला है। इन्हें तैयार करने में तीन साल का समय लगा।
कई विद्यार्थी सामान्य होने के बावजूद पढऩे-लिखने में पीछे रहते हैं। स्कूल, शिक्षक और अभिभावक उन पर पढ़ाई का दबाव बनाते रहते हैं। इससे वह तनाव का शिकार हो जाते है। लर्निंग डिसेबलिटी से पीडि़त होने के कारण कई विद्यार्थियों को लिखना, पढऩा और गिनती करना नहीं आता। लर्निंग डिसेबलिटी को जांचने के लिए एमटीबी कॉलेज के प्राध्यापक डॉ.रुद्रेश व्यास और पीडियाट्रीशियन डॉ.केतन भरवाड़ ने स्क्रीनिंग टूल्स तैयार किए हैं। इस शोध के लिए यूजीसी ने आठ लाख रुपए का अनुदान दिया है। टूल्स तैयार करने के लिए कक्षा 3 से 7 तक के विद्यार्थियों पर शोध की गई। विद्यार्थियों से कई तरह के प्रश्न पूछे गए। शोध में 300 से अधिक विद्यार्थियों को शामिल किया गया। इनसे लिखने, पढऩे और गिनती के सवाल किए गए। अंत में 52 प्रश्नों के स्क्रीनिंग टूल्स तैयार किए गए। टूल्स के पांच विभागों को 52 प्रश्नों में बांटा गया है। छह महीने से अधिक समय तक विद्यार्थी को पढ़ाने वाले शिक्षक टूल्स का उपयोग कर बच्चे की लर्निंग डिसेबलिटी की जांच कर सकेंगे। इन प्रश्नों के तीन विकल्पों में से सही जवाब बताना होता है। अंत में कुल अंकों की गिनती की जाती है। विद्यार्थी का टोटल 18 से अधिक होने का मतलब है कि वह लर्निंग डिसेबलिटी का शिकार है। टूल्स में 104 अंक हैं। विद्यार्थी का कुल टोटल 100 से अधिक होने का मतलब है कि वह समस्या को लेकर काफी पीडि़त है।
विद्यार्थी की लर्निंग डिसेबलिटी जांचने के लिए अब तक जिस प्रक्रिया का इस्तेमाल किया जाता है, वह काफी लंबी और महंगी है। इसके लिए मनोवैज्ञानिक, पीडियाट्रीशियन और एज्यूकेशन विशेषज्ञ की आवश्यकता पड़ती है। जांच में तीन दिन से अधिक का समय लगता है और पांच हजार रुपए से अधिक का खर्च हो जाता है।
मनपा स्कूलों में कई प्रयोग रहे नाकाम
सूरत महानगर पालिका संचालित नगर प्राथमिक शिक्षा समिति स्कूलों में गुणोत्सव के दौरान चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए थे। पता चला कि पहली से 8वीं कक्षा के कई विद्यार्थियों को लिखना, पढऩा और गिनती करना नहीं आता। इस समस्या को दूर करने के लिए सरकार की ओर से शैक्षणिक सत्र 2018-20 में तीन बार अलग-अलग प्रोजेक्ट लागू किए गए। इनके माध्यम से विद्यार्थियों को लिखने, पढऩे और गिनती करने योग्य बनाने का प्रयास किया गया, लेकिन सफलता नहीं मिली। वेकेशन के दौरान राज्य शिक्षा विभाग ने समिति शिक्षकों से समय दान की अपील की थी, ताकि वेकेशन में विद्यार्थियों को पढऩा, लिखना और गिनती करना सिखाया जा सके। शिक्षक तो तैयार हो गए, लेकिन गिनती के विद्यार्थी ही स्कूल आए। इसलिए सरकार का यह चौथा प्रयास भी विफल रहा।
गुजरात राज्य शैक्षणिक एवं संशोधन परिषद (जीसीइआरटी) की ओर से स्क्रीनिंग टूल्स को स्वीकृति दी गई है। कक्षा 3 से 7 तक के विद्यार्थियों में इन टूल्स का उपयोग किया जाएगा।
डॉ. रुद्रेश व्यास, प्राध्यापक, एमटीबी आट्र्स कॉलेज

लर्निंग डिसेबलिटी का पता चलने के बाद विद्यार्थी का इलाज कर उसे पढऩे-लिखने लायक बनाया जा सकता है। शोध में पता चला है कि जेलों में 50 प्रतिशत कैदी लर्निंग डिसेबलिटी से पीडि़त हैं।
डॉ. केतन भरड़वा, पीडियाट्रीशियन

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